आवाज द वॉयस, नई दिल्ली
सुनकर थोड़ा अटपटा सा लगे, पर है सोलह आने सच. मदरसे में पढ़ने के बाद थोड़ा हौसला दिखाने वाले मुस्लिम बच्चे सेना के अच्छे ओहदे तक पहुंच सकते हैं. हरियाणा के मेव मुस्लिम बहुल नूंह जिले के ऐसे चार युवाओं ने यह कारनामा कर दिखाया है. पहले मदरसे से पढ़ाई पूरी की. फिर खुद को थोड़ा अपडेट किया और आज सेना में अच्छे पदों पर हैं. उनकी कामयाबी पर नूंह से विधायक आफताब अहमद कहते हैं, ‘‘मदरसों की सहूलियत थोड़ी बढ़ा दी जाए, तो यहां से निकलने वाले बच्चे भी देश का नाम रोशन कर सकते हैं.’’
उन्होंने इस संदर्भ में मिसाइल मैन के नाम से चर्चित डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम का उदाहरण देते हुए कहा कि उनकी बुनियादी तालीम भी मदरसे में हुई थी. उनके वालिद रामेश्वरम की मस्जिद के इमाम थे.
बहरहाल, मदरसे के चारों छात्रों की कामयाबी की कहानी कुछ यूं है. भारतीय सेना ने सितंबर 2019 में सैन्य क्षेत्रों के धार्मिक स्थलों के लिए धर्म गुरूओं की तैनाती को मौलवी, पंडित, पादरी, ग्रंथी की रिक्तियां निकाली थीं. उनमें मौलवियों के छह पद थे. इसके लिए तमाम प्रक्रियाएं पूरी करने के बाद हाल में उन्हें सेना में शामिल किया गया. छह मौलवियों में चार मेवात के मदरसों के छात्र हैं.
उन्होंने बताया कि मदरसे से निकलने के बाद उन्हें सही मार्गदर्शन मिला और आज वह भारतीय सेना में हैं.
सेना में धर्म गुरूओं की नायब सूबेदार की पोस्ट होती है. इसके लिए धार्मिक ज्ञान के साथ स्नातक होना अनिवार्य है. मदरसा के छात्रों के लिए दीनी तालीम के बाद स्नातक करना थोड़ा कठिन है. ऐसे में अक्सर मदरसे से निकलने वाले बच्चे आगे पढ़ने की जगह मस्जिदोंमें इमाम या मुअज्जिन लगना बेहतर समझते हैं. यह अलग बात है कि मजबूत इरादा हो, तो आगे बढ़ने की संभावनाएं कभी कम नहीं होतीं.
सेना में मौलवी बने नूंह के गांव ढकलपुर के मोहम्मद तल्हा के अनुसार, पिता की बचपन में मौत के बाद 1998 में कुरान शरीफ हिफ्ज किया. फिर वर्ष 2006 में दिल्ली के कश्मीरी गेट स्थित मदरसा अमीनिया से मौलवियत की. उसके बाद तीन साल तक एक मस्जिद में इमाम रहे. इस बीच ओपन स्कूल से दसवीं की. 2015 में मौलाना आजाद यूनिवर्सिटी से बीए किया. एक साल का कम्प्यूटर कोर्स भी किया तथा जामिया मिलिया इस्लामिया से 2017 में एमए तथा 2020 में मौलाना आजाद यूनिवर्सिटी से बीएड किया.
मोहम्मद तल्हा कहते हैं, ‘‘उनके पांच बच्चे हैं. घर का खर्च चलाना और पढ़ाई करना परेशानी भरा था. फिर भी आगे बढ़ने का हौसला नहीं छोड़ा.’’
नूंह के देवाला गांव के मोहम्मद माजिद, अली हसन और नगीना के रानिका गांव के अब्दुल मजीद हौजरानी ने भी सेना में जूनियर कमीशंड आफिसर (जेसीओ) की परीक्षा पास की है. बीए तक पढ़ाई के बाद वे सेना की तैयारियों में लग गए थे. उन्होंने मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों का आह्वान किया कि वे दीनी के साथ दुनियावी तालीम हासिल करें, ताकि उनका भविष्य सुरक्षित हो सके. उनका कहना है कि जब 10-12 साल का मुस्लिम बच्चा कुरान हिफ्ज करता है, तो उसके लिए आगे की पढ़ाई जारी रखने में खास दिक्कत नहीं आती.