सादिया शेख ने मुंबई से देवड़ा जाकर किताबों की दुनिया बसा दी

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] • 2 Years ago
बच्चों में किताबों के बीज रोपने की कोशिश
बच्चों में किताबों के बीज रोपने की कोशिश

 

आवाज-द वॉयस /मुंबई

देश के विभिन्न शहरों में बड़े और छोटे पुस्तकालयों का एक नेटवर्क है. हालांकि, समय इतना बदल गया है कि लोग किताबें पढ़ना भूल गए हैं और गैजेट्स के गुलाम हो गए हैं. इसके बावजूद देश के पुराने पुस्तकालय आज भी जस के तस हैं. उनके अस्तित्व का प्रश्न निश्चित रूप से परेशान करने वाला है, क्योंकि इस युग में पुस्तकालय का प्रबंधन करना किसी चुनौती से कम नहीं है.

इस माहौल में यदि कोई नया पुस्तकालय स्थापित कर बच्चों में किताबों के प्रति प्रेम को जगाने की पहल करे, तो यह निश्चित रूप से बहुत अच्छी बात है. वहीं यह और भी आश्चर्य की बात होगी यदि यह प्रयास किसी संस्था या किसी बड़े व्यक्तित्व के बजाय किसी छात्र द्वारा किया गया हो.

ऐसा ही एक अहम नाम है महाराष्ट्र राज्य की राजधानी मुंबई की रहने वाली सादिया शेख. सादिया फिलहाल शेख रिजवी कॉलेज की छात्रा हैं. सादिया शेख का कहना है कि पुस्तकालय का कोई विकल्प नहीं है. इसलिए इसकी उपयोगिता और महत्व आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना पहले था. इसी भावना ने सादिया शेख को एक पुस्तकालय स्थापित करने के लिए मजबूर किया है. उनका जन्म स्थान बिहार राज्य के दरभंगा जिले में है.

देवड़ा गांव

उन्होंने दभंगा जिले के देवड़ा में एक पुस्तकालय स्थापित किया है, जहां उनका जन्म हुआ था. देवड़ा साढ़े तीन हजार की आबादी वाला एक गांव है, जिसकी साक्षरता दर लगभग 40 प्रतिशत है.

सादिया शेख ने यहां ज्ञान का प्रकाश फैलाने के लिए व्यावहारिक कदम उठाए और परिवार, रिश्तेदारों और परिचितों की मदद से देवड़ा में एक सामुदायिक पुस्तकालय की स्थापना की. इस पुस्तकालय का उद्देश्य गांव में सीखने का माहौल बनाना और बच्चों में शिक्षा के प्रति रुचि पैदा करना है.

मौलाना आजाद कम्युनिटी लाइब्रेरी

सामुदायिक पुस्तकालय 1 अक्टूबर, 2020 को लगभग 500 पुस्तकों के साथ शुरू हुआ और अब इसमें 1500 से अधिक पुस्तकें हैं.

सादिया शेख ने बताया कि स्वतंत्र पुस्तकालय की शुरुआत एक अक्टूबर से हुई है. जब पुस्तकालय की स्थापना हुई थी, तब हमारे पास इतना पैसा नहीं था कि हम ढेर सारी किताबें खरीद सकें. हमने गांव के लोगों से अपने घरों से किताबें दान करने को कहा. इनमें साहित्य, बच्चों के लिए कहानी की किताबें और धार्मिक किताबें शामिल हैं, जबकि अधिकांश तारभर बोर्ड (कक्षा एक से बारह) की पाठ्यपुस्तकें हैं.

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कोशिश है कि यहां स्कूल न जाने वाले बच्चे मनोरंजन के साथ शिक्षा ग्रहण करें

हमारे द्वारा छूटी हुई पुस्तकें ऑर्डर की गईं और वितरित की गईं. अपने सामुदायिक पुस्तकालय में हम एक हिंदी समाचार पत्र (दिनक भास्कर) और उर्दू में एक दैनिक इंकलाब भी आमंत्रित कर रहे हैं. चूंकि देवड़ा में केवल हिंदी या उर्दू ही उपलब्ध है, इसलिए हमने किसी अंग्रेजी भाषा के समाचार पत्र को आमंत्रित नहीं किया है.

