सेराज अनवर / पटना
योग भारत की पुरातन संस्कृति का हिस्सा है. ऋषि-मुनियों ने योग और ध्यान पर शोध किया और उसे आगे की पीढ़ी तक पहुंचाया. योग आज पूरी दुनिया में अपनी जगह बना चुका है. योग को आगे बढ़ाने में बिहार के मुंगेर में स्थित बिहार स्कूल ऑफ योगा का महत्वपूर्ण रोल है. ये विश्व की इकलौती योग सिखाने वाली यूनिवर्सिटी है, यहां पूरे साल देश-विदेश के लोग योग सीखने आते हैं. यह दुनिया का पहला ऐसा विश्वविद्यालय है, जहां सिर्फ योग की शिक्षा दी जाती है. इस योग केंद्र में इंदिरा गांधी और एपीजे अब्दुल कलाम जैसी शख्सियत भी आ चुकी हैं.आज यहां पूरी दुनिया के लोग बिना किसी भेदभाव के योग सीखते हैं
मुंगेर स्थित बिहार स्कूल ऑफ योगा की स्थापना स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने 1963में मुंगेर के गंगा नदी के तट पर की थी. यह पटना से लगभग 172किमी दूर एक शक्तिशाली ऊर्जा केंद्र पर मुंगेर में गंगा दर्शन परिसर के भीतर स्थित है. यह गंगा नदी की एक पहाड़ी के ऊपर है.
कहते हैं कि इस पहाड़ी पर असामाजिक तत्वों का अड्डा था. यहां लोग दिन में भी जाने से डरते थे. यहां के ऐतिहासिक कर्णचौरा व प्राचीन जर्जर भवन पर शासन-प्रशासन की नजर नहीं थी.
इस उपेक्षित स्थल पर वर्ष 1963-64में स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने अपने गुरु स्वामी शिवानंद सरस्वती की प्रेरणा से ‘शिवानंद योगाश्रम’ की स्थापना की. विश्व के सौ से अधिक देशों में इसकी शाखाएं हैं.
बिहार योग विद्यालय का गंगा दर्शन आश्रम योग संस्कृति की धरोहर बनकर विश्व गौरव का प्रतीक बन गया है.
बिहार योग विद्यालय की स्थापना के समय स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने कहा था कि योग भविष्य की संस्कृति बनेगी. उनकी कही यह बातें आज सच हो रही हैं. योग को मिली विश्वव्यापी प्रसिद्धि को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया है.
वर्ष 1972में स्वामी निरंजनानंद सरस्वती को योगाश्रम का अध्यक्ष व प्रधान गुरु बनाकर सत्यानंद सरस्वती संयुक्त बिहार (अब झारखंड) में स्थित रिखिया चले गये. उन्होंने अपने जीवनकाल में बताया था कि रिखिया उनकी संन्यास दीक्षा का आश्रम है. इस क्षेत्र के अति निर्धन आदिवासी हजारों बच्चों-बड़ों को स्वामी जी ने काफी पिछड़ा पाकर उनकी सेवा और उत्थान का संकल्प लिया था. यहां भी विशाल भूभाग में आश्रम तैयार हो गया. उन्होंने जीवनपर्यंत रिखिया के गांव-गांव के गरीब व उपेक्षित आदिवासी बच्चों को आश्रम में योगज्ञान के साथ परंपरागत शिक्षा देने के लिए विद्यालय चलाया.
बिहार योग विद्यालय की जब स्थापना की गई, तो लोगों में यह धारणा थी कि योग साधना, साधु-संन्यासियों के लिए है, लेकिन स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने जनमानस को नया संदेश दिया.
उन्होंने बताया कि योग जीने की कला है, जीवन पद्धति है, जीवन का विज्ञान है. इसके बाद स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने योग को जन-जन तक पहुंचाने की बीड़ा उठाया.
उन्होंने न सिर्फ भारत, बल्कि विश्व भर में योग का प्रचार-प्रसार किया. आज इस संस्थान ने योग शिक्षा के लिए पूरे विश्व में अपनी खास पहचान बनायी है.
विश्व के प्रायः सभी देशों से लोग योग का प्रशिक्षण लेने यहां आते हैं. स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने योग सिखाने के लिए 300से ज्यादा किताबें लिखीं, जिनमें योग के सिद्धांत कम और प्रयोग ज्यादा हैं.
वर्ष 2010में सत्यानंद स्वामी के निधन के बाद ‘श्बिहार स्कूल ऑफ योग’ की जिम्मेदारी स्वामी निरंजनानंद के कंधों पर आ गई. फ्रांस की शिक्षा पद्धति में भी मुंगेर योग संस्थान के संस्थापक सत्यानंद के योग की पढ़ाई होती है.
