बर्थडे स्पेशल: लखनऊ से निकलकर बॉलीवुड के छोटा पंडित बने राजपाल यादव

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari • 1 Years ago
बर्थडे स्पेशल: लखनऊ से निकलकर बॉलीवुड के छोटा पंडित बने राजपाल यादव
बर्थडे स्पेशल: लखनऊ से निकलकर बॉलीवुड के छोटा पंडित बने राजपाल यादव

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली 

बॉलीवुड के दिग्गज कलाकार राजपाल यादव आज यानी 16 मार्च को अपना जन्मदिन मना रहे हैं. राजपाल अपनी शानदार कॉमेडी की वजह से लोग का दिल जीत लेते हैं. आज उनके चाहने वालों की कमी नहीं है.
 
उनका जन्म 16 मार्च सन् 1971 में उत्तर प्रदेश के लखनऊ के पास शाहजहांपुर जिले में हुआ था. उन्होंने अपनी स्कूल की पढ़ाई शाहजहांपुर से की. पढ़ाई पूरी इसके बाद वह एक नाटक थियेटर से जुड़ गए.
 
 
बॉलीवुड में राजपाल यादव ने साल 1999 में आई फिल्म 'दिल क्या करे' से अपने करियर की शुरुआत की थी. शुरुआती दौर में उन्हें फिल्मों में छोटे-छोटे रोल मिले, लेकिन उन्हें इंडस्ट्री में असली पहचान विलेन के किरदार से मिली. 
 
साल 2000 में आई राम गोपाल वर्मा की फिल्म 'जंगल' में उन्होंनें 'सिप्पा' का रोल प्ले किया था. इस किरदार से उन्हें काफी ख्याति मिली, जिसके बाद एक्टर को फिल्मफेयर में बेस्ट नेटिगेटिव रोल के पुरस्कार से नवाजा गया था.
 
इस फिल्म के बाद राजपाल के करियर ने एक नई उड़ान ली. एक्टर 'कंपनी', 'कम किसी से कम नहीं', 'हंगामा', 'मुझसे शादी करोगी', 'मैं मेरी पत्नी और वो', 'अपना सपना मनी मनी', 'फिर हेराफेरी', 'चुप चुपके' और 'भूल भुलैया' जैसी सुपरहिट फिल्मों में नजर आए. 
 
राजपाल की पर्सनल लाइफ की बात करें तो उनकी पहली शादी लखीमपुर की रहने वाली करुणा यादव से हुई थी, लेकिन बीमारी के चलते उनकी पत्नी का देहांत हो गया, जिसके बाद एक्टर ने कनाडा की रहने वाली राधा यादव से दूसरी शादी की है. बता दें कि दोनों की मुलाकात पहली बार कनाडा में हुई थी. एक दूसरे को डेट करने के बाद दोनों ने शादी करने का फैसला किया और साल 2003 में शादी के बंधन में बंध गए.
 
 
एक इंटरव्यू के दौरान राजपाल यादव ने बताया था कि उनके जीवन में एक समय ऐसा था, जब उनके पास बस का किराया देने तक के पैसे नहीं होते थे, लेकिन उस कठिन समय में इंडस्ट्री में मौजूद उनके दोस्तों ने उनकी काफी मदद की थी.
 
उन्होंने बताया था कि मुझे लगता है कि हर किसी को दूसरों के लिए अपने दरवाजे खुले रखने चाहिए. अगर लोग मेरी मदद नहीं करते तो आज मैं जो हूं वह कैसे होता? मेरे कठिन समय में मेरे दोस्त मेरे साथ थे. मुझे पर विश्वास था और पता था कि मुझे हर तरह का समर्थन चाहिए थो जो मुझे मिला.
 
 
 
मुंबई में अपने कठिन दिनों को याद करते हुए उन्होंने कहा था कि जब मैं मुंबई आया था तब यह एक अंजान शहर था. यहां बोरीवली जाने के लिए दूसरों के साथ एक ऑटो शेयर करना पड़ा था.
 
फिर, कभी-कभी मेरे पास ऑटो के लिए पैसे नहीं होते थे. अपनी तस्वीर साथ लेकर मैं सफलता की तलाश में निकल जाया करता था. उन्होंने आगे कहा था कि जब जिंदगी मुश्किल लगती है, तो मकसद आसान हो जाता है. जिंदगी आसान लगती है तो मकसद मुश्किल हो जाता है.