2020 दिल्ली दंगा मामले पर दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले से जमाअत-ए-इस्लामी हिंद निराश

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 03-09-2025
Jamaat-e-Islami Hind vice president Malik Moatasim Khan disappointed with Delhi High Court's decision on 2020 Delhi riots conspiracy case
Jamaat-e-Islami Hind vice president Malik Moatasim Khan disappointed with Delhi High Court's decision on 2020 Delhi riots conspiracy case

 

नई दिल्ली

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद (JIH) के उपाध्यक्ष मलिक मोआतसिम खान ने 2 सितंबर 2025 को दिए गए दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर गहरी चिंता और निराशा जताई है। यह फैसला 2020 दिल्ली दंगा साजिश मामले से संबंधित है।

मीडिया को जारी बयान में मलिक मोआतसिम खान ने कहा,"हाईकोर्ट द्वारा उमर खालिद, शर्जील इमाम और अन्य कई कार्यकर्ताओं की जमानत याचिकाओं को अस्वीकार करना बेहद निराशाजनक है। ये युवा लगभग पांच साल से जेल में बंद हैं और अब तक मुकदमे की सुनवाई भी शुरू नहीं हो पाई है। न्याय में ऐसी देरी दरअसल न्याय से इनकार के बराबर है। लंबी प्री-ट्रायल कैद खुद एक तरह की सज़ा बन जाती है।"

उन्होंने आगे कहा कि इतने लंबे समय तक जमानत न मिलना, निर्दोष मानने के संवैधानिक सिद्धांत को कमजोर करता है। "भारतीय न्याय व्यवस्था का आधार है कि हर व्यक्ति तब तक निर्दोष है जब तक कि उसका दोष सिद्ध न हो। लेकिन इस फैसले से ऐसा प्रतीत होता है कि जमानत की बजाय जेल ही सामान्य नियम बना दिया गया है," उन्होंने टिप्पणी की।

JIH उपाध्यक्ष ने यह भी कहा कि उन्हें छात्र कार्यकर्ताओं और नागरिक समाज के सदस्यों के खिलाफ यूएपीए (UAPA) जैसी कठोर कानून के दुरुपयोग पर गंभीर चिंता है। "इन लोगों ने तो सिर्फ शांतिपूर्ण ढंग से सीएए-विरोधी आंदोलन में हिस्सा लिया था। उनके खिलाफ आतंकवाद निरोधी कानून लगाना बेहद खतरनाक मिसाल है। न तो किसी के पास हथियार मिले, न हिंसा से जोड़ने वाला सबूत, और जिन भाषणों का हवाला दिया गया वे दंगों से कई हफ्ते पहले के थे। सिर्फ व्हाट्सऐप ग्रुप का सदस्य होना किसी साजिश का प्रमाण नहीं हो सकता। वहीं अभियोजन पक्ष द्वारा यह कहना कि आरोपी भारत की छवि खराब करना चाहते थे या देश को बांटना चाहते थे—ये सब राजनीतिक बयान हैं, न कि अदालत में पेश किए जाने योग्य ठोस सबूत।"

उन्होंने चेतावनी दी कि यह फैसला शांतिपूर्ण प्रदर्शन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर गंभीर असर डालेगा, खासतौर पर अल्पसंख्यकों और छात्रों की आवाज़ों पर। "असल गुनहगार आज़ाद घूम रहे हैं, जबकि जिन्होंने शांति से विरोध किया वे जेलों में सड़ रहे हैं। यह न्याय नहीं है," उन्होंने कहा।

मलिक मोआतसिम खान ने अंत में अपील की, "हम सुप्रीम कोर्ट से आग्रह करते हैं कि इस मामले पर तुरंत सुनवाई करे और न्याय सुनिश्चित करे। हमें उम्मीद है कि उच्चतम न्यायालय लोकतांत्रिक स्वतंत्रताओं की रक्षा करेगा, असली दोषियों को कटघरे में खड़ा करेगा और इस केस को इसके तार्किक अंजाम तक पहुंचाएगा।"