वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
ताइवान की बौद्ध करुणा राहत त्ज़ू ची फाउंडेशन और काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के बीच बौद्ध धर्म पर केंद्रित एक शोध केंद्र की स्थापना को लेकर सार्थक चर्चा हुई है। यह केंद्र कला संकाय के पालि और बौद्ध अध्ययन विभाग के अंतर्गत स्थापित किया जाएगा।
त्ज़ू ची फाउंडेशन के उपाध्यक्ष लिन पी यू के नेतृत्व में 13 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने बीएचयू का दौरा किया और विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अजीत कुमार चतुर्वेदी से मुलाकात की।
प्रो. चतुर्वेदी ने इस पहल का सहर्ष स्वागत किया और विश्वविद्यालय की ओर से पूरा सहयोग देने का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि यह कार्य बीएचयू के नियमों के अनुसार शीघ्रता से आगे बढ़ाया जाएगा।
प्रस्तावित केंद्र शुद्ध रूप से शोध पर केंद्रित होगा और इसका उद्देश्य बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन, अनुवाद, प्रकाशन तथा व्याख्यानों की एक श्रृंखला के माध्यम से थेरवाद और महायान परंपराओं को बढ़ावा देना है। यह केंद्र शैक्षणिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से दोनों महान परंपराओं के बीच समझ को गहरा करने का कार्य करेगा।
चर्चा के दौरान यह बात भी सामने आई कि महायान बौद्ध धर्म, जो एक समय भारत में फूला-फला और समृद्ध परंपरा था, कालांतर में अपने जन्मस्थान से लुप्त हो गया। ऐसे में बीएचयू जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में इस पर शोध और जागरूकता को पुनर्जीवित करना एक महत्वपूर्ण कदम होगा।
यह शोध केंद्र महत्वपूर्ण बौद्ध ग्रंथों और शास्त्रों का भारतीय भाषाओं में अनुवाद भी करेगा, जिससे विद्वानों और साधकों को उनकी अधिक पहुँच मिल सके। त्ज़ू ची फाउंडेशन ने थेरवाद और महायान, दोनों परंपराओं को समर्थन देने की प्रतिबद्धता जताई है, विशेष रूप से अनुवाद और प्रकाशन के क्षेत्र में।
इस अवसर पर कला संकाय की अधिष्ठाता प्रो. सुषमा घिल्डियाल, अंतरराष्ट्रीय केंद्र के समन्वयक प्रो. राजेश सिंह, तथा पालि और बौद्ध अध्ययन विभाग के अध्यक्ष अरुण कुमार यादव भी उपस्थित थे।
यह पहल भारत और ताइवान के बीच बौद्ध विरासत के साझा इतिहास के माध्यम से शैक्षणिक सहयोग और सांस्कृतिक पुनरुत्थान की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है।