मुंगेर योग केंद्र में आने वालों को यहां के सख्त नियमों का पालन करना पड़ता है. रोज सुबह 4बजे उठकर साधना करनी होती है. इसके बाद कक्षाएं शुरू होती हैं. शाम 6.30बजे कीर्तन के बाद 7.30बजे अपने कमरे में साधना करनी होती है. रात 8बजे आवासीय परिसर बंद हो जाता है.
इस केंद्र में योग सिखाने की पूरी प्रणाली का उद्देश्य शारीरिक, मानसिक और आत्मिक पहलुओं के बीच संतुलन स्थापित करना है. बिहार स्कूल ऑफ योग के 200से अधिक अंतर्राष्ट्रीय एवं सैकड़ों राष्ट्रीय योग एवं आध्यात्मिक केन्द्र हैं. इसे मानद विश्वविद्यालय (डीम्ड यूनिवर्सिटी) का दर्जा दिया गया है.
यहां चार माह का योग सर्टिफिकेट कोर्स होता है. इसके साथ योग दर्शन, योग मनोविज्ञान, अप्लाइड योग एवं पर्यावरण योग विज्ञान में हायर एजुकेशन के लिए एक और दो साल का कोर्स है.
मुंगेर का योगाश्रम सिर्फ बिहार तक ही सीमित नहीं, यह देश के अनगिनत कॉलेजों, जेलों, अस्पतालों और भी कई संस्थाओं में लोगों को योग का प्रशिक्षण देता है.
आज इस विशिष्ट योग शिक्षा केंद्र से प्रशिक्षित 14,000शिष्य और 1,200से ज्यादा योग शिक्षक देश-विदेश में योग ज्ञान का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं.
मुंगेर के इस स्कूल की योग में भूमिका को देखते हुए दिवंगत राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने साल 2014में मुंगेर को योगनगरी बताया था.
मिसाइल मैन यहां दो बार आ चुके हैं. पहली बार डॉ. कलाम 31मई 2003को मुंगेर आए और दूसरी बार बिहार योग विद्यालय में बच्चों के निमंत्रण पर 14फरवरी को मुंगेर आए.
उनके यहां आने का वाकया भी मजेदार है. डॉ. कलाम ने राष्ट्रपति बनने के कुछ समय बाद ही बिहार योग विद्यालय में जाने की इच्छा व्यक्त की. इस बात से योग विद्यालय के व्यस्थापकों को अवगत कराया गया, तो एक समस्या खड़ी हुई कि आश्रम के भीतर प्रोटोकॉल का पालन कैसे होगा? कहते हैं कि राष्ट्रपति भवन को जब इस स्थिति से अवगत कराया गया, तो वहां से जबाव मिला कि राष्ट्रपति जी आश्रम के भीतर शिष्य के नाते जाना चाहेंगे. लिहाजा कैंपस में कोई प्रोटोकॉल नहीं होगा.
ऐसा हुआ भी. योग के प्रचार-प्रसार के लिए इस स्कूल की तारीफ न्यूजीलैंड के तत्कालीन प्रधानमंत्री क्लिथ हालोस्की, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, मोरारजी देसाई सहित योग गुरु बाबा रामदेव भी कर चुके हैं.
राजनीतिज्ञों के अलावा योग गुरु बाबा रामदेव भी योगाश्रम से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके थे. उन्होंने आश्रम के प्रमुख स्वामी निरंजनानंद सरस्वती को खुद से अधिक ज्ञानी बताते हुए कहा था कि 21वीं सदी योगज्ञान की होगी और भारत इसका मार्गदर्शक होगा.
स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने 1973में मुंगेर में प्रथम विश्व योग सम्मेलन के माध्यम से देश व दुनिया का ध्यान योग की ओर केंद्रित किया था. 20वर्षों बाद फिर 1993में बिहार योग विद्यालय की स्वर्ण जयंती के अवसर पर द्वितीय विश्व योग सम्मेलन का आयोजन किया गया.
पुनः स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने 2013में मुंगेर में विश्व योग सम्मेलन के माध्यम से दुनिया में योग को स्थापित किया.
आज भी यह परंपरा निर्बाध गति से चल रही है. देश-विदेश से लोग यहां योग की शिक्षा लेने आ रहे हैं. यहां से निकली योग की क्रांति पूरी दुनिया में फैल चुकी है. पहले मुंगेर को लोग अवैध हथियार निर्माण के लिए जानते थे, अब यह शहर योग नगरी के रूप में जाना जाता है.