सादिया शेख का कहना है कि वह पिछले साल जुलाई 2020के अंत में लॉकडाउन के दौरान गांव में थीं, उस समय उन्होंने पुस्तकालय स्थापित करने के लिए कड़ी मेहनत करनी शुरू कर दी थी.

एक सामुदायिक पुस्तकालय का विचार

सादिया ने कहा, “जब मैं सीएए, एनआरसी विरोध प्रदर्शन के दौरान बाहर आयी, तो मुझे एहसास हुआ कि हमें शिक्षा के मोर्चे पर काम करने की जरूरत है.”

उन्होंने कहा, “मुझे लगा कि मैं एक कक्षा नहीं खोल सकती, मैं एक स्कूल नहीं खोल सकती, लेकिन गांव में शिक्षा के लिए मैं अपने दम पर एक छोटा सा काम कर सकती थी, मैं एक सामुदायिक पुस्तकालय खोल सकती थी.” तभी से लॉकडाउन और कोरोना वायरस के दिनों में उन्होंने कुछ ऐसा किया है जिसकी हर तरफ तारीफ हो रही है.

सादिया की शिक्षा

सादिया शेख का जन्म दरभंगा जिले के देवड़ागांव में हुआ था. सादिया ने कहा कि उनके ननिहयाल और ददिहाल एक ही गांव के हैं. वह छोटी थीं, तब उनके माता-पिता मुंबई चले गए. अपने दसवें वर्ष तक, उन्होंने मुहम्मदिया विश्वविद्यालय, मालेगांव में अपनी धार्मिक और आधुनिक शिक्षा प्राप्त की.

गांव में पुस्तकालय खोलने का कारण

सादिया का कहना है कि ग्रामीण बिहार में शिक्षा के स्तर पर काफी काम करने की जरूरत है. यहां माता-पिता अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति इतने गंभीर नहीं हैं. इसलिए इस पुस्तकालय का उद्देश्य शैक्षिक वातावरण बनाना है और हमारा भविष्य आसपास के गांवों में भी इसी तरह काम करने के लिए निर्धारित है. हम समान सोच और जुनून वाले लोगों को एक साथ लाकर ऐसा करना चाहते हैं.

पुस्तकालय खर्च

सादिया ने कहा, ”हमने नए अखबारों, पत्रिकाओं और अन्य पुस्तकालय खर्चों के लिए कई गैर सरकारी संगठनों से संपर्क किया है. कुछ ने योगदान भी दिया है.”

बच्चों को समर्पित पुस्तकालय

शाम को पुस्तकालय में बच्चों के लिए कक्षा भी होती है. देवड़ा स्थित मौलाना आजाद पुस्तकालय में बच्चे पढ़ते हैं. सादिया शेख ने कहा कि शुरू में बच्चे नहीं के बराबर आाते थे, मुझे लगा कि हमारी कोशिश नाकाम हो गई. लेकिन धीरे-धीरे बच्चे और बड़े दोनों आने लगे. 

मैंने जो काम किया उनमें से एक था, उन बच्चों को पकड़ना, जो स्कूल नहीं जाते थे और गलियों में खेलते थे और उन्हें पुस्तकालय में लाते थे. उसने उन्हें अपनी रुचि बढ़ाने के लिए कागज और अन्य छोटी चीजों को शिल्प करने के लिए कहा. इसलिए हमने शाम को छोटों के लिए एक क्लास शुरू की.

यह एक बुनियादी कक्षा है, जहां बच्चों को वर्णमाला, गिनती और भाषाओं की अन्य चीजें सिखाई और सिखाई जाती हैं. वर्तमान में दस-पंद्रह बच्चे नियमित रूप से शाम को आते हैं. 5से 7साल के लोग भी आते हैं.

पुस्तकालय पर्यवेक्षण

सादिया का कहना है कि हमने मुख्तार साहब (45) को जिम्मेदारी दी है, जो हमारे रिश्तेदार हैं. वह एक मदरसे में टीचर है. इसलिए कि उनका घर लाइब्रेरी के करीब है.