A new technical system will measure blood sodium level without a needle, scientists presented a new discovery
आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
वैज्ञानिकों ने एक क्रांतिकारी तकनीक विकसित की है, जो अब बिना सुई चुभाए — यानी रक्त निकाले बिना — शरीर में सोडियम के स्तर को ट्रैक कर सकेगी. इस तकनीक से भविष्य में बीमारियों की पहचान और इलाज पहले से ज्यादा सुरक्षित, तेज़ और आसान हो सकता है.
चीन की तिआनजिन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक झेन तिआन और उनकी टीम ने टेरेहर्ट्ज़ (Terahertz) रेडिएशन और ऑप्टोअकॉस्टिक डिटेक्शन तकनीक को मिलाकर यह सिस्टम तैयार किया है। यह नॉन-इनवेसिव सिस्टम त्वचा के आर-पार होकर ब्लड में सोडियम की मात्रा को रियल टाइम में माप सकता है.
टेरेहर्ट्ज़ रेडिएशन वह इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव है, जो माइक्रोवेव और मिड-इंफ्रारेड स्पेक्ट्रम के बीच आती है. इसका फायदा यह है कि यह ऊर्जा में कम होती है, जीवित ऊतकों को नुकसान नहीं पहुंचाती, और शरीर के अंदर के संरचनात्मक बदलावों को पहचानने में सक्षम होती है.
बीमारी की पहचान में हो सकती है मदद
सोडियम स्तर की सटीक जानकारी डिहाइड्रेशन, किडनी डिज़ीज़, हार्मोनल या न्यूरोलॉजिकल गड़बड़ियों की पहचान में मदद कर सकती है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, यह तकनीक खासतौर पर उन गंभीर मरीजों के लिए उपयोगी हो सकती है, जिनके सोडियम स्तर में अचानक बदलाव जानलेवा साबित हो सकता है.
झेन तिआन ने बताया, “हमने पहली बार टेरेहर्ट्ज़ वेव्स का उपयोग करते हुए शरीर के अंदर आयन की लाइव डिटेक्शन की है। यह तकनीक अब क्लिनिकल इस्तेमाल की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है.”
माउस और इंसानों पर हुआ परीक्षण
टीम ने इस सिस्टम का पहले परीक्षण जीवित चूहों पर किया, जहां उन्होंने उनके कान की त्वचा के नीचे रक्त वाहिकाओं में सोडियम स्तर में बदलाव को कुछ मिलीसेकंड के भीतर मापा। इसके बाद उन्होंने कुछ स्वस्थ मानव स्वयंसेवकों पर भी परीक्षण किया, जिसमें हाथ की रक्त वाहिकाओं में सोडियम की मात्रा को नॉन-इनवेसिव तरीके से मापा गया। यह देखा गया कि शरीर में रक्त प्रवाह जितना अधिक था, सिग्नल भी उतना ही अधिक स्पष्ट आया.
कुछ परीक्षणों में त्वचा को 8 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा किया गया ताकि पानी से आने वाले ऑप्टोअकॉस्टिक शोर को कम किया जा सके. हालांकि वैज्ञानिक अब ऐसे तरीकों की खोज कर रहे हैं, जिनसे कूलिंग की जरूरत ही न पड़े और पानी की रुकावट के बावजूद भी स्पष्ट माप मिल सके.
क्लिनिकल उपयोग के लिए आगे की तैयारी
अब वैज्ञानिक यह पता लगाने में जुटे हैं कि शरीर के किन हिस्सों — जैसे कि मुंह का अंदरूनी भाग — को सबसे उपयुक्त डिटेक्शन साइट बनाया जा सकता है, जहां सटीक और लगातार माप संभव हो सके.
इसके अलावा वे यह भी देख रहे हैं कि सिग्नल प्रोसेसिंग में सुधार कर के सिस्टम को और अधिक व्यावहारिक और क्लिनिक के लिए उपयुक्त कैसे बनाया जा सकता है.
क्या है संभावनाएं?
अगर यह तकनीक पूरी तरह विकसित होती है, तो यह डायबिटीज़ की तरह ही एक पोर्टेबल सोडियम मॉनिटर के रूप में इस्तेमाल की जा सकती है, जिससे बार-बार ब्लड सैंपल देने की जरूरत नहीं रहेगी। यह विशेष रूप से उन मरीजों के लिए लाभकारी होगी, जिन्हें बार-बार इलेक्ट्रोलाइट्स की निगरानी करनी पड़ती है।
इस खोज को प्रतिष्ठित साइंस जर्नल Optica में प्रकाशित किया गया है और इसे हेल्थकेयर की दुनिया में गेम-चेंजर माना जा रहा है. टेरेहर्ट्ज़-ऑप्टोअकॉस्टिक तकनीक के जरिए वैज्ञानिकों ने एक ऐसी खिड़की खोली है, जो भविष्य में चिकित्सा की दुनिया में बड़ा बदलाव ला सकती है। यह तकनीक न सिर्फ सटीक है, बल्कि मरीजों के लिए दर्द रहित और सुविधाजनक भी है। यदि आगे के ट्रायल सफल होते हैं, तो यह तकनीक आने वाले समय में सोडियम मापने के तरीके को पूरी तरह बदल सकती है.