ईरान-इजरायल युद्ध : भारत निभाए भूमिका, मुस्लिम संगठनों ने की कूटनीतिक पहल की मांग

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 24-06-2025
Iran-Israel war: India should play a role, Muslim organizations demand diplomatic initiative
Iran-Israel war: India should play a role, Muslim organizations demand diplomatic initiative

 

आवाज़ द वॉयस/ नई दिल्ली

ईरान पर अमेरिका के हालिया हवाई हमलों ने जहां पश्चिम एशिया को अस्थिरता की ओर धकेला है, वहीं भारत के दो प्रमुख मुस्लिम संगठनों—जमीअत उलमा-ए-हिंद और जमाअत-ए-इस्लामी हिंद—ने इस हमले की कड़ी निंदा करते हुए इसे अंतरराष्ट्रीय कानूनों और मानवता के विरुद्ध सीधी आक्रामकता करार दिया है.

जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि अमेरिका और इजरायल की यह कार्यवाही न केवल संयुक्त राष्ट्र चार्टर की अवहेलना है, बल्कि यह पूरे मध्य पूर्व को अशांति की आग में झोंकने वाला कृत्य है.

उन्होंने कहा कि इजरायल आज पश्चिम एशिया में खून-खराबा और आतंकवाद का मुख्य स्रोत बन चुका है, जिसे अमेरिका का खुला संरक्षण प्राप्त है. मौलाना मदनी ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि अमेरिका की सैन्य उपस्थिति अब उस क्षेत्र में शांति का माध्यम नहीं, बल्कि ज़हर बन चुकी है.

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उन्होंने यह चेतावनी भी दी कि यदि क्षेत्रीय देश अमेरिकी सैन्य ठिकानों को खत्म करने की दिशा में एकजुटता नहीं दिखाते, तो एक-एक कर सभी देश इराक, अफगानिस्तान और लीबिया की तरह तबाही का शिकार बनते रहेंगे.

उन्होंने इस बात पर भी अफसोस जताया कि अमेरिका और इजरायल जैसे परमाणु संपन्न देश ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर हमलावर हैं, जबकि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि ईरान ने किसी संधि का उल्लंघन किया हो.

मौलाना मदनी ने संयुक्त राष्ट्र, मानवाधिकार संगठनों और वैश्विक समुदाय से मांग की कि वे इस हमले का संज्ञान लें और हमलावर देशों को मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए अंतरराष्ट्रीय न्याय के कटघरे में खड़ा करें.

इसी के साथ, जमाअत-ए-इस्लामी हिंद की केंद्रीय सलाहकार परिषद ने भी 22 जून को अमीर जमाअत सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी की अध्यक्षता में एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें ईरान पर अमेरिका द्वारा किए गए एकतरफा हमलों की तीखी आलोचना की गई.

परिषद ने इस हमले को शांति और स्थिरता के लिए गंभीर खतरा बताते हुए कहा कि यह हमला न केवल मानवाधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह एक व्यापक मानवीय संकट को जन्म दे सकता है.

परिषद ने यह भी स्पष्ट किया कि अब तक किसी भी प्रासंगिक अंतरराष्ट्रीय संस्था ने यह नहीं कहा है कि ईरान ने परमाणु समझौते की शर्तों का उल्लंघन किया है. इसके बावजूद अमेरिकी आक्रमण पूरी तरह से ग़ैरज़िम्मेदाराना, अन्यायपूर्ण और अंतरराष्ट्रीय नैतिकताओं के खिलाफ है.

ईरानी नागरिकों की मौत, बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे का विनाश और विस्थापन की स्थिति पूरी मानवता के लिए चिंता का विषय बन चुकी है.इस प्रस्ताव में पश्चिमी देशों की चुप्पी और दोहरे मानदंडों को भी गंभीरता से रेखांकित किया गया है.

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परिषद ने कहा कि जहां एक ओर इजरायल के हमलों को ‘रक्षात्मक उपाय’ बताया जाता है, वहीं ईरान के जवाबी कदमों को ‘आतंकवाद’ करार दिया जाता है. यह सोच ही वैश्विक शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा है.

परिषद ने भारत सरकार से अपील की कि वह अपने ऐतिहासिक सिद्धांतों—तटस्थता, उपनिवेशवाद विरोध और तीसरी दुनिया के शोषित देशों के समर्थन—के अनुरूप आगे बढ़े और युद्धविराम की दिशा में सक्रिय कूटनीतिक प्रयास करे.

साथ ही परिषद ने मुस्लिम देशों से भी अपेक्षा जताई कि वे केवल निंदा तक सीमित न रहें, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एकजुट होकर अमेरिकी-इजरायली आक्रमण को रोकने की दिशा में ठोस प्रयास करें.

इस प्रस्ताव का सार यही है: दुनिया के शांतिप्रिय और न्यायप्रिय लोगों को अब खामोश नहीं रहना चाहिए। समय आ गया है कि ईरान और अन्य पीड़ित देशों के साथ एकजुटता दिखाते हुए मानवता और न्याय के पक्ष में आवाज बुलंद की जाए.यह अपील केवल मुस्लिम समाज की नहीं, बल्कि एक वैश्विक नागरिक जिम्मेदारी की पुकार है.