100th Birth Anniversary of Desi Pasmanda Vibhuti Padmashree Mohammad Rafi: PM Modi's commendable initiative to honour the magician of music
डॉ फैयाज अहमद फैजी
हाल ही में भारत सरकार ने गायन के क्षेत्र में मोहम्मद रफी के योगदान को रेखांकित करने के लिए उनकी 100वीं जयंती के अवसर पर रुपये ₹ 100 का स्मारक सिक्का जारी करने की घोषणा की है।संगीत और फिल्मी दुनिया के साथ-साथ यह देशज पसमांदा के लिए गौरव और भावुक कर देने वाला विशेष ऐतिहासिक क्षण है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके 100वीं जयंती पर उनको संगीत का अद्भुत जादूगर बता कर विशेष श्रद्धांजलि दी थी। नरेन्द्र मोदी जी ने ग्रीक बच्ची और उसके परिवार द्वारा रफी जी के गीत "मधुबन में राधिका नाचे रे” वीडियो शेयर करके पूरे भारतवर्ष को भाव विभोर कर दिया था।
ज्ञात रहे कि भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने रफी को अपने घर बुलाकर रफी जी से "सुनो सुनो ए दुनिया वाले बापू की अमर कहानी" गंवाया था और उन्हें सम्मानित किया था। एक बार की घटना है कि जब एक इवेंट में जहां पंडित नेहरू भी उपस्थित थे रफी जी ने गाना "चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे गया"तो नेहरू जी के आंखों में आंसू आ गए थे।
पदम श्री रफ़ी जी की नाई की दुकान से स्वप्न नगरी मुंबई तक की सफल यात्रा अदभुत, अकल्पनीय, अनुकरणीय और प्रेरणादायी है।मोहम्मद रफी का जन्म अल्लाह राखी और अली मोहम्मद के घर 24 दिसम्बर 1924 को गाँव कोटला सुल्तान सिंह, अमृतसर,पंजाब में हुआ था। उन्हें गाँव घर में सब प्यार से फिक्को बुलाया करते थे।
गांव की गलियों में गाना गाते हुए एक फकीर को देखकर रफी ऐसे प्रभावित हुए कि रोजाना उसे सुनने का इंतजार करते थे। उस फकीर की नकल उतारते हुए रफी जी खुद गाना सीखा करते थे। 7 या 9 साल की उम्र में
रफी का परिवार लाहौर मे रहने लगा ।
रफी को उनके पिता ने उन्हें बड़े भाई के साथ पारिवारिक नाई की दुकान में काम पर लगा दिया। अब फिक्को नूर मोहल्ला, के भाटी गेट की दुकान पर नाई बन चुके थे और गुनगुनाते हुए लोगों के बाल काटना सीखने लगे लेकिन नियति को तो कुछ और ही मंजूर था।
इसी दुकान में पंडित जीवनलाल की नजर नाई फिक्को (मोहम्मद रफी) पर पड़ी थीं। हुवा यूँ कि जब पंडित जीवनलाल बाल कटवाने दुकान पर पहुंचे तब रफी किसी का बाल काटते हुए वारिस शाह का “हीर” गुनगुना रहे थे। इस आवाज को सुन कर पंडित जीवनलाल काफ़ी प्रभावित हुए। पंडित जीवनलाल जी ने उन्हें पंजाबी संगीत की ट्रेनिंग दी और उन्हें गायकी में माहिर कर दिया।
रफी जी ने मात्र 13 वर्ष की उम्र में ऑल-इंडिया एक्जीबिशन, लाहौर में पहली सार्वजनिक परफॉर्मेंस दी। ये मौका उन्हें संयोग से मिला था। दरअसल स्टेज पर बिजली ना होने पर उस जमाने के प्रसिद्ध गायक कुंदनलाल सहगल ने स्टेज पर गाने से इनकार कर दिया।
