हैदराबाद
“क्षेत्र केवल एक भौगोलिक इकाई नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने का एक तरीका भी है, और इसे समझने के लिए इतिहास एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।” यह बात प्रो. राधिका शेशन ने आज मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय (MANUU) में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी “भारतीय इतिहास में क्षेत्र” के उद्घाटन सत्र में की। इस संगोष्ठी का आयोजन MANUU के इतिहास विभाग ने हैदराबाद के हेनरी मार्टिन संस्थान के सहयोग से किया।
प्रो. राधिका शेशन ने क्षेत्रीय अध्ययन के इतिहासलेखन और इसके विकास पर गहन दृष्टि डाली। उनका मानना है कि समय और स्थान की अवधारणा इतिहास को समझने में अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने क्षेत्रीय अध्ययन के लिए अंतःविषयक (Inter-disciplinary) दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
मुख्य अतिथि प्रो. मोहम्मद गुलरेज़, पूर्व कार्यवाहक कुलपति, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने क्षेत्रीय इतिहास के अध्ययन में बौद्धिक और संस्थागत चुनौतियों की ओर ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने इतिहास अध्ययन में क्षेत्रीय दृष्टिकोण की आवश्यकता पर विस्तार से चर्चा की और राजनीतिक या साम्राज्य-केंद्रित दृष्टिकोणों पर अत्यधिक निर्भरता की सीमाओं को रेखांकित किया।
अपने अध्यक्षीय संबोधन में प्रो. सैयद ऐनुल हसन, कुलपति, MANUU ने क्षेत्रीय इतिहासों के महत्व को भारत की मिश्रित सांस्कृतिक विरासत को सुदृढ़ करने में रेखांकित किया। उन्होंने इतिहास और ऐतिहासिक कृतियों जैसे “हुडूदुल आलम मीनल मश्रीक वाल मग़रिब” और “अभिज्ञान शाकुंतलम” का हवाला देते हुए यह बताया कि क्षेत्र वह स्थल है जहाँ पहचानें निर्मित और व्यक्त की जाती हैं।
प्रो. इश्तियाक अहमद, रजिस्ट्रार, MANUU और प्रो. प्रीति शर्मा, विभागाध्यक्ष, इतिहास विभाग, जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली, मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। प्रो. प्रीति शर्मा ने क्षेत्र की अवधारणा की ज्ञानमीमांसी (Epistemological) समझ पर प्रकाश डाला और कई महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए, जैसे क्षेत्र-विशेष अध्ययन कैसे किए जाने चाहिए और क्षेत्र की मूलभूत परिभाषा क्या होनी चाहिए।
प्रो. रफिउल्लाह अजमी, विभागाध्यक्ष, इतिहास, MANUU ने स्वागत भाषण दिया और भारत के ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक बहुलताओं को पुनः देखने और समझने में क्षेत्रीय अध्ययन की बढ़ती भूमिका पर जोर दिया।
इस संगोष्ठी में देशभर के प्रख्यात इतिहासकार, विद्वान और शोधकर्ता शामिल हुए, जिन्होंने क्षेत्रीय इतिहासों के अध्ययन पर विभिन्न दृष्टिकोणों पर विचार-विमर्श किया।