एएमयू में इस्लामिक साइंसेज़ पर राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 26-08-2025
National seminar on Islamic Sciences concluded at AMU
National seminar on Islamic Sciences concluded at AMU

 

अलीगढ़:

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के सुन्नी थियोलॉजी विभाग और इस्लामिक फिक़्ह अकादमी ऑफ इंडिया के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी “आधुनिक शैक्षणिक संस्थानों में इस्लामिक साइंसेज़ के अध्ययन और अनुसंधान – पद्धति और उद्देश्य” का समापन विभाग के सेंट्रल हॉल में हुआ।

समापन सत्र

समापन सत्र की अध्यक्षता प्रो. कफ़ील अहमद क़ासमी, पूर्व डीन, फ़ैकल्टी ऑफ आर्ट्स ने की। उन्होंने 15वीं शताब्दी से चली आ रही अरब सभ्यता की उपलब्धियों और इस्लामी इतिहास में उसकी मार्गदर्शक भूमिका का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि मुस्लिम विद्वानों और शोधकर्ताओं की ज़िम्मेदारी है कि वे ओरिएंटलिस्ट नैरेटिव और आलोचनाओं का प्रभावी जवाब दें। साथ ही उन्होंने एएमयू, जामिया मिल्लिया इस्लामिया और जामिया हमदर्द जैसे संस्थानों को इस बौद्धिक प्रयास में नेतृत्वकारी भूमिका निभाने का आह्वान किया।

मुख्य भाषण

पद्मश्री प्रो. अख़्तरुल वासे (एमेरिटस प्रोफेसर, जेएमआई) ने अपने मुख्य भाषण में इस्लामी अनुसंधान में संदर्भानुकूल अध्ययन के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि केवल पाठ्य दृष्टिकोण पर आधारित अध्ययन कई बार गलत व्याख्याओं की ओर ले जा सकता है। उन्होंने एएमयू की दृष्टि और सर सैयद अहमद ख़ाँ की आधुनिक शैक्षणिक चुनौतियों का समाधान खोजने की प्रतिबद्धता की सराहना की।

विशेष अतिथि का वक्तव्य

प्रो. अब्दुर रहीम किदवई, विशिष्ट अतिथि, ने शोध कार्य में गहन समर्पण की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि गुणवत्तापूर्ण शोध केवल सतत बौद्धिक संलग्नता से ही संभव है, सतही अध्ययन से नहीं।

संगोष्ठी की रिपोर्ट

प्रो. मोहम्मद हबीबुल्लाह, डीन फ़ैकल्टी ऑफ थियोलॉजी एवं अध्यक्ष, सुन्नी थियोलॉजी विभाग ने संगोष्ठी की रिपोर्ट प्रस्तुत की। उन्होंने बताया कि कुल छह सत्रों में 55 शोध पत्र पेश किए गए। ये शोध पत्र उर्दू, अंग्रेज़ी और अरबी तीन भाषाओं में प्रस्तुत हुए, जिससे बहुभाषी अकादमिक विमर्श को बढ़ावा मिला।

प्रस्तुतियों में इस्लामी साइंसेज़ की शिक्षण और शोध पद्धति, आधुनिक प्रवृत्तियाँ, नवाचारपूर्ण दृष्टिकोण, नैतिक शिक्षा का महत्व, तकनीकी एकीकरण और तुलनात्मक धार्मिक अध्ययन जैसे विषयों पर गहन चर्चा हुई।

सिफ़ारिशें

संगोष्ठी का समापन कई महत्वपूर्ण सिफ़ारिशों के साथ हुआ, जिनमें शामिल हैं:

  • शोध पद्धति में व्यावहारिक प्रशिक्षण को सशक्त बनाना,

  • उर्दू के साथ अरबी और अंग्रेज़ी में भी छात्रवृत्ति को प्रोत्साहित करना,

  • समकालीन सामाजिक-वैधानिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना,

  • अंतर-विश्वविद्यालयीय सहयोग को बढ़ाना,

  • डिजिटल संसाधनों और तकनीक का उपयोग करना,

  • और शोध पत्रों को शोध पत्रिकाओं या संपादित पुस्तकों में प्रकाशित करना।

आभार प्रदर्शन

कार्यक्रम का समापन प्रो. सऊद आलम क़ासमी, पूर्व डीन फ़ैकल्टी ऑफ थियोलॉजी, के आभार प्रदर्शन से हुआ। उन्होंने विशिष्ट अतिथियों का योगदान सराहा और संगोष्ठी के आयोजन में डॉ. नदीम अशरफ़ और डॉ. मोहम्मद नासिर की भूमिका की प्रशंसा की। संचालन डॉ. नासिर ने किया।

राष्ट्रीय स्वरूप

संगोष्ठी में केरल, चेन्नई, हैदराबाद, बिहार, कोलकाता, कश्मीर, राजस्थान, मुंबई, प्रयागराज और लखनऊ से आए प्रतिनिधियों ने भाग लिया, जिससे कार्यक्रम को वास्तविक राष्ट्रीय स्वरूप प्राप्त हुआ।