जामिया और मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के संयुक्त प्रयास से ‘ हीट वेव ’ पर कार्यशाला
आवाज द वाॅयस / नई दिल्ली
जामिया मिल्लिया इस्लामिया (जेएमआई) के भूगोल विभाग ने मैनचेस्टर विश्वविद्यालय, यूके के पर्यावरण, शिक्षा और विकास विद्यापीठ के सहयोग से 'भारत में जिला स्तरीय हीट थ्रेशोल्ड और हीट वेव भेद्यता आकलन' पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया. इस कार्यशाला का उद्घाटन समारोह विश्वविद्यालय के एफटीके-सीआईटी हॉल में आयोजित किया गया.
जामिया के भूगोल विभाग के अध्यक्ष प्रो हारून सज्जाद ने भारत और विदेश के विभिन्न शैक्षणिक एवं अनुसंधान संस्थानों के सभी प्रतिष्ठित अतिथियों, अधिकारियों, प्रतिनिधियों, संकाय सदस्यों और शोधकर्ताओं का गर्मजोशी से स्वागत किया. मैनचेस्टर विश्वविद्यालय, यू.के. के परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ. उपासक दास ने कार्यशाला के दौरान चर्चा किए जाने वाले मोटिवेशन, विषयों और संभावित मुद्दों पर संक्षेप में प्रकाश डाला.
जामिया के कार्यवाहक कुलपति प्रो इकबाल हुसैन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे. अपने उद्घाटन सम्बोधन में कुलपति ने हीट वेव्स के प्रभाव पर प्रकाश डाला और इसे कम करने हेतु सक्रिय उपायों का आह्वान किया.
हीट वेव्स का प्रभाव तात्कालिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं से भी आगे तक जाता है, जो आजीविका और शहरी स्थिरता के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करता है.
उन्होंने यह भी कहा कि दिहाड़ी मजदूरों और रेहड़ी-पटरी वालों सहित सबसे कमजोर आबादी लंबे समय तक घर से बाहर काम करने के दौरान हीट वेव्स के संपर्क में आती है. उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि चूंकि हीट वेव्स की आवृत्ति और गंभीरता लगातार बढ़ रही है, अतः भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा करने और हीट वेव्स के प्रभावों को कम करने के लिए उन्नत प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, शीतलन बुनियादी ढांचे में निवेश तथा व्यापक जागरूकता अभियान सहित सक्रिय उपाय जरूरी हैं.
हीट वेव्स से निपटने के लिए प्रकृति ने स्वयं समाधान प्रदान किए हैं. उन्होंने हीट वेव्स के दौरान तरबूज और खरबूजे का सेवन करने का सुझाव दिया. प्रसिद्ध भूगोलवेत्ता प्रो अमिताभ कुंडू ने उद्घाटन समारोह में कार्यशाला में बीज वक्तव्य दिया.
प्रो कुंडू ने हीट वेव की संवेदनशीलता का आकलन करने के लिए ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के जोखिम और घरेलू विशेषताओं को एकीकृत करने की आवश्यकता पर बल दिया. हीट वेव्स शहरी और ग्रामीण दोनों समुदायों के लिए अहम खतरा पैदा करती हैं.
खास तौर से ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को ग्रामीण क्षेत्रों में लंबे समय तक रहने और बाह्य कार्य के कारण अतिरिक्त चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. यह बढ़ी हुई संवेदनशीलता गर्मी से संबंधित बीमारियों के खतरे को बढ़ा देती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां पहले से ही अत्यधिक गर्मी का खतरा रहता है.
प्रो कुंडू ने यह भी कहा कि हालिया डेटा गर्मी से संबंधित मौतों में चिंताजनक वृद्धि को दर्शाते हैं, जो कि सक्रिय उपायों कीतत्काल आवश्यकता पर बल देता है. स्कूली बच्चों जैसे कमजोर समूहों को अपने निश्चित कार्यक्रम और शीतलन संसाधनों तक सीमित पहुंच के कारण हीट वेव्स के दौरान अत्यधिक जोखिम का सामना करना पड़ता है.
इन चुनौतियों से निपटने के लिए व्यापक रणनीतियों की जरूरत है जो भौगोलिक और जनसांख्यिकीय दोनों बारीकियों को ध्यान में रखें, जिससे सभी समुदायों हेतु हीट वेव्स से उत्पन्न खतरों के विरुद्ध प्रभावी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.
