‘Panchayat Season 4’ Review: The story of Phulera entangled in politics, got mixed response on social media
अर्सला खान/नई दिल्ली
लंबे इंतज़ार के बाद अमेजन प्राइम वीडियो पर ‘पंचायत सीजन 4’ रिलीज़ हो गया है. इस वेब सीरीज़ ने अब तक के तीन सीज़नों के ज़रिए दर्शकों के दिल में जो जगह बनाई थी, अब चौथे सीज़न के ज़रिए फुलेरा गांव की कहानी एक नए मोड़ पर पहुंची है. हालांकि इस बार दर्शकों की राय थोड़ी बंटी हुई नज़र आ रही है — किसी को राजनीतिक पेंच दिलचस्प लगे, तो किसी को यह सीजन खिंचा हुआ और थकाऊ लगा.
क्या है इस बार की कहानी?
'पंचायत 4' की कहानी पूरी तरह गांव में होने वाले पंचायत चुनावों के इर्द-गिर्द घूमती है। मंजू देवी और क्रांति देवी के बीच राजनीतिक संघर्ष इस सीजन का मुख्य केंद्र है. वहीं सचिव अभिषेक त्रिपाठी (जितेंद्र कुमार) का किरदार, जो अब ज्यादा परिपक्व और गंभीर दिखता है, चुनावी रणनीति में प्रधान जी के साथ सक्रिय रूप से जुड़ा रहता है. लेकिन इस बार का क्लाइमैक्स चौंकाता है — प्रधान जी की हार और भूषण की जीत एक बड़े बदलाव का संकेत देती है.
रफॉर्मेंस और तकनीकी पक्ष
अभिनेता जितेंद्र कुमार हमेशा की तरह सादगी और सच्चाई से भरे नज़र आए। नीना गुप्ता (मंजू देवी) और रघुबीर यादव (प्रधान जी) ने भी अपने किरदारों में जान डाली है। वहीं चंदन रॉय (विकास) और फैसल मलिक (प्रह्लाद चाचा) ने इस बार ज़्यादा गंभीर और भावनात्मक पहलू सामने रखा.
बैकग्राउंड म्यूज़िक, गांव की सिनेमैटोग्राफी और संवाद लेखन हमेशा की तरह मजबूत रहा. लेकिन कुछ दर्शकों को लगा कि कहानी को जबरन खींचा गया, जिससे प्रभाव कुछ कमज़ोर हुआ.
‘पंचायत 4’ उन दर्शकों को पसंद आएगी जो ग्रामीण भारत की राजनीति, रिश्तों और बदलती सोच को धैर्य से देखना पसंद करते हैं. हालांकि, जो दर्शक तेज़ रफ्तार और ड्रामा की उम्मीद कर रहे हैं, उन्हें यह सीज़न थोड़ा निराश कर सकता है.