किसे कहते हैं इस्लामिक ‘नैतिक पुलिस’, ईरान के अलावा और किन देशों में है यह व्यवस्था ?

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] • 1 Years ago
किसे कहते हैं इस्लामिक ‘नैतिक पुलिस’ ,तस्वीरेंः सोशल मीडिया
किसे कहते हैं इस्लामिक ‘नैतिक पुलिस’ ,तस्वीरेंः सोशल मीडिया

 

मलिक असगर हाशमी / नई दिल्ली

ईरान में चार दिन पहले कथित तौर पर ‘नैतिक पुलिस’ की हिरासत में एक युवती की संदिग्ध मौत के बाद कोहराम मचा हुआ है. घटना के विरोध में न केवल देशभर में प्रदर्शन हो रहे हैं, कई महिलाओं ने सरकार और नैतिक पुलिस की मुखालफत में सार्वजनिक स्थलों पर अपने हिजाब और सिर के बालों की चोटी काट कर जला दी.

इन्ही घटनाओं के बीच सवाल उठने लगा और लोगों की जिज्ञासा बढ़ने लगी है कि आखिर यह ‘मोरल पुलिस’ है क्या, यह कैसे काम करती है और ऐसी व्यवस्था और किन देशों में है ? वैसे, यहां पाठकों को बता दूं कि नैतिक पुलिस केवल ईरान में नहीं है, बल्कि कई मुस्लिम देशों में भी यह व्यवस्था है.
 
मजे की बात यह है कि कई मुल्कांे में तो यह घोषित रूप से हैं और कई में इस्लाम के ठेकेदार खुद ही मोरल पुलिस बनकर ऐसी-ऐसी हरकतें करते हैं कि बाद में उन्हें ही दुष्परिणाम भुगतना पड़ता है.
 
फिल्हाल सबसे पहले ईरान की बात करते हैं. दरअसल, ईरान ने पोशाक के नियमों को लागू करने के लिए हजारों अंडरकवर एजेंट तैनात कर रखे हैं. इसका काम सार्वजनिक स्थलों पर हिजाब के नियमों को सही से पालन कराना है.
 
ऐसी व्यवस्था सऊदी अरब, सूडान और मलेशिया सहित कई अन्य देशों ने भी इस्लामी नैतिकता का पालन कराने की व्यवस्था कर रखी है और इसे सख्ती से लागू भी कराया जाता है. हालांकि, पश्चिमी जीवन शैली के पैरोकार हमेशा इसका विरोध करते रहते हैं.
 
ऐसी व्यस्था को रूढ़ीवादी कहा जाता है. इसके अलावा नैतिक पुलिस को लेकर हमेशा संघर्ष भी होता रहता है. यह अभी ईरान में देखने को मिल रहा है.
 
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ईरान

नैतिक पुलिस को यहां गश्त-ए इरशाद ( गश्ती के लिए फारसी शब्द) कहा जाता है. 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद से ईरान के पास नैतिक पुलिस के विभिन्न रूप रहे हैं, लेकिन गश्त-ए इरशाद वर्तमान में ईरान की इस्लामी आचार संहिता को सार्वजनिक रूप से लागू करने वाली मुख्य एजेंसी है.
 
उनका ध्यान हिजाब के पालन को सुनिश्चित करना है. इस अनिवार्य नियम में महिलाओं को अपने बालों और शरीर को ढकने और सौंदर्य प्रसाधनों को हतोत्साहित करने की हिदायत दी गई है.
मोरल पुलिस को इसका उल्लंघन करने वाली महिलाओं को चेतावनी देने, जुर्माना लगाने या गिरफ्तार करने का अधिकार है.
 
हालांकि इस नियम में सुधार को लेकर सरकार काम कर रही है. नए नियम पूरी तरह लागू होने के बाद सजा देने की बजाए 7,000 अंडरकवर गश्त-ए-इरशाद एजेंटों को पुलिस के नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ रिपोर्ट करने का अधिकार होगा. इसके बाद पुलिस तय करेगी कि रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की जाए या नहीं.
 
माना जाता है कि गश्त-ए इरशाद में कट्टरपंथी लोग हैं जो सख्ती से नियमों को लागू करते हैं. इसमें हार्ड-लाइन महिलाएं ज्यादा हैं.मोरल पुलिसिंग के प्रति  ईरान की शहरी महिलाएं हमेशा मुखालफत में रही हैं. इसे एक अभिशाप के रूप में देखती हैं. अभी विरोध प्रदर्शन में ऐसी ही महिलाएं और पुरुष ज्यादा सक्रिय हैं.
 
आमतौर पर धनी सामाजिक वर्ग ड्रेस कोड की सीमाओं को लांघने की कोशिश करता रहता है. बता दें कि ईरान में महिलाओं को हेडस्कार्फ और ढीले कपड़े पहनना अनिवार्य है. गर्मी में भी इस नियम में कोई छूट नहीं है.
 
हालांकि पश्चिमी विचारधारा की वकालत करने वाले पुरुषों का एक वर्ग गश्त-ए इरशाद मोबाइल चौकियों से नियमों का उल्लंघन करने के आरोप में लाई जाने वाली महिलाओं को बचने में मदद करता है.
 
