अनुच्छेद 370 और चुनावी बॉन्ड जैसे मामलों में रहे हैं महत्वपूर्ण भूमिका में
नई दिल्ली
न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने बुधवार को देश के 52वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ ली. उन्होंने राष्ट्रपति भवन के गणतंत्र मंडप में आयोजित एक संक्षिप्त समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के समक्ष हिंदी में शपथ ग्रहण की. शपथ लेने के तुरंत बाद उन्होंने अपनी मां कमल ताई गवई के पैर छूकर आशीर्वाद लिया.
न्यायमूर्ति गवई ने न्यायमूर्ति संजीव खन्ना का स्थान लिया है, जो मंगलवार को 65 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद सेवानिवृत्त हो गए. न्यायमूर्ति गवई का कार्यकाल 23 नवंबर 2025 तक रहेगा यानी वह करीब छह महीने तक इस पद पर रहेंगे.
इस अवसर पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय मंत्री, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश और कई अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे.
महाराष्ट्र के अमरावती में 24 नवंबर 1960 को जन्मे न्यायमूर्ति गवई ने 16 मार्च 1985 को वकालत शुरू की. वे नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय के लिए स्थायी वकील रहे.
अगस्त 1992 से जुलाई 1993 तक वे बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त सरकारी अभियोजक रहे। बाद में, 17 जनवरी 2000 को उन्हें सरकारी अभियोजक नियुक्त किया गया.
14 नवंबर 2003 को उन्हें बंबई उच्च न्यायालय का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया, और 12 नवंबर 2005 को वे स्थायी न्यायाधीश बने. इसके बाद 24 मई 2019 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश बनाया गया.
न्यायमूर्ति गवई उच्चतम न्यायालय की कई महत्वपूर्ण संविधान पीठों का हिस्सा रहे हैं.
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वे उस पांच सदस्यीय पीठ में शामिल थे जिसने दिसंबर 2023 में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाने के केंद्र के फैसले को सर्वसम्मति से सही ठहराया.
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वे चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक घोषित करने वाली संविधान पीठ में भी शामिल थे.
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उन्होंने विमुद्रीकरण (500 और 1000 रुपये के नोटों को अमान्य करने) के 2016 के निर्णय को 4:1 बहुमत से वैध ठहराने वाली पीठ में भी भाग लिया.
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इसके अलावा, उन्होंने अनुसूचित जातियों में उप-वर्गीकरण को वैध ठहराने वाली सात सदस्यीय पीठ में भी अहम भूमिका निभाई, जिसमें 6:1 के बहुमत से निर्णय आया.
न्यायमूर्ति गवई की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने यह भी निर्देश दिया कि किसी भी संपत्ति को कारण बताओ नोटिस दिए बिना ध्वस्त नहीं किया जा सकता. पीड़ित पक्ष को जवाब देने के लिए कम से कम 15 दिन का समय देना अनिवार्य है.
वर्तमान में वह पर्यावरण, वन, वन्यजीव और वृक्षों की सुरक्षा से जुड़े मामलों की सुनवाई करने वाली पीठ का भी नेतृत्व कर रहे हैं.न्यायमूर्ति गवई की नियुक्ति न केवल न्यायिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक विविधता के लिहाज से भी एक ऐतिहासिक कदम मानी जा रही है.