आवाज द वॉयस/ नई दिल्ली
पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाले एक विशेषज्ञ ने यहां कहा कि भारत को अपने नवीकरणीय ऊर्जा कार्यक्रम को प्रगति की दिशा में ले जाने के बाद जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर अब जल संरक्षण को बढ़ावा देने की जरूरत है. सिंगापुर में आयोजित एक सम्मेलन में नयी दिल्ली स्थित काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवॉयरमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. अरुणाभ घोष ने यह बात कही. घोष ने कहा कि संसाधनों के प्रबंधन पर काम किया जा रहा है लेकिन देश भर में जल संरक्षण को बढ़ावा देने की जरूरत है.
घोष ने यहां पांच से आठ मई तक आयोजित ‘इकोस्पेरिटी सप्ताह 2025’ से इतर ‘पीटीआई’ से बातचीत में देश में जल अवसंरचना के खासकर जल जीवन मिशन के विस्तार में सुधार का उल्लेख किया. इसमें ग्रामीण इलाकों में घरों में नलों से पानी पहुंचाने की योजना है.
घोष ने साथ ही यह भी कहा कि कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां पानी का प्रभावी तरीके से इस्तेमाल किए जाने की जरूरत है जैसे कि कृषि के क्षेत्र में. उन्होंने कहा कि भारत में लगभग 14 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र कृषि का है लेकिन देश में एक पुरानी और गैर-लाभकारी प्रथा है कि कुछ मौसमी फसलों के लिए खेतों में पानी भर देना.
उन्होंने कहा कि इससे पानी की बर्बादी होती है. साथ ही उन्होंने किसानों को पानी के उपयोग और प्रौद्योगिकी-संचालित सिंचाई प्रणालियों की स्थापना के बारे में जानकारी दिए जाने की बात कही. घोष ने कहा कि मिट्टी की नमी बनाए रखना न केवल पानी बचाने के लिए बल्कि पैदावार को बेहतर बनाने के लिए भी एक बहुत ही महत्वपूर्ण तरीका है.
उन्होंने कहा, ‘‘यदि आप अपने खेतों में पानी भर देते हैं तो वास्तव में खेतों में उपज कम हो जाती है.’’ घोष ने कहा कि जल संरक्षण से कृषि उत्पादन में वृद्धि होगी, जबकि बचाए गए जल का इस्तेमाल उद्योग और घरेलू कामकाजों में किया जा सकता है.