प्रो संघमित्रा शील आचार्य, सामाजिक चिकित्सा और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, जेएनयू ने हीट वेव्स की संवेदनशीलता के चालकों के बारे में चर्चा की. उन्होंने यह बताया कि शहरी जगहों का महानगरीकरण गर्मी की चरम सीमा को बढ़ा रहा है , इसलिए शहरी/शहरीकरण, आवास और पानी के प्रति नीतियों पर पुनः विचार करने की आवश्यकता है.
इसे भी राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में शामिल करने की जरूरत है. उन्होंने हीट वेव्स के प्रभाव को कम करने के लिए अल्पकालिक उपायों का भी आह्वान किया. उन्होंने यह सुझाव दिया कि गर्मियों के फलों का उपयोग और कामकाजी लोगों के लिए डेटाइम शेल्टर का प्रावधान हीट वेव्स के प्रभाव को कम कर सकता है.
प्रो तबरेज़ आलम खान, डीन, विज्ञान संकाय, जामिया इस समारोह के विशिष्ट अतिथि रहे . उन्होंने शैक्षणिक कार्यक्रमों के आयोजन करने के बारे में जामिया के भूगोल विभाग के योगदान की सराहना की. उन्होंने कमजोर आबादी और अर्थव्यवस्था के क्षेत्रों पर हीट वेव्स के प्रभाव पर प्रकाश डाला.
भारत में हीट वेव्स ने विशेषकर बुजुर्गों और बच्चों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाला है. हीट वेव्स ने कृषि अर्थव्यवस्था, जल संसाधनों और पशुधन को भी प्रभावित किया है. इसके अतिरिक्त ऐसी वेव्स की घटना के कारण काम के घंटों में भी नुकसान हुआ है.
प्रो आलम ने यह भी कहा कि इससे न केवल व्यक्तिगत उत्पादकता प्रभावित हुई है अपितु श्रम क्षमता और आर्थिक उत्पादन पर भी इसका व्यापक प्रभाव पड़ा है. उन्होंने ग्रामीण और शहरी लचीलेपन को बढ़ाने के उद्देश्य से प्रभावी रणनीति ढूँढने की आवश्यकता पर बल दिया.
मैनचेस्टर विश्वविद्यालय, यूके के जीआईएस में लेवरहल्म फेलो और लेक्चरर डॉ. महेबूब सहाना ने भारत में जिला स्तरीय हीट वेव भेद्यता आकलन पर अपना विचार रखा . डॉ. सहाना ने अपने संबोधन में हीट वेव भेद्यता का आकलन करने के लिए पद्धतिगत ढांचे पर प्रकाश डाला.
उन्होंने जोखिम, संवेदनशीलता और अनुकूलन के प्रासंगिक संकेतकों का उपयोग करके एक भेद्यता सूचकांक का निर्माण किया. उन्होंने भारत में भेद्यता के सभी घटकों और एकीकृत समग्र हीट वेव्स भेद्यता के मानचित्रों का प्रदर्शन किया.
उन्होने अपने अध्ययन में न केवल हीट वेव्स के प्रति संवेदनशील जिलों की पहचान की है, बल्कि संवेदनशीलता के विभिन्न क्षेत्रों की भी पहचान की है, जहां हीट वेव्स के प्रभाव को कम करने के प्रयास किए जा सकते हैं.
उत्तर प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, उत्तर प्रदेश सरकार के सलाहकार डॉ. काशिफ इमदाद और डॉ. भानु मल्ल ने 'जिला स्तरीय हीट वेव थ्रेशोल्ड निर्धारण और इसके नीति प्रभावों' पर अपने अध्ययन के निष्कर्ष सबसे साझा किए.
इंटरैक्टिव चर्चा में डॉ. महबूब सहाना ने एक ऑनलाइन प्रश्नावली का उपयोग करके दक्षिण एशिया में हीट वेव्स पर अनुसंधान के दायरे और भविष्य के सहयोग पर एक गोलमेज चर्चा आयोजित की.
इस सत्र की अध्यक्षता जे.एन.यू. की प्रो भास्वती दास ने की. इस चर्चा में जबरदस्त भागीदारी देखी गई और शोध की भविष्य की प्रगति के लिए प्रभावी उपाय सुझाए गए.
मैनचेस्टर विश्वविद्यालय, यूके, काठमांडू विश्वविद्यालय, नेपाल, इंटीग्रेटेड रिसर्च एंड एक्शन फॉर डेवलपमेंट, नई दिल्ली, उत्तर प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, उत्तर प्रदेश सरकार के प्रतिनिधियों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया. कार्यक्रम का संचालन कार्यशाला प्रभारी डॉ. ग़ज़ल सलाउद्दीन द्वारा किया गया-