शाहताज खान/ मुंबई
हर रोज़ मावला की पारंपरिक सफ़ेद पोशाक, कमर पर भगवा कमरबंद और टोपी पहने एक व्यक्ति गेटवे ऑफ इंडिया के केंद्र में रखे नगाड़े को बजाकर सूर्य अस्त होने का संदेश देता है. शाम होते ही नोबत की तेज़ आवाज़ किसी महल में बजने वाले नगाड़े की याद ताज़ा कर देती है. यह प्रक्रिया हर रोज़ बिना रुके महबूब इमाम हुसैन दोहराते हैं.
छत्रपति शिवाजी महाराज की परंपरा
छत्रपति शिवाजी महाराज की परंपरा को जीवित रखने के लिए 1982 में नगाड़ा बजाने की प्रक्रिया शुरू की गई. बाबू राव दीपक जाधव ने 1995 तक नोबत बजाने की जिम्मेदारी संभाली और उनके बाद से महबूब इमाम हुसैन ने इस परंपरा को कायम रखा है. पिछले 27 वर्षो से वह पारंपरिक वेशभूषा धारण करके पूरे सम्मान और भावुकता के साथ छत्रपति शिवाजी महाराज के मान सम्मान में सलामी देते हैं.
नगाड़े की गूंज
मराठा साम्राज्य के समय महल में सूर्य अस्त होने पर नगाड़ा बजाया जाता था और इसके साथ ही महल के दरवाज़े बंद कर दिए जाते थे. नौबत बजाने की परम्परा मराठा साम्राज्य के दौरान शुरू की गई थी. यह नौबत छत्रपति शिवाजी महाराज के किलों में रखा जाता था और इस को हर रोज़ शाम के समय सूर्य अस्त होने पर बजाया जाता था.
जिस से प्रजा को यह मालूम हो सके कि किले के दरवाज़े अब बंद हो रहे हैं. इस परंपरा को महबूब इमाम हुसैन ने आज भी जीवित रखा हुआ है. नगाड़े की गूंजती आवाज़ सहज ही भूतकाल में ले जाती है.
कौन हैं महबूब इमाम हुसैन
शिवाजी की परम्परा को जीवित रखने वाले महबूब मुंबई में कुलाबा की एक छोटी बस्ती में रहते हैं. वह केवल नगाड़ा बजाते ही नहीं बल्कि अपने खर्च से इस नौबत की मरम्मत भी कराते हैं. जहां एक ओर हिंदू-मुस्लिम के नाम पर लोगों को बांटा जाता है वहीं दूसरी ओर महबूब जैसे लोग यह बताते हैं कि सत्य कुछ और ही है. 27 सालों से नौबत (drum)की यह गूंज आपसी भाईचारे और प्रेम की जीती-जागती मिसाल है.
परंपराओं को सहेजने की कोशिश
महबूब नगाड़ा बजाने के बाद मुंबई के गेटवे ऑफ़ इंडिया पर घूमने आने वाले लोगों को इस नगाड़े के इतिहास की जानकारी भी देते हैं और सैलानियों के प्रशनों के उत्तर भी देते हैं. क्योंकि नगाड़े की गूंजती आवाज़ लोगों को खींच लाती है.
अकसर लोग हैरान होते हैं और जिज्ञासा शांत करने के लिए महबूब इमाम से पूछते हैं कि क्या यह खास मौके पर बजाया जाता है तब वह उन्हें बताते हैं कि वह हर शाम इसी समय यह नगाड़ा बजाते हैं वह भी उचित परिधान पहनकर. वह लोगों को अवगत कराते हैं कि यह कोई शो नहीं, बल्कि एक परंपरा है.
महबूब इमाम हुसैन वर्षों से यह जिम्मेदारी निभाते आ रहे हैं और आगे भी अपने इस काम को करते रहने के लिए वचनबद्ध हैं.