धर्मेंद्र: भावुक कर देने वाले, हंसा देने वाले और दिलों पर राज करने वाले ‘माचो मैन’

Story by  PTI | Published by  [email protected] | Date 24-11-2025
Dharmendra: The 'macho man' who makes you emotional, makes you laugh and rules hearts
Dharmendra: The 'macho man' who makes you emotional, makes you laugh and rules hearts

 

नयी दिल्ली

हिंदी सिनेमा के सुनहरे इतिहास में एक ऐसा सितारा था, जो अपने दमदार मुक्कों से खलनायकों को धूल चटा देता था, गंभीर भूमिकाओं से दर्शकों को भीतर तक भावुक कर देता था, एक हल्की मुस्कान से दिल पिघला देता था और हास्य भूमिकाओं में दर्शकों को ठहाके लगाने पर मजबूर कर देता था। यह अद्भुत मेल था धर्मेंद्र का—एक ऐसे अभिनेता का जिसने करीब 65 वर्षों तक लगातार, बिना किसी विराम के, हर प्रकार के किरदारों में खुद को ढाला।

मर्दानगी, संवेदनशीलता, करिश्मा और अद्भुत स्क्रीन प्रेज़ेंस—इन तमाम खूबियों के साथ धर्मेंद्र उन चुनिंदा अभिनेताओं में शामिल थे जिन्होंने “सत्यकाम” जैसी गंभीर फिल्मों से लेकर “बहारें फिर भी आएंगी” जैसी रोमांटिक कहानियों तक, “शोले” जैसी एक्शन प्रधान फिल्मों से लेकर “चुपके चुपके” जैसी हल्की-फुल्की कॉमेडी तक, हर तरह की फिल्मों में अपनी अमिट छाप छोड़ी।

उनके दौर के कई दिग्गज सितारे या तो फिल्मों से दूर हो गए या समय के साथ गुमनामी में खो गए, लेकिन धर्मेंद्र अंतिम दिनों तक बड़े परदे पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे।सोमवार को मुंबई में उनका निधन हो गया। अगले महीने 8 दिसंबर को वह 90 वर्ष के हो जाते।

रॉकी और रानी की प्रेम कहानी (2023) में, 88 वर्ष की आयु में भी, धर्मेंद्र ने शबाना आज़मी के साथ रोमांस कर दर्शकों को चकित कर दिया था। फिल्म का चुंबन दृश्य लंबे समय तक चर्चा में रहा।

उम्र चेहरे पर थोड़ी झलकने लगी थी, चाल थोड़ी धीमी हो गई थी, लेकिन उनकी आंखों की चमक और वह प्यारी, निश्छल मुस्कान—वह कभी नहीं बदली।धर्मेंद्र ने हिंदी सिनेमा के तीन प्रमुख युग देखे—श्वेत-श्याम, रंगीन और फिर डिजिटल—और तीनों में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखी।

राजेश खन्ना के सुपरस्टार्डम और अमिताभ बच्चन की तूफानी लोकप्रियता के बीच भी, धर्मेंद्र ने अपने लिए मजबूत जगह बनाई और दशकों तक उसे कायम रखा।300 से अधिक फिल्मों में काम कर चुके धर्मेंद्र को ‘ग्रीक गॉड’ कहा जाता था—एक ऐसा संबोधन जो अक्सर उनकी संवेदनशील अदाकारी पर भारी पड़ जाता था और उन्हें सिर्फ़ ‘माचो मैन’ तक सीमित कर देता था।

उन्होंने 2018 में ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा था, “मैंने हमेशा स्क्रीन पर अपनी छवि तोड़ी है। लोग मुझे ग्रीक गॉड कहते हैं, पर इसका मतलब आज तक नहीं समझ पाया।”

सोशल मीडिया पर भी धर्मेंद्र काफी सक्रिय रहे—लोनावला स्थित अपने फार्महाउस से फोटो और अपनी लिखी उर्दू पंक्तियां साझा करते रहते थे। उनके इंस्टाग्राम पर 25 लाख और ‘एक्स’ पर लगभग 7.7 लाख फॉलोअर थे।

पंजाब के लुधियाना जिले के नसराली गांव में 8 दिसंबर 1935 को जन्मे धर्मेंद्र दिलीप कुमार की फिल्में देखकर बड़े हुए। देखते-देखते उनकी आंखों में एक सपना जन्मा—फिल्मी पोस्टरों पर अपना नाम देखने का।

