आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
अभिनेता सौरव दास का मानना है कि सिनेमा को राजनीतिक या वैचारिक चश्मे से नहीं, बल्कि कला के तौर पर देखा जाना चाहिए.
सौरव दास निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की आने वाली फिल्म 'द बंगाल फाइल्स' में गोपाल 'पाठा' की भूमिका निभा रहे हैं.
‘द ताशकंद फाइल्स’ (2019) और ‘द कश्मीर फाइल्स’ (2022) के बाद यह फिल्म अग्निहोत्री की 'फाइल्स ट्राइलॉजी' की अंतिम कड़ी है. यह फिल्म कोलकाता में अगस्त 1946 में हुए सांप्रदायिक दंगों की पृष्ठभूमि पर आधारित है.
करीब 204 मिनट की अवधि वाली यह फिल्म सबसे लंबी भारतीय फिल्मों में से एक है और पांच सितंबर को सिनेमाघरों में रिलीज होने जा रही है.
सौरव दास फिल्म में गोपाल मुखोपाध्याय की भूमिका निभा रहे हैं, जो एक गोश्त विक्रेता थे। वह 1946 के दंगों के दौरान उपद्रवियों का प्रतिरोध करने के लिए लोगों को संगठित करने के लिए जाने जाते हैं.
दास ने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ बातचीत में कहा, ‘‘एक फिल्म को कला के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। दर्शक आज परिपक्व हैं. यदि उन्हें आपत्ति है तो आलोचना कर सकते हैं और यदि कहानी से जुड़ाव महसूस हो तो सराहना भी कर सकते हैं। उन्हें वह स्वतंत्रता मिलनी चाहिए.
क्या इस तरह की फिल्में पुराने घावों को फिर से कुरेदने का जोखिम पैदा करती हैं? इस सवाल पर उन्होंने असहमति जताई.
उन्होंने कहा, ‘‘क्या हम आजादी और विभाजन के बारे में नहीं जानते? तो फिर हमें यह भी जानना चाहिए कि उसकी पृष्ठभूमि क्या थी. इसका मतलब यह नहीं कि ऐसे हादसे दोबारा होंगे। जो तथ्य हैं, उन्हें वैसे ही स्वीकार करना चाहिए.