आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
उत्तराखंड में महान वन्यजीव प्रेमी जिम कॉर्बेट की 150वीं जयंती पर अनेक स्थानों पर उनकी विरासत का जश्न मनाया गया साथ ही अधिकारियों और पर्यावरणविदों से लेकर स्थानीय जनता ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की.
कॉर्बेट के संरक्षण संबंधी संदेश को लोगों तक पहुंचाने के लिए उनके जीवन और कार्य से जुड़े स्थानों जैसे कॉर्बेट बाघ अभयारण्य, 1915 में उनके द्वारा कालाढूंगी के पास स्थापित गांव-छोटी हल्द्वानी, कोटद्वार और कालागढ़ में कई कार्यक्रम आयोजित किए गए.
नैनीताल में 25 जुलाई 1875 को जन्में कॉर्बेट ने एक कुशल शिकारी के रूप में पहचान बनाई और अपनी उम्र के तीसरे दशक तक वह 33 नरभक्षी बाघों और तेंदुओं को अपना निशाना बना चुके थे.
हालांकि, बाद में उनका ह्रदय परिवर्तन हुआ और उन्होंने अपना जीवन बाघों और वन्यजीवों को बचाने के लिए समर्पित कर दिया और संरक्षणवादी बन गए। आज उन्हें भारत में बाघ संरक्षण के जनक के रूप में जाना जाता है.
वरिष्ठ प्रकृतिवादी राजेश भट्ट ने कहा, ‘‘जिम कॉर्बेट ने ही पहली बार बाघ को विशाल हृदय वाला सौम्य प्राणी बताया था। उन्होंने ही पूरी दुनिया को बाघ संरक्षण की आवश्यकता से रूबरू कराया था.’
भट्ट ने कहा, ‘‘उनका नाम संरक्षण का पर्यायवाची बन गया है. उन्होंने ही दुनिया को बाघ संरक्षण की अवधारणा दी.’’
कॉर्बेट बाघ अभयारण्य के निदेशक साकेत बडोला ने ‘पीटीआई वीडियो’ को बताया कि वन्यजीवों के प्रति उनके अद्वितीय योगदान को सम्मान देने के लिए वन अधिकारी, पर्यावरणविद, गाइड और स्थानीय निवासी रामनगर, कालाढूंगी तथा उनकी जीवन यात्रा से जुड़े अन्य स्थानों पर इकटठा हुए.
शिकारी से वन्यजीव संरक्षणवादी बने जिम कॉर्बेट के नाम पर रामनगर में प्रसिद्ध बाघ अभयारण्य है जबकि कालाढूंगी वह स्थान है जहां वह सर्दियों में रहा करते थे.