सोशल मीडिया का बढ़ता इस्तेमाल, कहीं आप ‘फोमो’ के शिकार तो नहीं ?

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 10-01-2023
सोशल मीडिया का बढ़ता इस्तेमाल, कहीं आप ‘फोमो’ के शिकार तो नहीं ?
सोशल मीडिया का बढ़ता इस्तेमाल, कहीं आप ‘फोमो’ के शिकार तो नहीं ?

 

आवाज द वॉयस / नई दिल्ली

सोशल मीडिया जिंदगी का हिस्सा बन चुका है. इस पर लोगों के हजारों दोस्त हैं. वो चर्चाएं करते हैं. तस्वीरें साझा करते हैं. मगर क्या ये संपर्क या रिश्ते दोस्ती या रिश्तेदारी में बदल सकती है ? कहीं हम अपना अधिक समय सोशल मीडिया पर देकर खुद को नुकसान तो नहीं पहुंचा रहे हैं ? ये अहम सवाल हैं.

एक रिपोर्ट में इन सवालों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है, जिसमें बताया गया है कि कैसे सोशल मीडिया मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बर्बाद कर रहा है. इसका किस हद तक इस्तेमाल किया जाना चाहिए.

सोशल मीडिया से डिप्रेशन

यदि आप सोशल मीडिया पर घंटों समय बिताने के बाद दुखी, असंतुष्ट और अकेला महसूस करते हैं, तो आपको अपने व्यवहार की जांच करनी चाहिए. आप एफओएमओ यानी मानसिक रूप से पीड़ित हो सकते हैं.

mobile

एफओएमओ क्या है?

यह अंग्रेजी के शब्द फीयर ऑफ मिसिंग आउट का संक्षिप्त नाम है, जो आपको वाहन चलाते समय, यहां तक कि वॉशरूम जाते समय भी आपके मोबाइल तक पहुंचने पर मजबूर कर देता है. आप में यह डर पैदा करता है कि आपको सोशल मीडिया पर क्या चल रहा है, अगर इसकी पूरी जानकारी नहीं है, तो आप कार्यालय में चर्चा में शामिल नहीं हो सकते. ऐसे में आपको आलसी या बेखबर करार दिया जा सकता है.

सोशल मीडिया के नकारात्मक पहलू

मानसिक स्वास्थ्य पर सोशल मीडिया के दीर्घकालिक प्रभावों की जांच करने वाले अध्ययनों से पता चलता है कि जो लोग इस पर बहुत अधिक समय व्यतीत करते हैं, वे अवसाद, चिंता, अकेलापन और अन्य नकारात्मक बीमारियों को जन्म दे सकते हैं.हाल के शोध बताते हैं कि फेसबुक, स्नैपचौट और इंस्टाग्राम के ज्यादा इस्तेमाल से अकेलापन  बढ़ता है.

धोखा

हर कोई जानता है कि सोशल मीडिया पर दिखने वाली तस्वीरें जरूरी नहीं कि वास्तविक हों. फिल्टर का इस्तेमाल कर बनाई गई हों, इसलिए बेहतर है कि किसी की तुलना खुद से न करें.इसी तरह, हर कोई अपने जीवन के उज्ज्वल पहलुओं को उजागर करता है. नकारात्मक को साझा करने से बचता है, जिससे दूसरों को लगता है कि सभी समस्याएं इसकी अकेली हैं. बाकी दुनिया खुश है. ऐसे में आप निराशा का शिकार हो सकते हैं.

अकेलेपन का अहसास

पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय के हालिया अध्ययन से पता चला है कि फेसबुक, स्नैपचौट और इंस्टाग्राम के भारी उपयोग से कुछ हद तक अकेलापन की भावना बढ़ जाती है.

facebooke

खुला संवाद

मनुष्य को मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए निरंतर संचार की आवश्यकता होती है. जिस व्यक्ति से आप मिल और बातचीत कर खुश होते हैं, उसकी बातें ऑनलाइन चौट से पढ़ना पसंद नहीं करेंगें.सोशल मीडिया में अफवाहों समेत ये बातें भी चलती रही हैं और कई बार अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए ऐसा किया जाता है.

ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म पर हानिकारक अफवाहें और झूठे रुझान भी बनाए जाते हैं, जिनका भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है.

कम नींद आना

वैसे तो सोशल मीडिया के आदी लोग दिन भर इससे जुड़े रहते हैं, लेकिन देर रात तक ऑनलाइन रहना अच्छा नहीं है. इससे नींद प्रभावित होती है. लैपटॉप और फोन की स्क्रीन को ज्यादा देर तक देखने से आंखों की रोशनी पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है.विशेषज्ञ कहते हैं कि हर समय सोशल मीडिया से जुड़े रहना नकारात्मकता को तो बढ़ाता ही है दूसरी बीमारियों का भी जन्म देता है.