डोंगरीः हिंदू, ईसाई, मुस्लिम ने एक साथ याद की हजरत इमाम हुसैन की शहादत

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 04-08-2022
डोंगरीः हिंदू, ईसाई, मुस्लिम ने एक साथ याद की हजरत इमाम हुसैन की शहादत
डोंगरीः हिंदू, ईसाई, मुस्लिम ने एक साथ याद की हजरत इमाम हुसैन की शहादत

 

राकेश चौरासिया / नई दिल्ली-मुंबई

दक्षिण मुंबई में शिया मुसलमान मुहर्रम के दौरान शांतिपूर्ण जुलूस के लिए अन्य समुदायों के साथ मिलकर काम करते हैं. डोंगरी में स्थित उमरखाड़ी सांप्रदायिक सद्भाव का एक ऐसा उदाहरण बन गया है, जहां धार्मिक आयोजनों के दौरान हिंदू, ईसाई और मुसलमान एक दूसरे की मदद करते हैं.

मिड-डे डॉट कॉम से बात करते हुए, अखिल भारतीय इदारा-ए-तहाफुज-ए-हुसैनियत (एक शिया मुस्लिम प्रीमियर संगठन) के महासचिव हबीब नासर, जो रोज-ए-अशूरा पर सामूहिक जुलूस आयोजित करने के लिए जाने जाते हैं. डोंगरी से राय रोड तक मुहर्रम के 10वें दिन इमाम हुसैन के लाखों मातम करने वालों का कहना है, ‘‘यह शोक का दिन है और हम लोगों को आगे आने और यजीद के हाथों पैगंबर मुहम्मद के निर्दोष परिवार पर अत्याचार का अनुभव करने की सलाह देते हैं.’’

हबीब ने कहा, ‘‘रोज-ए-अशूरा जुलूस, जिसमें लगभग 12 लाख शोक मनाने वालों की संख्या है, एक सदी पुराना है और भारत में (किसी भी अवसर पर) शिया मुसलमानों की सबसे बड़ी सभाओं में से एक है.’’

डोंगरी में मस्जिदों, इमामबाड़ों और दरगाहों की एक संचयी जनसांख्यिकी है, जिसमें बाबर अली इमामबाड़ा को जैनबिया इमामबाड़ा, बकारिया इमामबाड़ा, मुगल मस्जिद को मस्जिद ईरानी, इमामिया मस्जिद, फोटोवत, कैसरबाग इमामबाड़ा आदि भी कहा जाता है.

हबीब ने कहा, ‘‘मुहर्रम के दौरान इमाम हुसैन के नाम पर भोजन, पानी, शर्बत, जूस, मिठाई, मिष्ठान, फल और अन्य खाने के साथ सभी धर्मों के लोगों का स्वागत किया जाता है, क्योंकि उन्हें, उनके परिवार और साथियों को भूख और प्यास के लिए मजबूर किया गया था. माहौल विनम्र और मानवीय हो जाता है, डोंगरी और दक्षिण मुंबई के सभी कोनों और विशेष रूप से उमरखाड़ी में भाईचारा और उपलब्धि देखी जाती है.’’

उन्होंने आगे कहा, ‘‘दुनिया भर में मुहर्रम की पहली से 10 तारीख तक, अशूरा के दिन, पैगंबर मुहम्मद के पोते इमाम हुसैन और उनके परिवार पर सही और गलत, उत्पीड़ित और अत्याचार के बीच की लड़ाई को मजबूर किया गया था. मुंबई में, मुहर्रम को बड़े पैमान पर मनाया जाता है. शिया मुसलमान यहां पूरे महाराष्ट्र और डोंगरी से आते हैं. मुहर्रम के दौरान लाखों शोक मनाने वाले लोग अपना सम्मान देने आते हैं.’’

उमरखाड़ी इलाके में हिंदू भी शिया मुसलमानों से हाथ मिलाते हैं. वे शोक मनाते हैं और इमाम हुसैन को श्रद्धांजलि देते हैं. वे कर्बला के शहीदों की याद में प्यासे लोगों के लिए छबील भी बनाते हैं. वे क्षेत्र में आगंतुकों को मिठाई और अन्य मिष्ठान्न वितरित करते हैं. इस इलाके में सैकड़ों जुलूस, उपदेश, कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं.

स्थानीय निवासी मंगेश पवार (52) ने कहा, ‘‘मैं 50 से अधिक वर्षों से उमरखाड़ी में रह रहा हूं और मुहर्रम के दौरान, राज्य भर से लोग डोंगरी आते हैं. उमरखाड़ी में भी भीड़ होती है. हम भी सुचारू रूप से स्मरणोत्सव में शामिल होते हैं, जैसे वे मदद करते हैं हमारे कार्यक्रमों जैसे गणेश उत्सव और डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर जयंती, महाराष्ट्र दिवस और अन्य धार्मिक त्योहारों के दौरान.’’