यूक्रेन से विस्थापित मेडिकल छात्रों ने दूसरे देशों में की विकल्प की तलाश

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 05-12-2023
Medical students displaced from Ukraine look for options in other countries
Medical students displaced from Ukraine look for options in other countries

 

लखनऊ.

जिन मेडिकल छात्रों को युद्ध के कारण यूक्रेन में अपनी पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था, वे अब किर्गिस्तान, कजाकिस्तान, जॉर्जिया, आर्मेनिया और उज्बेकिस्तान और यहां तक कि रूस जैसे देशों में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे हैं. भारत में सरकारी कॉलेजों में सीमित सीटें और प्राइवेट कॉलेजों में हाई फीस के चलते हर साल कई छात्र विदेश में एमबीबीएस कोर्स करने का विकल्प चुनते हैं.

छात्रों की सहायता करने वाली एजेंसियों ने दावा किया कि उत्तर प्रदेश से हर साल लगभग 2,000 छात्र एमबीबीएस के लिए यूक्रेन जाते थे. वे अब अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए दूसरे देशों का रुख कर रहे हैं, क्योंकि ये देश नेशनल मेडिकल काउंसिल (एनएमसी) दिशानिर्देशों द्वारा निर्धारित मानदंडों का पालन करते हैं.

इन दिशानिर्देशों में कहा गया है कि संपूर्ण मेडिकल कोर्स इंग्लिश में पढ़ाया जाना चाहिए, एमबीबीएस प्रोग्राम 12 महीने की इंटर्नशिप के साथ कम से कम 54 महीने लंबा होना चाहिए और मेडिकल करिकुलम व्यापक होना चाहिए. एनएमसी का नया नियम यह भी कहता है कि संपूर्ण एमबीबीएस कोर्स और ट्रेनिंग एक ही संस्थान पर पूरा किया जाना चाहिए, जिससे ये देश उत्तर प्रदेश के छात्रों के लिए आकर्षक विकल्प बन जाएंगे.

लखनऊ में छात्रों को विदेश में पढ़ाई में मदद करने वाली एजेंसी के निदेशक आशीष सिंह ने बताया कि सरकारी मेडिकल कॉलेजों में सीटों की सीमित संख्या और यहां प्राइवेट इंस्टिट्यूट द्वारा ली जाने वाली हाई फीस के चलते विदेश में एमबीबीएस की पढ़ाई राज्य के छात्रों के लिए आकर्षक है.

रूस एक विशेष रूप से पसंदीदा डेस्टिनेशन है, जहां कुल छात्रों में से 30-40 प्रतिशत वहां के मेडिकल विश्वविद्यालयों को चुनते हैं. उन्होंने कहा कि रूस एक विकसित देश है जहां शिक्षा में महत्वपूर्ण सरकारी निवेश है. उन्होंने कहा, ''हर साल, हम उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश से लगभग 200-250 छात्रों को रूस के विभिन्न विश्वविद्यालयों में भेजते हैं.

'' एमबीबीएस के लिए छात्रों को विदेश, विशेष रूप से कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और यूके भेजने वाली एक एजेंसी के एक अन्य सलाहकार ने कहा कि इन देशों में कम फीस मध्यम वर्ग के छात्रों के लिए प्राथमिक पसंद बनाती है. उन्होंने कहा, "पश्चिम के विपरीत, जहां एमबीबीएस की लागत लगभग 2.5 करोड़ रुपये हो सकती है, ये देश आवास सहित 60 लाख रुपये में पांच साल का कोर्स प्रदान करते हैं."

अन्य फायदों में कम भीड़-भाड़ वाली क्लास, इंडिविजुअल अटेंशन सुनिश्चित करना और डाउट्स दूर करने के अवसर शामिल हैं. भारत के उत्तर प्रदेश और बिहार से कई छात्र शिक्षा के लिए इन देशों में आते हैं, अकेले कारागांडा मेडिकल यूनिवर्सिटी में राज्य के 250 से अधिक छात्र हैं.