दिल्ली
बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर विपक्षी 'इंडिया' गठबंधन के दलों ने निर्वाचन आयोग से मुलाकात की और इस प्रक्रिया पर गहरी आपत्ति जताई। नेताओं ने चेताया कि अगर यह प्रक्रिया जारी रही तो राज्य के दो करोड़ से अधिक मतदाता अपने मताधिकार से वंचित हो सकते हैं।
कांग्रेस, राजद, सपा, माकपा, भाकपा (माले) लिबरेशन समेत 11 विपक्षी दलों के प्रतिनिधियों ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार से मुलाकात कर SIR प्रक्रिया को जल्दबाज़ी और लोकतंत्र विरोधी बताया।
कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा,“बिहार जैसे विशाल और विविध राज्य में इस तरह की प्रक्रिया लागू करना संविधान के मूल ढांचे पर हमला है। अगर गरीब, दलित, प्रवासी, बाढ़ प्रभावित या आदिवासी वर्ग अपने और अपने माता-पिता के जन्म प्रमाण पत्र नहीं दिखा पाए, तो वे वोटर लिस्ट से बाहर हो जाएंगे।”
उन्होंने चेताया कि “जब चुनाव शुरू हो जाएंगे तब कोई भी अदालत इस तरह की नागरिक याचिकाओं की सुनवाई नहीं करेगी। यह लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा है।”
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने भी X (पूर्व ट्विटर) पर तीखा हमला बोला। उन्होंने लिखा: “जैसे 2016 में प्रधानमंत्री की नोटबंदी ने अर्थव्यवस्था को बर्बाद किया, वैसे ही 2025 में चुनाव आयोग की ‘वोटबंदी’ बिहार और देश के लोकतंत्र को तहस-नहस कर देगी।”
सिंघवी ने याद दिलाया कि 2003 में जब पिछली बार इस तरह की समीक्षा हुई थी, तब आम चुनाव एक साल दूर थे और विधानसभा चुनाव दो साल।
“लेकिन अब चुनाव से चंद महीने पहले यह कवायद क्यों? किसके इशारे पर?”
सवालों की बौछार
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क्या 2003 से अब तक हुए सभी चुनाव फर्जी थे?
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क्या आधार कार्ड पर्याप्त नहीं?
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क्या 1987 से 2012 के बीच जन्मे मतदाताओं के माता-पिता के जन्म प्रमाण पत्र भी ज़रूरी होंगे?
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क्या चुनाव आयोग जानबूझकर गरीबों को वंचित करना चाहता है?
राजद नेता मनोज झा ने पूछा,“क्या यह कवायद संदिग्ध मतदाताओं को हटाने के नाम पर वोटर सर्जरी है?”भाकपा (माले) नेता दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि बिहार के लगभग 20% लोग रोजगार के लिए राज्य से बाहर रहते हैं।
“चुनाव आयोग कहता है कि केवल ‘सामान्य निवासी’ को मताधिकार मिलेगा। क्या प्रवासी अब बिहार के वोटर नहीं रहेंगे?”
बिहार कांग्रेस अध्यक्ष राजेश कुमार ने कहा,“चर्चा के नाम पर आयोग सिर्फ अपनी बात कहता रहा, हमारी बात सुनने को तैयार नहीं था। ये SIR नहीं, लोकतंत्र पर सीधा हमला है।”
उन्होंने इसे ‘निर्वाचन आयोग का तुगलकी फरमान’ करार दिया और आरोप लगाया कि आयोग एक रणनीति के तहत 20% वोटरों को वोट के अधिकार से वंचित करना चाहता है।
सिंघवी ने यह भी खुलासा किया कि आयोग ने राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की संख्या सीमित करने और सिर्फ पार्टी अध्यक्षों को अनुमति देने की शर्तें रखीं, जिससे संवाद बाधित हुआ।
उन्होंने कहा, “पहली बार राजनीतिक दलों के नेताओं को आयोग के दरवाज़े पर इंतज़ार कराया गया और ज़्यादा संख्या में प्रवेश से रोका गया। इससे लोकतांत्रिक संवाद में बाधा आती है।”
बिहार में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले चुनाव आयोग की यह प्रक्रिया राजनीतिक और संवैधानिक बहस का बड़ा मुद्दा बन गई है। विपक्ष इसे वोटबंदी बता रहा है, जबकि आयोग इसे मतदाता सूची की शुद्धि कह रहा है। लेकिन ज़मीनी सच्चाई यह है कि अगर करोड़ों लोग दस्तावेज़ों के अभाव में वोट नहीं डाल पाए, तो देश के लोकतंत्र पर गहरा असर पड़ेगा।
बिहार में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले चुनाव आयोग की यह प्रक्रिया राजनीतिक और संवैधानिक बहस का बड़ा मुद्दा बन गई है। विपक्ष इसे वोटबंदी बता रहा है, जबकि आयोग इसे मतदाता सूची की शुद्धि कह रहा है। लेकिन ज़मीनी सच्चाई यह है कि अगर करोड़ों लोग दस्तावेज़ों के अभाव में वोट नहीं डाल पाए, तो देश के लोकतंत्र पर गहरा असर पड़ेगा।