आवाज द वाॅयस /नई दिल्ली
बॉलीवुड के चर्चित निर्देशक और निर्माता करण जौहर इन दिनों अपनी आने वाली फिल्म धड़क 2 को लेकर सुर्खियों में हैं। फिल्म की रिलीज़ से पहले उन्होंने एक बातचीत के दौरान अपने बचपन और संघर्षों को लेकर बेहद भावुक बातें साझा कीं।
प्रसिद्ध मोटिवेशनल वक्ता जय शेट्टी से बातचीत में करण जौहर ने कहा,"मुझे बहुत कम उम्र में ही यह एहसास हो गया था कि मैं दूसरों से अलग हूं। मैं सिर्फ खेलना चाहता था, टीम का हिस्सा बनना चाहता था, लेकिन किसी ने मुझे कभी नहीं चुना। क्योंकि वे मुझे 'लड़का' नहीं मानते थे।"
करण ने बताया कि उनके चलने, बोलने और हावभाव को देखकर लोग उन्हें "ज्यादा स्त्रैण" कहकर चिढ़ाते थे।उन्होंने कहा,"मैं अपने उम्र के बाकी लड़कों से काफी अलग था। मेरा व्यवहार, रुचियां, बोलने का तरीका—सब कुछ अलग था। लोग कहते थे कि मैं लड़कियों जैसा चलता हूं। इससे मेरा आत्मविश्वास लगातार टूटता गया."
बचपन में अकेलेपन और सामाजिक अस्वीकार्यता का ज़िक्र करते हुए करण जौहर ने बताया,"हम एक साधारण अपार्टमेंट में रहते थे। शाम को जब सब बच्चे नीचे खेलने जाते, तो मैं भी शामिल होना चाहता था। फुटबॉल, क्रिकेट—सब खेलना चाहता था। लेकिन कोई मुझे टीम में नहीं लेता था। मुझे स्पोर्ट्स में कोई दिलचस्पी नहीं थी, पर फिर भी मैं कोशिश करता था।"
करण ने अंत में कहा,"मेरे लिए सबसे बड़ी उलझन यही थी कि मैं न पूरी तरह लड़का था, न आदमी। और समाज ने मुझे कभी पूरी तरह स्वीकार नहीं किया।"
करण जौहर की यह स्वीकारोक्ति आज के युवाओं के लिए एक संवेदनशील लेकिन ज़रूरी संदेश है—खासकर उन लोगों के लिए जो अपनी पहचान और सामाजिक स्वीकार्यता को लेकर संघर्ष कर रहे हैं।