ऐसे में आयोजकों ने रफी जी को गीत गाने के लिए कहा। गाना सुनने बैठे दर्शकों में के एल सहगल भी थे ,गाना सुनकर उन्होंने भविष्यवाणी किया कि , ये लड़का एक दिन बड़ा गायक बनेगा जो आगे चलकर अक्षरशः सत्य साबित हुई।
उनके योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री, 6 फिल्मफेयर और नेशनल अवॉर्ड प्रदान किये गये। अगर नाई की दुकान में पंडित जीवनलाल की नजर 7-9 साल के नाई फिक्को (मोहम्मद रफी) पर ना पड़ती तो शायद कहानी कुछ और होती।
पदम श्री रफ़ी जी ने अपने जीवन मे रोमांटिक गाने, भजन, कव्वाली, हास्य गीत, ग़ज़लें, शास्त्रीय रचनाएँ, विलाप, "नशे में डूबे नायक" के गाने और देशभक्ति के गीत और लगभग हर तरह की विद्या मे अतुलनीय कलात्मकता और निपुणता के साथ गाने गाए हैँ।
उस समय फिल्मी गायक भजन गाने से परहेज किया करते थे, लेकिन रफी जी भजन के लिए सहर्ष तैयार रहते थे, इसी कारण उस दौर में रफी जी के पास अपने सह गायकों की अपेक्षा सबसे अधिक भजन गाने का कीर्तिमान था।
मोहम्मद रफी जी ने हिंदी समेत लगभग 13 भारतीय भाषाओं और इंग्लिश समेत लगभग 7 विदेशी भाषाओ में गाने गाए हैँ।यूं तो रफी जी के गाये सारे गीत ही बेमिसाल है फिर भी रफी जी के गाये गीत “मन तड़पत हरि दर्शन को आज” एक कालजयी रचना है।
यह एक सुखद संजोग है कि इस कालजयी रचना के तीनों मुख्य रचनाकार गायक रफी जी,शायर शकील बदायूनी जी,संगीतकार नौशाद जी देशज पसमांदा समाज से आते हैं।रफी जी अपनी परोपकारी कृत्यों दानवीरता और दयालु व्यक्तित्व के लिए भी विख्यात रहे हैं।
उदाहरण के लिए वह अपने पड़ोस में रहने वाली विधवा को मनीऑर्डर के जरिए पैसे भेजा करते थे । जब रफी की मौत के बाद पैसे आने बंद हो गए और तो वो विधवा पोस्ट ऑफिस में पूछने गई। तब उसे उस मनीऑर्डर के असली प्रेषक (रफी) के बारे में पता चला।
इस्लाम मजहब के अनुसार जब किसी को एक हाथ से दान दो तो दूसरे हाथ को पता नहीं चलना चाहिए। रफ़ी जी ने इस सिद्धांत को अक्षरशः चरितार्थ किया।एक बार उन्होंने अमेरिकी इम्पोर्टेड इंपाला कार खरीदी जो राइट हैंड ड्राइव वाली थी।
रफी जी का ड्राइवर राइट हैंड ड्राइविंग वाली कार नहीं चला पा रहा था। जब रफ़ी जी ने नया ड्राइवर रख लिया तो पुराने ड्राइवर सुल्तान का रोजगार कैसे चलेगा इसके लिए उन्होंने पुराने ड्राइवर को टैक्सी खरीदकर दी ताकि उसकी रोजी रोटी चल सके।
नये कलाकारों को प्रोत्साहन देने का कार्य भी रफ़ी जी बड़ी खूबी और कुशलता से करते थे।यह विडंबना ही है कि इतने बड़े कलाकार को भी देशज पसमांदा समाज से होने के कारण ऊंच नीच का दंश झेलना पड़ा। घटना कुछ यूं है कि एक बार महान गायक पद्म श्री रफ़ी जी पाकिस्तान गए थे।
