आवाज-द वॉयस / नई दिल्ली
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने महात्मा गांधी के जीवन और दर्शन पर नया दृष्टिकोण देते हुए कहा कि वह भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ शक्ति के इस्तेमाल के खिलाफ नहीं थे. डोभाल ने कहा, ‘‘हो सकता है कि उन्होंने कठोर शक्ति का उपयोग करने वालों का समर्थन नहीं किया हो, लेकिन उन्होंने उनका विरोध भी नहीं किया. हो सकता है कि वह उनके तौर-तरीकों के खिलाफ थे, लेकिन उन्होंने क्रांतिकारियों के खिलाफ कुछ नहीं बोला या खड़े नहीं हुए.’’
पूर्व मंत्री और प्रसिद्ध लेखक एमजे अकबर की पुस्तक गांधी ‘ए लाइफ इन थ्री कैंपेन्स’ के विमोचन के अवसर पर एनएसए डोभाल श्रोताओं को संबोधित कर रहे थे. एनएसए डोभाल ने कहा कि महात्मा गांधी एक महान रणनीतिकार और योद्धा थे, जो स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक विषम युद्ध में एक शक्तिशाली शक्ति ‘अंग्रेज’ के खिलाफ नरम शक्ति का प्रभावी ढंग से उपयोग कर सकते थे.
उन्होंने कहा कि गांधी का प्रतिरोध का तरीका दुनिया में एकमात्र उदाहरण है, जहां असीमित युद्ध में नरम शक्ति, कठोर शक्ति पर हावी होने और उसे परास्त करने में भी सक्षम रही है. उन्होंने कहा कि एमजे अकबर की किताब इन सभी पहलुओं पर गौर करती है और यह भी बताती है कि एक ही समय में गांधी का निजी जीवन कैसे विकसित हो रहा था.
	
उन्होंने कहा कि गांधी अंग्रेजों की क्रूर ताकत के खिलाफ अपने हथियारों को अच्छी तरह से समझते थे. गांधी को यह एहसास था कि उनकी नैतिक शक्ति, भारत की संस्कृति, सभ्यता और मूल्यों की ताकत अंग्रेजों की क्रूर शक्ति को हरा सकती है. उन्होंने कहा कि राष्ट्रपिता की शैली को देखते हुए कोई भी सोचता है कि ‘माई एक्सपेरिमेंट्स विद सॉफ्ट पावर’ नामक पुस्तक लिखी जा सकती है.
नरम और क्रूर शक्ति के द्वंद्व को समझाते हुए, एनएसए ने कहा कि सोवियत संघ के विघटन के बाद, दुनिया एकध्रुवीय हो गई और एक नया सिद्धांत सामने आया कि अमेरिका केवल अपनी नरम शक्ति के आधार पर एक शक्ति के रूप में बना रह सकता है, जबकि शक्तियों के नए निकाय भी उभरेंगे.
किताब की तारीफ करते हुए डोभाल ने कहा कि अकबर ने इसमें महात्मा गांधी के जीवन पर नजर डाली है कि उनके जीवन की मजबूरियां और जटिलताएं, और लोग उनके और उनकी मान्यताओं के बारे में कैसे सोचते हैं.
उन्होंने कहा कि गांधी जी का संघर्ष उस समय हो रहा था, जब अंग्रेजों के पास पाशविक शक्ति थी और वहां एक ऐसा व्यक्ति था, जिसके पास कोई साधन नहीं था. उन्होंने समझ लिया कि यदि वे आत्मशक्ति को जुटा सकें और उसे एक साधन बना सकें और उस समय की अपनी नरम शक्ति को हथियार बना सकें, तो एक शक्तिशाली शक्ति ही एकमात्र प्रभावी पक्ष नहीं हो सकती है.
कार्यक्रम को केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने भी संबोधित किया.
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