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सऊदी अरब

देश में सदाचार को बढ़ावा देने और पश्चिमी कल्चर की रोक-थाम के लिए समिति यानी मुतावा (अल्लाह के लिए विशेष रूप से आज्ञाकारी के लिए अरबी) बनाया हुआ है. 1940 में गठित, मुतावा को इस्लामिक धार्मिक कानून - शरिया - को सार्वजनिक स्थानों पर लागू करने का काम सौंपा गया है.
 
इसमें पुरुषों और महिलाओं दोनों को सार्वजनिक रूप से मिलने-मिलाने यानी समाजीकरण करने से मना करने वाले नियम भी शामिल हैं. साथ ही एक ड्रेस कोड भी है, जिसे महिलाओं को पालन करना होता है.
 
नियम के मुताबिक, महिलाओं को अपनी आंखों को छोड़कर बाकी शरीर को पूरी तरह कवर करने का आदेश है. इस नियम को लागू कराने वाले पुलिस-शैली की वर्दी के बजाय, पारंपरिक सऊदी वस्त्र और केफियेह पहनते हैं.
 
हालांकि मुतावा उदारवादियों और युवाओं के बीच व्यापक रूप से नापसंद किया जाता है. इसके विपरीत रूढ़िवादी सुन्नी-बहुमत वाले साम्राज्य में आम राय इसका समर्थन करती है. वैसे रूढ़िवादियों भी अब बदलाव आने लगा है.
 
हाल में कई बदलावों और महिलाओं के मिलने वाले विशेषाधिकारों से भी समझा जा सकता है.  हालांकि एक अभिनेता द्वारा प्रशंसकों के साथ सेल्फी लेने के कारण यहां जबरदस्त विवाद हो गया था.
 
इसकी जब आलोचना हुई तो सरकार की ओर से कहा गया कि अब लोगों को गिरफ्तार या पीछा नहीं किया जाएगा. मुतावा केवल इस बारे में नियमित पुलिस को रिपोर्ट करेगी.
 
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सूडान

यहां पब्लिक ऑर्डर पुलिस की व्यवस्था है. इसकी स्थापना 1993 में राष्ट्रपति उमर अल-बशीर द्वारा तत्कालीन उत्तरी सूडान में मुसलमानों के लिए कानून में स्थापित शरिया को लागू करने के लिए की गई थी.
 
उनके पास गिरफ्तारी करने की शक्ति है और इसके प्रयासों से आरोपियों के खिलाफ अक्सर विशेष लोक व्यवस्था न्यायालयों में मुकदमा चलाया जाता है. सजा में कोड़े लगना या जेल शामिल हैं.
 
हालांकि कई सूडानी इसे निजी जीवन में दमनकारी और मनमानी हस्तक्षेप मानते हैं. इसका विरोध भी करते रहे हैं. वैसे ज्यादातर सलाफिस्ट और रूढ़िवादी मोरल पुलिस की गतिविधियों का समर्थन करते हैं.
 
इस बल को निजी मिश्रित-सेक्स आयोजनों को बंद करने, महिलाओं को नैतिक पोशाक के लिए प्रोत्साहित करने और शरीयत के उल्लंघन के रूप में देखने पर छापा मारने के लिए भी जाना जाता है.
 
2008 में सार्वजनिक रूप से ढीले-ढाले कपड़े नहीं पहने पकड़े जाने के बाद महिला पत्रकार लुबना अल-हुसैन को गिरफ्तार किया गया और जेल में डाल दिया गया था. जब इसकी अंतरराष्ट्रीय निंदा हुई तो छोड़ दिया गया.
 
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मलेशिया

 
मलेशिया के राज्यों में संघीय संचालित निकाय हैं जो शरिया को लागू कराते हैं. यह नियम मुस्लिम आबादी के दो तिहाई पर लागू होता है.उनके पास गिरफ्तारी की शक्ति है. विशेष रूप से यह  रमजान के दौरान में अधिक सक्रिय रहता है.
 
दिन के खाने से लेकर महिलाओं और पुरुषों के निकट होने पर मोरल पुलिस सख्त कार्रवाई करती है. इस तरह के मामलों की सुनवाई शरिया अदालतों द्वारा सामान्य अदालत प्रणाली से तहत किया जाता है.
 
वैसे यहां अक्सर धार्मिक अधिकारियों पर नियमों से आगे निकलने का आरोप लगता रहा है. कई मामलों में शरिया कानून के उल्लंघन पर प्राथमिकी दर्ज कराई जाती है.कुछ साल पहले धार्मिक अधिकारियों ने एक ट्रांसजेंडर समूह के धन उगाहने वाले कार्यक्रम पर छापे के दौरान कई लोगों को गिरफ्तार किया, जिसमें प्रतिभागियों पर एक सौंदर्य प्रतियोगिता की मेजबानी करने का आरोप था.
 
इसके बाद उसपर 1996 के फतवा या इस्लामी धार्मिक डिक्री के तहत प्रतिबंध लगा दिया गया.