आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
एक नई वैश्विक स्टडी में सामने आया है कि अगर कोई व्यक्ति वयस्क जीवन के किसी भी पड़ाव पर शारीरिक रूप से सक्रिय जीवनशैली अपनाता है, तो उसकी समग्र मृत्यु दर, विशेष रूप से हृदय रोग से मरने का खतरा काफी हद तक कम हो सकता है. यह शोध ब्रिटिश जर्नल ऑफ स्पोर्ट्स मेडिसिन में प्रकाशित हुआ है.
शोध में पाया गया कि जो लोग लगातार सक्रिय रहते हैं, उनकी मौत का जोखिम 30 से 40 प्रतिशत तक घट जाता है, जबकि जो लोग जीवन में बाद में सक्रिय होते हैं, वे भी 20 से 25 प्रतिशत तक कम मृत्यु दर का लाभ उठाते हैं.
कभी भी शुरू करें, फायदेमंद है
शोधकर्ताओं का कहना है कि यह मान्यता गलत है कि व्यायाम का लाभ केवल तभी मिलता है जब आप इसे युवावस्था से अपनाते हैं। उनका निष्कर्ष साफ़ है — "शारीरिक गतिविधि की शुरुआत वयस्कता के किसी भी चरण में की जाए, वह जीवन प्रत्याशा बढ़ा सकती है।" यानी शुरुआत देर से भी की जाए, तब भी यह सेहत के लिए फायदेमंद होती है. इन दोनों का संयोजन करना चाहिए, लेकिन अब तक की अधिकतर स्टडीज़ केवल एक समय की गतिविधि को मापती थीं. इस नए शोध में पहली बार व्यक्तिगत जीवन में गतिविधि के बदलते पैटर्न और उसके कुल प्रभाव को ध्यान में रखते हुए विश्लेषण किया गया.
अध्ययन के बारे में
इस स्टडी के लिए शोधकर्ताओं ने 357 से लेकर 65 लाख प्रतिभागियों वाली 85 अंतरराष्ट्रीय स्टडीज़ को मिलाकर विश्लेषण किया. इनमें से: 59 स्टडीज़ ने जीवनभर के फिज़िकल एक्टिविटी पैटर्न पर ध्यान दिया, 16 ने अलग-अलग स्तरों के फायदे देखे, 11 ने कुल गतिविधि का मृत्यु दर पर असर देखा.
प्रमुख निष्कर्ष
जो लोग हमेशा सक्रिय रहे, उनकी किसी भी कारण से मौत की संभावना 30–40% कम थी. जिन्होंने बाद में जाकर एक्टिविटी बढ़ाई, उनमें यह जोखिम 20–25% कम देखा गया. जो लोग पूरी तरह निष्क्रिय से सक्रिय हुए, उनमें मृत्यु दर 22% तक कम हो गई. लीज़र टाइम में व्यायाम बढ़ाने से मौत का जोखिम 27% तक घटा. वहीं, जो लोग पहले सक्रिय थे लेकिन बाद में निष्क्रिय हो गए, उनमें कोई लाभ नहीं दिखा.
हृदय रोग से मृत्यु के जोखिम में कमी ज्यादा स्पष्ट रूप से देखी गई — जो लोग लगातार सक्रिय रहे, उनमें 40% कम मौतें हुईं, जबकि कैंसर के मामले में यह 25% कम रहा। हालांकि, कैंसर से मृत्यु के आंकड़े बहुत निर्णायक नहीं हैं.
ज़्यादा व्यायाम, लेकिन सीमित अतिरिक्त लाभ
शोध से यह भी सामने आया कि यदि कोई व्यक्ति अनुशंसित सीमा से अधिक व्यायाम करता है, तो भी अतिरिक्त लाभ बहुत थोड़ा ही होता है। यानी, "ज्यादा" से ज़्यादा ज़रूरी है "नियमित और पर्याप्त" गतिविधि.
दिलचस्प बात यह रही कि भले ही कोई व्यक्ति साप्ताहिक अनुशंसित सीमा तक न भी पहुंचे, फिर भी थोड़ी गतिविधि भी निष्क्रियता से बेहतर साबित हुई। यानी "कुछ नहीं" से "थोड़ा" बहुत बेहतर है.
सीमाएं भी मानी गईं
हालांकि शोधकर्ताओं ने यह भी माना कि इस अध्ययन की कुछ सीमाएं थीं। अधिकांश स्टडीज़ में व्यक्तियों की स्वयं-रिपोर्ट की गई गतिविधि पर भरोसा किया गया, जो हमेशा सटीक नहीं होती.
यह शोध उन लाखों लोगों के लिए एक उम्मीद की किरण है जो सोचते हैं कि अब एक्सरसाइज़ शुरू करने का कोई फायदा नहीं होगा। वैज्ञानिक रूप से अब यह साबित हो गया है कि शारीरिक रूप से सक्रिय रहना किसी भी उम्र में न केवल स्वस्थ जीवन की कुंजी है, बल्कि यह मृत्यु दर कम करने और जीवनकाल बढ़ाने में भी मदद करता है.