1958 में ‘फिल्मफेयर’ टैलेंट हंट ने इस सपने को रास्ता दिखाया। प्रतियोगिता जीतकर वह मुंबई आए, लेकिन जिस फिल्म का वादा किया गया था, वह शुरू ही नहीं हुई। संघर्ष के दिनों में उन्होंने एक ड्रिलिंग कंपनी में 200 रुपये महीने पर नौकरी भी की।

उनका फिल्मी सफर 1960 में अर्जुन हिंगोरानी की “दिल भी तेरा, हम भी तेरे” से शुरू हुआ। फिर “कब? क्यों? और कहां?” और “कहानी किस्मत की” जैसी फिल्में आईं।पहले कुछ वर्षों में अधिक सफलता नहीं मिली, लेकिन धीरे-धीरे लोग उनकी ओर ध्यान देने लगे। बिमल रॉय ने उन्हें नूतन के साथ “बंदिनी” में लिया और फिर “आई मिलन की बेला”, “हकीकत” और “काजल” के जरिए उनकी पहचान पुख्ता हुई।

मीना कुमारी के साथ आई 1966 की “फूल और पत्थर” ने उन्हें स्टार बना दिया।इसी वर्ष हृषिकेश मुखर्जी की “अनुपमा” ने उनके अलग और कोमल रूप को दर्शाया। इसके बाद मुखर्जी ने उन्हें “मझली दीदी”, “सत्यकाम”, “गुड्डी”, “चैताली” और “चुपके चुपके” जैसी फिल्मों में ऐसे भूमिकाएं दीं, जो उनके भीतर के गंभीर अभिनेता को सामने लाईं।

“चुपके चुपके” में बॉटनी प्रोफेसर परिमल त्रिपाठी का उनका किरदार आज भी कॉमेडी के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शनों में गिना जाता है।“शोले” में वीरू बनकर उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ दोस्ती और तालमेल की अद्भुत मिसाल पेश की।

बाद के वर्षों में धर्मेंद्र चरित्र भूमिकाओं में नजर आए। “जॉनी गद्दार” (2007) में उन्होंने एक गैंग के मुखिया का गहरा किरदार निभाया, वहीं “लाइफ इन ए मेट्रो” में बचपन के प्यार को खोजते एक बुजुर्ग का संवेदनशील अभिनय किया।

उनका निजी जीवन भी उतना ही चर्चा में रहा। पहली पत्नी प्रकाश कौर से उनके चार बच्चे हुए—Sunny, Bobby, Vijeta और Ajeeta।1980 में उन्होंने ‘ड्रीम गर्ल’ हेमा मालिनी से विवाह किया, जिनसे उन्हें दो बेटियां—ईशा और अहाना—हैं।

हेमा से विवाह को लेकर धर्म परिवर्तन की अफवाहें फैलीं, जिन्हें धर्मेंद्र ने कई बार खारिज किया।1981 में उन्होंने अपने प्रोडक्शन हाउस ‘विजेता फिल्म्स’ की स्थापना की और 1983 में “बेताब” से बेटे सनी को लॉन्च किया। बॉबी की “बरसात” (1995), अभय देओल की “सोचा न था” (2005) और करण देओल की “पल पल दिल के पास” (2019) भी इसी बैनर तले बनीं।

धर्मेंद्र, सनी और बॉबी पहली बार “अपने” (2007) में साथ दिखे और फिर “यमला पगला दीवाना” में तीनों की जुगलबंदी ने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया।राजनीति में भी उन्होंने कदम रखा और 2004 में भाजपा के टिकट पर बीकानेर से लोकसभा सांसद बने।

उनकी अंतिम फिल्म “इक्कीस” अगले महीने रिलीज होगी। आज ही फिल्म का पोस्टर जारी हुआ, जिसमें वह नजर आ रहे हैं—मानो पर्दे से यह कह रहे हों कि वह हमेशा वहीं रहेंगे, जहां दर्शक उन्हें देखना चाहते हैं।धर्मेंद्र भले ही दुनिया से रुख़सत हो गए हों, लेकिन करोड़ों चाहने वालों के दिलों में, यादों में और हिंदी सिनेमा के इतिहास में वह सदैव जीवित रहेंगे।