वहां के एक प्रसिद्ध गायक ने पद्म श्री रफी जी को अपमानित करने के लिए होटल वाले को फोन करके कहा कि “सुना है तुम्हारे यहां रफी आया है? होटल वाले ने कहा, जी हां, इस पर उस गायन ने व्यंग करते हुए कहा कि फिर उससे पूछो कि वो मेरा बाल काटने कब आ रहा है।"
इस घटना के बाद रफी जी फिर कभी अशराफवाद के गढ़ पाकिस्तान नहीं गए।एक और घटना है कि जब इंदौर में पुरानी पलासिया मस्जिद के नव निर्माण के लिए धन इकट्ठा किया जा रहा था। अपने स्वभाव के अनुसार रफी जी ने ₹5000 जो उस समय एक बड़ा रकम था, दान में दिए थे लेकिन रफी जी के इस दान को यह कहते हुए अशराफवाद से ग्रसित मस्जिद प्रशासन ने वापस कर दिया कि रफी की कमाई नापाक और हराम है और इसका प्रयोग मस्जिद निर्माण में नहीं किया जा सकता है।
रफी जी को एक शांत सभ्य शालीन और दुसरो का बेहद सम्मान करने वाले व्यक्ति के रूप में जाना जाता था, इस घटना पर उन्होंने अपना आपा खो दिया और कहा था कि "अल्लाह ने मुझे बचपन से ही यह हुनर दिया है जिसे मैं पूरी मेहनत और ईमानदारी से करता हूं और यह दुनिया के सामने भी है फिर मेरी कमाई नापाक और हराम कैसे हो सकती है?
इस विषय पर दो राय हो सकती है। लेकिन अगर इस मामले में इस्लाम का मूल संदेश यही है तो सिर्फ अल्लाह ही जानता है कि किसकी कमाई जायज है और किसकी नाजायज।"मजहबी रूप से देखा जाए पीरों वलियों की मजारों और दरगाहों पर संगीत और सुरों की महफिल आम बात है।
स्वयं पैगंबर मोहम्मद साहब की प्रशंसा में गाए जाने वाले गीत, नात का आयोजन मुशायरों , मस्जिदो और मदरसों में आए दिन किए जाते हैं। सुंदर आवाज और सुर वालों को पुरुस्कृत करने का भी रिवाज रहा है।
इस्लाम में पैगंबर दाऊद को उनकी संगीत और गायन प्रतिभा के लिए जाना जाता है।
स्वयं पैगंबर मोहम्मद साहब अजान देने के लिए मधुर आवाज वालों को वरीयता दिया करते थे। उदाहरण के लिए मक्का विजय के उपरांत पैगम्बर मोहम्मद (स०) ने अबू महजूरा का चयन अजान के लिए उनके मधुर आवाज की विशेषता के कारण ही किया था।पैगम्बर मोहम्मद (स०) जब मक्का से मदीना हिजरत किया तब उनके स्वागत में गीत और संगीत गाये गए थे।
31 जुलाई 1980 को रात करीब 10ः25 बजे नाई की दुकान से भारत के दिल तक पहुंचने वाले मोहम्मद रफी को हार्ट अटैक आया और एक महान गायक इस संसार को अलविदा कह गया ।दूसरे दिन उन्हें जुहू के कब्रिस्तान में दफनाया गया। कुछ लोग श्रद्धा पूर्वक उनके क़ब्र से मिट्टी उठा कर अपने घरों मे रखने के लिए ले जा रहे थे।
अंतिम दर्शन और शव यात्रा मे लोगों का अपार समूह उमड़ आया था। भारत सरकार ने रफी के निधन पर दो दिनों का सार्वजनिक शोक घोषित किया था।देश के ऐसे महान सपूत की याद को जीवंत रखने के लिए सरकार द्वारा रुपये ₹ 100 का स्मारक सिक्का जारी करना उनकी 100वीं जयंती पर सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
(लेखक पेशे से चिकित्सक और पसमांदा मामलों के जानकार हैं)