मोहम्मद हफीज फुरकानाबादी: शिक्षा, सामाजिक सौहार्द और बदलाव के एक जीवन की प्रेरक गाथा

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 24-06-2025
Mohammad Hafeez Furkanabadi: An inspiring story of a life of education, social harmony and change
Mohammad Hafeez Furkanabadi: An inspiring story of a life of education, social harmony and change

 

 
daम्मू-कश्मीर के डोडा ज़िले की सुरम्य घाटी, जहां पहाड़ों की गोद में शांति बसी है, वहीं एक नाम वर्षों से लोगों के दिलों में रोशनी की तरह चमक रहा है — मोहम्मद हफीज फुरकानाबादी. उनका जीवन सिर्फ एक शिक्षक का नहीं, बल्कि एक समाज सुधारक, एक मार्गदर्शक और एक कवि का है, जिनका मकसद शिक्षा और भाईचारे से समाज को संवारना रहा और वो अपने मकसद में खरे उतर रहे हैं.यहां प्रस्तुत है डोडा से दानिश अली की द चेंजमेकर्स की कड़ी की दूसरी रिपोर्ट. 

शिक्षा से आरंभ हुआ सफर

2 दिसंबर 1962 को डोडा के पास के गांव घाट में जन्मे हफीज फुरकानाबादी ने 1989 में अरबी में एमए की डिग्री प्राप्त की. 12वीं के बाद ही उन्होंने पढ़ाना शुरू कर दिया था. शुरुआती दौर में उन्होंने डोडा की रॉयल एकेडमी में पढ़ाया और फिर अन्य निजी स्कूलों में अरबी, उर्दू और अंग्रेज़ी के शिक्षक के रूप में अपनी सेवाएं दीं, लेकिन उनके लिए शिक्षा सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि समाज सेवा का माध्यम रहा. 
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15 जून 1995 को जब वे सरकारी शिक्षक नियुक्त हुए, तब उनकी पहली पोस्टिंग डोडा के हंच हाई स्कूल में हुई. वहां उन्होंने पाया कि कक्षाएं अधूरी थीं — खासकर लड़कियां स्कूल नहीं आ रही थीं. फिर क्या था उन्होंने हार नहीं मानी.
 
उन्होंने एक-एक घर जाकर माता-पिता को समझाया, बेटियों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया. धीरे-धीरे, लोग उनके मिशन से जुड़ते गए. उन्होंने सामाजिक सोच को बदला और शिक्षा को हर घर तक पहुंचाया.
 
बेटियों की शिक्षा को लेकर उनका हमेशा से एक ही संदेश रहा... 'शिक्षा सिर्फ अधिकार नहीं, रोशनी है'
 
 
ज़रूरतमंदों के लिए एक ट्रस्ट

हफीज साहब ने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर एक धर्मनिरपेक्ष ट्रस्ट की स्थापना की, जिसका उद्देश्य था ग़रीब बच्चों को मुफ़्त शिक्षा देना. ट्रस्ट ने न सिर्फ फीस माफ की, बल्कि यूनिफॉर्म, किताबें और जूते तक उपलब्ध कराए. उनका अपना घर भी विद्यार्थियों के लिए मुफ़्त ट्यूशन सेंटर बन गया.
 
मोहम्मद हफीज फुरकानाबादी विभिन्न अवसरों पर अलग-अलग मुद्रा में

उनकी उत्कृष्ट सेवाओं को देखते हुए 2011 में जम्मू-कश्मीर सरकार ने उन्हें 'सर्वश्रेष्ठ शिक्षक पुरस्कार' से नवाज़ा. यह सम्मान सिर्फ एक शिक्षक को नहीं, बल्कि एक समाजसेवी को दिया गया था, जो हर धर्म, जाति और वर्ग के बीच सेतु बनकर उभरे.
 
डोडा जैसे संवेदनशील क्षेत्र में, जहां सांप्रदायिक तनाव की घटनाएं सुर्खियां बनती रही हैं, हफीज साहब ने हमेशा भाईचारे का संदेश दिया. उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता को अपना मिशन बनाया और इस कारण हर समुदाय में उनका समान रूप से सम्मान हुआ. एक पूर्व छात्र ने कहा, 'वो पहले इंसानियत पढ़ाते हैं, फिर विषय'
 
लेखक, कवि और आध्यात्मिक चिंतक

हफीज फुरकानाबादी न केवल शिक्षक रहे, बल्कि एक संवेदनशील कवि और लेखक भी हैं. उनकी तीन किताबें — तंज़ील, मोमिन की नमाज़ और इंतेख़ाब — न सिर्फ पढ़ी जाती हैं, बल्कि शिक्षण संस्थानों में सुबह की प्रार्थनाओं का हिस्सा बन चुकी हैं. उनकी कविताओं की कुछ पंक्तियां आज भी गूंजती हैं.
 
'ए खुदा हम बे-कसों को ईशान दे,
इलाही तेरे ही करम का सहारा,
ए खुदा हम को तेरा सहारा मिले,
तारीफ उस खुदा की...'
 
 
सेवानिवृत्ति के बाद भी सेवा

दिसंबर 2022 में उन्होंने सरकारी सेवा से विदाई ली, लेकिन समाज सेवा से नहीं. विदाई समारोह में छात्रों, शिक्षकों और आम नागरिकों की भीड़ ने गवाही दी कि हफीज साहब की विरासत हमेशा जीवित रहेगी. वे आज भी बच्चों को पढ़ाते हैं, युवाओं को मार्गदर्शन देते हैं और समाज को जोड़ने का काम कर रहे हैं. उनका मानना है 'सेवानिवृत्ति तब होती है, जब इंसान समाज को देना बंद कर दे — और मैं अभी नहीं रुका हूं'. 
 
 
 
मोहम्मद हफीज फुरकानाबादी आज उस दुर्लभ व्यक्तित्व का नाम है, जो न सत्ता से पहचाने जाते हैं, न संपत्ति से — बल्कि अपने विचारों, शिक्षा के प्रति समर्पण और मानवीय मूल्यों से. वो आज भी डोडा की धरती पर चलती-फिरती प्रेरणा हैं, जिन्होंने न सिर्फ कक्षा में, बल्कि पूरे समाज को पढ़ाया — पढ़ाया कि कैसे एक इंसान अपने छोटे-से जीवन को भी बड़ा बना सकता है.