श्रीनगर. सांस्कृतिक और धार्मिक बहुलवाद के भारत के समृद्ध इतिहास के बारे में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से, जम्मू और कश्मीर पीपुल्स जस्टिस फ्रंट (जेकेपीजेएफ) ने रविवार को श्रीनगर में एक सेमिनार आयोजित किया. एचएमटी श्रीनगर में ‘भारत माता की गोद में धार्मिक बहुलवाद’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इसमें सामाजिक कार्यकर्ता फारूक रेनजो शाह, राजनीतिक कार्यकर्ता शब्बीर हुसैन राठेर, सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी बडगाम के पूर्व अध्यक्ष संत पाल सिंह, विमल सिंह, मुफ्ती सैयद लतीफ बुखारी, एजाज मुस्तफा मलिक, आगा सैयद शौकत मदनी, जेकेपीजेएफ के अध्यक्ष आगा सैयद अब्बास रिजवी व अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया.
संगोष्ठी में, फारूक शाह रेंजो ने विचार-विमर्श किया कि धार्मिक बहुलवाद भारतीय संस्कृति और धार्मिक सहिष्णुता का एक मुख्य बिंदु है और उन्होंने इसे भारतीय धर्मनिरपेक्षता की नींव कहा. गोष्ठी में सभा को संबोधित करते हुए धार्मिक विद्वान विमल सिंह ने कहा कि धार्मिक बहुलवाद की परंपराओं की कश्मीर घाटी के इतिहास में गहरी जड़ें हैं. सिंह ने कहा, ‘‘शायद यह समृद्ध विरासत ह,ै जिसने सांप्रदायिक और धार्मिक सद्भाव की सदियों पुरानी स्वदेशी परंपराओं के विकास का नेतृत्व किया, और इस क्षेत्र में समन्वयवाद, जिसे हम ‘कश्मीरियत’ के रूप में जानते हैं.’’
उन्होंने आगे कहा कि कश्मीरियत इस क्षेत्र में प्रचलित संयुक्त हिंदू-मुस्लिम-सिख संस्कृति, त्योहारों, भाषाओं, व्यंजनों और कपड़ों के रूप में धार्मिक बहुलवाद का उदाहरण है. कश्मीरियत की भावना में, हिंदू धर्म और इस्लाम के त्योहार दोनों धर्मों के अनुयायियों द्वारा एक दूसरे के लिए उचित सम्मान और सम्मान के साथ मनाए जाते हैं.
धार्मिक विद्वान मुफ्ती सैयद लतीफ बुखारी ने कहा कि कश्मीर में बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म, सिख धर्म और इस्लाम प्राचीन काल से सभी धर्मों में निहित सामान्य लक्ष्यों को दोहराने के लिए एक साथ मिश्रित हुए हैं. बुखारी ने आगे कहा, ‘‘यह समय की बात है कि कश्मीर में हिंसा की घटती लहर निश्चित रूप से सद्भाव और प्रेम की सदियों पुरानी भावना को रास्ता देगी जो कश्मीर की सच्ची तस्वीर पेश करती है. इन्हीं कारणों से ऋषि कश्यप ऋषि की भूमि में सूफीवाद फला-फूला.’’
शब्बीर हुसैन राठेर ने कहा कि कश्मीर में पिछले तीन दशकों के दौरान धार्मिक अतिवाद का इस्तेमाल बहुलवाद, धर्मनिरपेक्षता, स्वतंत्रता और सहिष्णुता जैसे विचारों को खत्म करने के लिए किया गया है. उन्होंने कहा, ‘‘कश्मीर के लोगों को किसी की सहानुभूति या एकजुटता की जरूरत नहीं है, हम कश्मीरी एक हैं और हम सभी बाधाओं को पार कर सफलता और विकास के पथ पर आगे बढ़ेंगे.’’
जेकेपीजेएफ के अध्यक्ष आगा सैयद अब्बास रिजवी ने कहा कि कश्मीरियत का पुनरुद्धार कश्मीरी समाज के सभी वर्गों द्वारा एक सचेत प्रयास है. कश्मीरियत कश्मीर की संस्कृति का पर्याय है, जो इस क्षेत्र की समृद्ध धार्मिक और पारंपरिक विरासत के साथ प्रतिध्वनित होती है.
रिजवी ने कहा कि राज्य में जारी हिंसा का विरोध करने के लिए हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों द्वारा कश्मीरियत को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है. सांस्कृतिक गतिविधियों, सामाजिक कार्यक्रमों और साहित्य के माध्यम से कश्मीरियत को बढ़ावा देने के प्रयासों को पूरे जम्मू और कश्मीर में बढ़ाना होगा, जो कश्मीर और समय की जरूरत है.
उन्होंने कहा कि इस संबंध में एक महत्वपूर्ण कदम कश्मीरी भाषा है. जेकेपीजेएफ के प्रकोष्ठ कला, संस्कृति और भाषा के अध्यक्ष ने अपील की, ‘‘मैं दुनिया भर में फैले सभी कश्मीरियों से अपनी मातृभाषा को बचाने के लिए एकजुटता दिखाने की अपील करता हूं. मैं यूटी प्रशासन से स्कूली पाठ्यक्रम में कश्मीरी भाषा को शामिल करने की मांग कर रहा हूं. कश्मीरी के विकास और प्रसार के लिए हम कश्मीरियों को सभी से एकजुटता की जरूरत है.’’
आगा रिजवी ने भारत के जी20 प्रेसीडेंसी के बारे में भी बात की और जोर देकर कहा कि वसुधैव कुटुम्बकम जीवन का दर्शन है जिसका अर्थ है कि पूरी दुनिया एक परिवार है. उन्होंने कहा, ‘‘इसी तरह, कश्मीरियत एक कश्मीर के लिए है, इस तथ्य के बावजूद कि हम विभिन्न धर्मों और मतों का पालन कर रहे हैं.’’
आगा सैयद शौकत मदनी ने कश्मीरियत के पुनरुद्धार के महत्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने जोर देकर कहा कि यह सभ्य समाज और सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक नेताओं के लिए घाटी के युवाओं को सूफीवाद और कश्मीरियत की संस्कृति और सार के बारे में शिक्षित करने का सही समय है. मदनी ने जोर देकर कहा कि कश्मीरियत के पुनरुद्धार से केवल कश्मीर की शांति और समृद्धि को बढ़ावा मिलेगा, जो अंततः देश के बाकी हिस्सों और दक्षिण एशिया में फैल जाएगा.