नई दिल्ली।
हिंदी सिनेमा में ‘सुपरस्टार’ का ताज सबसे पहले जिस अभिनेता के सिर सजा, वह थे राजेश खन्ना। पर्दे पर रोमांस, सफलता और शोहरत की चमक के पीछे उनकी निजी ज़िंदगी के आख़िरी दिन गहरे अकेलेपन और पीड़ा से भरे थे। जीवन के अंतिम दौर में वह इतने टूट चुके थे कि उन्होंने अपनी प्रेमिका से माफ़ी तक मांगी।
अपने करियर के स्वर्णिम काल में ‘काकाजी’ कहे जाने वाले राजेश खन्ना ने आराधना, अमर प्रेम जैसी फिल्मों से लोकप्रियता की ऊंचाइयों को छुआ। उनके जादू से समकालीन कलाकार भी प्रभावित थे। लेकिन यही अपार सफलता धीरे-धीरे उनके पतन की वजह भी बनी—पेशेवर असफलताएं बढ़ीं और निजी रिश्ते उलझते चले गए।
हाल ही में दिए गए एक साक्षात्कार में, उनके आख़िरी दिनों में उनके साथ रहीं अनीता आडवाणी ने उस दर्दनाक समय की झलक साझा की। बीमारी से जूझते हुए राजेश खन्ना अक्सर बेहद असहाय हो जाते थे। अनीता के अनुसार, वह कई बार कहते थे—“मैं अब और सहन नहीं कर सकता… मुझे मार डालो।” ये शब्द एक ऐसे सुपरस्टार की टूटन बयां करते हैं, जिसने कभी लाखों दिलों पर राज किया था।
राजेश खन्ना का मशहूर बंगला ‘आशीर्वाद’ उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा था। उनका सपना था कि उनके जाने के बाद यह घर एक संग्रहालय बने, जहां उनके सिनेमा-सफर की विरासत सहेजी जाए। अंतिम दिनों में जब किसी खरीदार ने 150 करोड़ रुपये में इसे खरीदने की पेशकश की, तो उन्होंने कड़ा विरोध किया। मानसिक और शारीरिक पीड़ा के बावजूद उन्होंने पैसों के बदले अपने सपने को बेचने से इनकार कर दिया।
निजी जीवन में, पत्नी डिंपल कपाडिया के साथ तनावपूर्ण रिश्ते और लगातार आती पेशेवर निराशाओं ने उनकी तन्हाई बढ़ा दी। हालांकि डिंपल और उनकी बेटियां अंतिम दिनों में उनसे मिलने आती थीं, लेकिन भीतर का खालीपन कम नहीं हुआ।
18 जुलाई 2012 को राजेश खन्ना इस दुनिया को अलविदा कह गए। शोहरत के शिखर से अकेलेपन की गहराई तक का उनका सफर, आज भी सिनेमा इतिहास की सबसे भावुक कहानियों में गिना जाता है।