मुंबई
प्रख्यात फिल्म निर्देशक मुजफ्फर अली का कहना है कि उनकी कालजयी फिल्म ‘उमराव जान’ समय के साथ अपनी कुछ चमक खो चुकी थी, लेकिन पुनरुद्धार के बाद यह फिल्म अब फिर से पूर्ण रूप से जीवंत हो उठी है। उन्होंने इस फिल्म की दोबारा रिलीज़ को अपने लिए एक गहरे भावनात्मक अनुभव के रूप में वर्णित किया।
रेखा अभिनीत यह फिल्म 1981में रिलीज़ हुई थी और अब 27जून को इसे फिर से सिनेमाघरों में प्रदर्शित किया जाएगा। फिल्म का रिस्टोरेशन कार्य राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (NFDC) और राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार (NFAI) ने राष्ट्रीय फिल्म विरासत मिशन के तहत किया है।
एक साक्षात्कार में मुजफ्फर अली ने कहा:"हम पीढ़ियों, भावनाओं, रिश्तों और समय के फासलों को जोड़ रहे हैं। यह कोई नई फिल्म नहीं है — यह वो फिल्म है जिसे शायद आपकी मां ने देखा होगा। यह दर्शकों के लिए भावनात्मक रूप से खास अनुभव है क्योंकि यह किसी ओटीटी प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध नहीं रही। रिस्टोरेशन से पहले इसकी चमक फीकी हो गई थी, लेकिन अब यह फिर से जीवंत हो गई है।"
लखनऊ में पले-बढ़े अली ने कहा कि ‘उमराव जान’ उनके लिए एक मौलिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध फिल्म रही है, जो अवध की तहज़ीब, एक स्त्री की पीड़ा और समाज की जटिलताओं को प्रामाणिक रूप से प्रस्तुत करती है।
उन्होंने कहा:"मेरी कोशिश थी कि मैं अवध को उसी तरह सजीव कर सकूं जैसे सत्यजीत रे ने बंगाल को अपनी फिल्मों में किया। उस समय अवध की संस्कृति को इस रूप में प्रस्तुत करने वाला कोई नहीं था, इसलिए मैंने यह जिम्मेदारी उठाई।”मुजफ्फर अली इससे पहले ‘गमन’, ‘आगमन’, ‘अंजुमन’ और ‘जानिसार’ जैसी अर्थपूर्ण फिल्मों का भी निर्देशन कर चुके हैं।
‘उमराव जान’, लेखक मिर्जा हादी रुसवा के ऐतिहासिक उपन्यास ‘उमराव जान अदा’ (1899) पर आधारित है। यह फिल्म अपने संवेदनशील कथानक, बेहतरीन गीत-संगीत और रेखा के यादगार अभिनय के लिए बेहद सराही गई। इस फिल्म में अमीरन की भूमिका निभाने के लिए रेखा को उनका पहला राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिला।
अली ने गर्व से कहा:"मुझे इस फिल्म के हर एक पल पर गर्व है। जब मैंने इसे बनाने का फैसला किया, तब से लेकर रेखा के चयन और संगीत तक — हर निर्णय मेरे दिल के बहुत करीब है और यादगार है।"