सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, मुस्लिम महिलाएं भी मांग सकती हैं पति से गुजारा भत्ता

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 10-07-2024
Muslim women can also ask for alimony from their husbands : Supreme Court
Muslim women can also ask for alimony from their husbands : Supreme Court

 

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के हित में बुधवार को अहम फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि अब तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिका दायर कर अपने पति से भरण पोषण के लिए भत्ता मांग सकती हैं.

हालांकि, कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट कह दिया है कि यह फैसला हर धर्म की महिलाएं पर लागू होगा और मुस्लिम महिलाएं भी इसका सहारा ले सकती हैं. इसके लिए उन्हें सीआरपीसी की धारा 125 के तहत कोर्ट में याचिका दाखिल करने का अधिकार है. इस संबंध में जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने फैसला सुनाया है.

दरअसल, यह पूरा मामला अब्दुल समद नाम के व्यक्ति से जुड़ा हुआ है. बीते दिनों तेलंगाना हाईकोर्ट ने अब्दुल समद को अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया था. इस आदेश के विरोध में अब्दुल समद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की. अब्दुल ने अपनी याचिका में कहा कि उनकी पत्नी सीआरपीसी की धारा 125 के अंतर्गत उनसे गुजारा भत्ता मांगने की हकदार नहीं है. महिला को मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986 अधिनियम के अनुरूप चलना होगा. ऐसे में कोर्ट के सामने सबसे बड़ा सवाल यह था कि वो किसे प्राथमिकता दे. मुस्लिम महिला अधिनियम या सीआरपीसी की धारा 125 को, लेकिन आखिर में कोर्ट ने मुस्लिम महिला के पक्ष में फैसला सुनाया.

सीआरपीसी की धारा 125 में पति अपनी पत्नी, बच्चों और माता–पिता को गुजारा भत्ता तभी देता है, जब उनके पास आजीविका का कोई साधन नहीं होता है. अगर उनके पास आजीविका का कोई साधन होता है, तो ऐसी स्थिति में उन्हें भत्ता देने की मनाही होती है.

मुस्लिम महिलाओं को महज इद्दत की अवधि तक ही गुजारा भत्ता मिलता है. आमतौर पर इद्दत की अवधि महज तीन महीने होती है. दरअसल, इस्लामी रवायत के अनुसार जब किसी मुस्लिम महिला के पति का देहांत हो जाता या उसे तलाक दे दिया जाता है, तो ऐसी सूरत में उसे तीन महीने तक शादी की इजाजत नहीं होती है. इस दौरान, इन तीन महीनों तक उसे पति द्वारा गुजारा भत्ता दिया जाता है, लेकिन इसके बाद उसे यह भत्ता नहीं दिया जाता. लेकिन अब इस पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप कर मुस्लिम महिलाओं के लिए गुजारा भत्ता का मार्ग प्रशस्त किया है.

 

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