आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
उच्चतम न्यायालय ने केंद्र को निर्देश दिया कि वह बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के मामलों से विशेष रूप से निपटने के लिए ‘‘सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर’’ समर्पित पॉक्सो अदालतें स्थापित करे.
न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पी बी वराले की पीठ ने बृहस्पतिवार को कहा कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के मामलों के लिए विशेष अदालतों की संख्या अपर्याप्त होने के कारण, कानून के तहत सूनवाई को पूरा करने के लिए निर्धारित समयसीमा का पालन नहीं हो पा रहा है.
पीठ ने कहा, ‘‘इसलिए यह अपेक्षा की जाती है कि भारतीय संघ और राज्य सरकारें पॉक्सो मामलों की जांच से जुड़े अधिकारियों को संवेदनशील बनाने के लिए उचित कदम उठाएंगी और सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर पॉक्सो मामलों की सुनवाई के लिए समर्पित अदालतें भी बनाई जाएंगी.’’ शीर्ष अदालत ने कानून में निर्धारित अनिवार्य अवधि के भीतर आरोपपत्र दाखिल करने के अलावा निर्धारित समय सीमा के भीतर मुकदमे की सुनवाई पूरा करने का भी निर्देश दिया.
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अधिकांश राज्यों ने केंद्र से वित्त पोषण प्राप्त कर पॉक्सो मामलों के लिए विशेष अदालतें स्थापित करने के निर्देशों का अनुपालन किया है, जबकि तमिलनाडु, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, महाराष्ट्र और कुछ अन्य राज्यों ने ऐसा नहीं किया है. ऐसे मामलों की बड़ी संख्या को देखते हुए अधिक पॉक्सो अदालतों की आवश्यकता है.
शीर्ष अदालत ने इससे पहले वरिष्ठ अधिवक्ता एवं न्यायमित्र वी गिरी और वरिष्ठ अधिवक्ता उत्तरा बब्बर को पॉक्सो अदालतों की स्थिति पर राज्यवार ब्यौरा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था. उच्चतम न्यायालय एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें बच्चों के यौन शोषण की घटनाओं की संख्या में चिंताजनक वृद्धि को रेखांकित किया गया था.