आपातकालीन का सबक

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 25-06-2021
आपातकालीन का सबक
आपातकालीन का सबक

 

मासूम देहलवी / नई दिल्ली

बात थोड़ी पुरानी है. इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री थीं. 1971के पाकिस्तान के साथ युद्ध को चार साल से भी कम समय बीता था. तभी वह सब कुछ हुआ जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी.जब पाकिस्तान के साथ युद्ध छिड़ा, तब अटल बिहारी वाजपेयी उस समय विपक्षी जनसंघ (उसी पार्टी ने बाद में भाजपा का रूप ले लिया) के नेता थे. संसद में खड़े होकर इंदिरा गांधी के साहस की तारीफ करते हुए उन्हंे मां दुर्गा के रूप में वर्णित किया था. मगर कुछ दिनों बाद ही हीरो विलेन बन गया.

तब वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडीस और उस समय के सबसे शक्तिशाली समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण सहित देश में विपक्ष का लगभग पूरा राजनीतिक नेतृत्व सलाखों के पीछे पहुंचा दिया गया था.

राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. प्रेस को गंभीर रूप से सेंसर कर दिया गया था. भारतीय संविधान में वर्णित सभी मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए थे. संसद को रबर स्टैंप में तब्दील कर दिया गया था. देश तानाशाही की यात्रा पर निकल पड़ा था.

इतिहास बड़ी अजीब चीज है. इसे पढ़कर ऐसा लगता है कि यह अच्छा हुआ था.आपातकाल की कहानी 1971में शुरू हुई थी. इंदिरा गांधी के चुनाव को उनके प्रतिद्वंद्वी राज नारायण ने अदालत में चुनौती दी थी. इंदिरा गांधी देश की एकमात्र प्रधानमंत्रीथीं, जो अपने गृहनगर इलाहाबाद में एक मामले में अदालत में पेश हुईं, जहां वह पली-बढ़ी थीं.

लंबी सुनवाई के बाद, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए उनके चुनाव को रद्द कर दिया कि उन्होंने अपने अभियान में सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया था. आरोपों की प्रकृति आज के मानकों से अधिक गंभीर नहीं थी. कई लोगों को इसपर आश्चर्य हो सकता है. यदि प्रधानमंत्री सरकारी तंत्र का उपयोग नहीं करेंगे, तो कौन करेगा ?

लेकिन जैसा कि हमने पहले कहा, वह एक अलग युग था. एक बेहद ताकतवर प्रधानमंत्री के खिलाफ हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया था. इंदिरा गांधी ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को बरकरार रखा.

इस पृष्ठभूमि में, जयप्रकाश नारायण ने दिल्ली में एक विशाल रैली की. क्रांतिकारी भाषण दिए. इंदिरा गांधी के लिए प्रधानमंत्री के पद पर बने रहना कठिन हो गया था, इसलिए उन्होंने संसद और उनके मंत्रिमंडल को विश्वास में लिए बिना 25जून, 1975को आपातकाल की स्थिति घोषित कर दी.

रातों-रात देश के शीर्ष नेतृत्व को गिरफ्तार कर लिया गया. अभिव्यक्ति की आजादी अब सपना नहीं रहा. सरकार के खिलाफ बोलने वाले को जेल भेज दिया गया. लोकतंत्र संविधान के पन्नों तक सिमट कर रह गया.

इंदिरा गांधी ने कहा कि ‘‘देश को विदेशी और घरेलू ताकतों से बचाने के लिए आपातकाल लगाया गया है, लेकिन सच्चाई यह है कि वह किसी भी कीमत पर सत्ता में रहना चाहती थीं.‘‘सर्वविदित है कि आपातकाल के 21महीनों के दौरान देश में कई अत्याचार हुए, लेकिन इन 21महीनों ने देश की राजनीति को हमेशा के लिए बदल कर रख दिया.

फरवरी 1977में, इंदिरा गांधी ने अंततः आपातकाल की समाप्ति की घोषणा की. मार्च में चुनाव हुए, तो लोगों ने कांग्रेस को आपातकालीन रिपोर्ट कार्ड सौंप दिया और आजादी के बाद पहली बार देश में एक गैर-कांग्रेसी सरकार का गठन किया गया. .

इंदिरा गांधी खुद चुनाव हार गईं (वह राज नारायण से हार गईं) और उनके बेटे संजय गांधी जिन्हें आपातकाल की ज्यादतियों के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार माना जाता है.आपातकाल के दौरान जो हुआ वह एक लंबी कहानी है. वह विवरण फिर कभी. लेकिन उसके बाद की कहानी उतनी ही दिलचस्प है. सीखने के लिए कई सबक हैं.

सबसे बड़ा सबक यह कि मतदाता राजनेताओं को बहुत जल्दी माफ कर देते हैं. उन्हें लगता है कि इनसे किसी बड़े की उम्मीदें नहीं की जानी चाहिए.प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई और बाद में चैधरी चरण सिंह के नेतृत्व में जनता पार्टी की ‘खिचड़ी सरकार‘ केवल तीन साल तक चली. शायद यह एक कारण है .

इसे खिचड़ी सरकार कहा जाता था, क्योंकि इसमें वाजपेयी और आडवाणी से लेकर मोरारजी देसाई तक सभी राजनीतिक विचारधाराओं के लोग थे, जिनमें कोई राजनीतिक वैचारिक समानता नहीं थी.खैर, तीन साल बाद, फिर से चुनाव हुए. इंदिरा गांधी भारी बहुमतों से सत्ता में लौटीं. 1984तक प्रधानमंत्री रहीं. उनकी स्वर्ण मंदिर में ऑपरेशन ब्लू स्टार के तहत एक सैन्य अभियान के कारण उनके सिख सुरक्षा गार्डों ने हत्या कर दी थी.

यह एक ऐसा समय था जब देश में आपातकाल की घोषणा की गई थी, लेकिन तीन साल के भीतर लोगों को लगने लगा कि इंदिरा गांधी जैसी मजबूत नेता ही भारत को संभाल सकती है. आज लगभग यही बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में कही जाती है.

बड़ी संख्या में मतदाताओं को लगता है कि नरेंद्र मोदी भारत का चेहरा बदल रहे हैं. केवल वे ही ऐसा कर सकते हैं. आज ही के दिन आपातकाल लागू हुआ था. भारत में विपक्ष लगभग पूरी तरह से विखंडित हो गया है. नेता अधिक और अनुयायी कम हैं.

जो लोग सोचते हैं कि कोरोना वायरस के दौरान नरेंद्र मोदी को सरकार की अक्षमता का खामियाजा भुगतना पड़ेगा, उन्हें इतिहास देखना चाहिए. टीकाकरण अब तेजी से प्रदान किया जा रहा है.

यह लेखक के अपने विचार हैं