गरीबों के डॉक्टर, समाज के प्रहरी: डॉ. एजाज अली का प्रेरणादायक सफर

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 26-07-2025
Dr Ejaz Ali – The Doctor Who Charges Just ₹10 for Consultation
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पूर्व राज्यसभा सांसद डॉ. एम. एजाज अली लगभग तीस वर्षों से वंचितों के अथक समर्थक रहे हैं. उनका मार्गदर्शक विश्वास है कि सामाजिक समानता और गरीबों के अधिकारों की सुरक्षा के बिना सच्चा विकास अधूरा है. यहां प्रस्तुत है महफूज आलम की डॉ. एम. एजाज अली पर एक विस्तृत रिपोर्ट.  

हाशिए पर पड़े लोगों के हिमायती माने जाने वाले डॉ. अली की जीवनगाथा प्रेरणादायक और विनम्र दोनों है. 1958 में जन्मे और एक अनाथालय में पले-बढ़े, उन्होंने शैक्षणिक समर्पण के माध्यम से गरीबी से ऊपर उठकर अंततः प्रतिष्ठित पटना मेडिकल कॉलेज में प्रवेश प्राप्त किया.
 
जहाँ कई डॉक्टर आर्थिक समृद्धि की तलाश में रहते हैं, वहीं डॉ. अली ने एक अलग रास्ता चुना. उन्होंने एक क्लिनिक स्थापित किया जहाँ परामर्श शुल्क शुरू में ₹2 से ₹3 तक था और आज भी मात्र ₹10 है. चार दशक से भी अधिक समय बाद, सुलभ स्वास्थ्य सेवा के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता अपरिवर्तित बनी हुई है.
 
अपने चिकित्सा करियर की शुरुआत से ही, डॉ. अली ने खुद को गरीबों की सेवा के लिए समर्पित कर दिया. बिहार के दूरदराज के इलाकों के दौरे के दौरान, उन्होंने हाशिए पर पड़ी मुस्लिम जातियों में गहरी जड़ें जमाए शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन को प्रत्यक्ष रूप से देखा.
 
इसके जवाब में, उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत इन समुदायों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की मांग को लेकर एक आंदोलन शुरू किया. उनका अभियान पटना, दिल्ली, कोलकाता और लखनऊ जैसे बड़े शहरों में फैल चुका है और आज भी जारी है.
 
डॉ. अली का दृढ़ विश्वास है कि दलित मुसलमानों को अनुसूचित जाति का दर्जा देना उनके उत्थान के लिए बेहद ज़रूरी है. उनके अनुसार, राष्ट्रीय प्रगति हाशिए पर पड़े समुदायों की ज़रूरतों को पूरा करने पर निर्भर करती है और अनुच्छेद 341 के तहत संवैधानिक मान्यता कई सामाजिक अन्यायों को दूर करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा.
 
आज भी, डॉ. अली न्याय के लिए अपनी अथक वकालत जारी रखते हुए सैकड़ों मरीज़ों का इलाज करते हैं. उनके प्रयासों से पिछड़े मुस्लिम समुदायों में जागरूकता बढ़ी है, जिनमें से कई अब राजनीतिक रूप से ज़्यादा जागरूक और अपने अधिकारों के प्रति मुखर हैं.
 
उन्होंने इन समुदायों में शिक्षा और राजनीतिक भागीदारी को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. हाल ही में पटना में आयोजित एक कार्यक्रम में, डॉ. अली ने पिछड़े मुसलमानों को अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत शामिल करने की मांग करते हुए एक बड़ी रैली का आयोजन किया.
 
उनका मानना है कि इस तरह के कानूनी उपाय सांप्रदायिक तनाव को कम कर सकते हैं और हिंसा को कम कर सकते हैं. डॉ. अली के लिए, सार्थक समाज सेवा के लिए व्यक्तिगत त्याग और अटूट आशावाद की आवश्यकता होती है. 
 
वे वंचित मुस्लिम जातियों को राष्ट्रीय मुख्यधारा में लाने के अपने प्रस्तावों को लागू करने के लिए सरकार से अक्सर आग्रह करते हैं. अपने परिवार के पहले डॉक्टर होने के नाते, डॉ. अली ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में बदलाव के उत्प्रेरक के रूप में अपनी भूमिका पर बहुत गर्व करते हैं.
 
उनके दशकों के कार्य ने दलित मुसलमानों में आत्मविश्वास की एक नई भावना का संचार किया है, जो अब उन नेताओं और प्रतिनिधियों को प्राथमिकता देते हैं जो वास्तविक मुद्दों को संबोधित करते हैं, न कि उन लोगों को जो राजनीतिक बयानबाजी पर निर्भर रहते हैं.
 
 
 
डॉ. अली छद्म धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिक राजनीति की मुखर आलोचना करते हैं, जिनके बारे में उनका मानना है कि इनसे देश को स्थायी नुकसान हुआ है.
 
 
उनका तर्क है कि भारत को वास्तव में प्रगति करने के लिए, उसे बुनियादी चिंताओं—रोज़गार, आवास, शिक्षा और बुनियादी सार्वजनिक सेवाओं—पर ध्यान केंद्रित करना होगा. तभी राष्ट्र सभी के लिए शांति, समृद्धि और न्याय के साथ आगे बढ़ सकता है.