पैगंबर मुहम्मद और महिला अधिकार

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 18-10-2021
पैगंबर मुहम्मद और महिला अधिकार
पैगंबर मुहम्मद और महिला अधिकार

 

shaguftaशगुफ्ता नेमत

इतिहास साक्षी है कि मुहम्मद साहब के नबी बनने से पहले महिलाओं की समाज में दयनीय स्थिति थी. वो सभी अधिकारों से वंचित थीं. यहां तक कि लोग लड़कियों के जन्म को भी अशुभ मानते थे. बेटियां जिंदा दफना दी जाती थीं.                            

विवाह उपरांत उन्हें जीवन के दूसरे दर्दनाक दौर से गुजरना पड़ता था. पति की नजरों में वह जानवर के समान थीं. महिलाओं को खुद पर होने वाले अत्याचार के विरुद्ध ऊफ तक करने से मनाही थी. उनका काम केवल पति की सेवा करना भर था.

महिलाएं एक दूसरे के हाथों बेच भी दी जाती थीं. निकाह-तलाक का कोई कानून नहीं था. मर्द जितनी औरतों चाहे रख सकते थे. जब चाहते छोड़ सकते थे. महिलाओं के मामले में अफरा-तफरी की स्थिति थी. जब इस्लाम का परचम लहराया तो औरतों के हर रूप कोमान्यता दी गई.

मां, बहन ,बीवी, बेटी के रूप में अनेक अधिकार दिए गए. इसका जिक्र कुरान की आयतों में भी है. सूरह निसा आयत 19में अल्लाह ताला फरमाते हैं, ‘‘ औरतों के साथ मेहरबानी का बर्ताव करो.”

ईश्वर ने औरतों को मर्दों का और मर्दों को औरतों का लिबास कहा. जिस प्रकार वस्त्र यानि लिबास हमारी सुंदरता को बढ़ाने के साथ हमारे अंगों को ढकता है उसी प्रकार पति और पत्नी एक दूसरे के दोषों को छिपाते हुए संबंधों की गरिमा बनाए रखते है.                  

इस्लाम ने औरतों को शिक्षा  प्राप्त करने का पूरा अधिकार दिया है. यहां तक कि नबी मोहम्मद साहब औरतों को इकट्ठा कर उन्हें धर्म और व्यवहार कुशलता की शिक्षा दिया करते थे. हजूर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम पर जब पहली ‘वही’ उतरी उसमें कहा गया “पढ़ो, ए नबी, अपने रब के नाम से जिसने पैदा किया, जमे हुए खून के लोथड़े से इंसान को बनाया.

पढ़ो और तुम्हारा रब बड़ा करीम है, जिसने कलमा के जरिए इल्म सिखाया.( सूरह अलक)यानि कुरान की इस आयत के जरिए अल्लाह ने सारी मानवजाति के लिए शिक्षा प्राप्त करने को आवश्यक बताया.          

 पैगंबर मुहम्मद की जिंदगी कुरान के उपदेशों का ज्वलंत उदाहरण हैं. उनकी मां की मृत्यु तब हुई  जब वह  6वर्ष के थे. जिन्होंने उन्हें पाला, अपनी मां के समान आदर देते थे. उन्होंने अपने जीवन में बेटी और बीवियों को भी सदा सम्मान की दृष्टि से देखा. कभी उनके अधिकारों का हनन नहीं होने दिया.

मां के रूप  में

इस्लाम में कहा गया है, “जन्नत मां के कदमों के नीचे है. दूसरा, गर्भवती महिला को रात भर इबादत करने और रोजा रखकर जंग करने का पुण्य मिलता है. गर्भवती महिला या अपने बच्चे को दूध पिलाती मां का देहांत हो जाए तो उस गर्भवती महिला को शहीद होने का दर्जा दिया गया है.                            

बेटी के रूप में    

एक ओर लोग जहां बेटी के जन्म पर उसे जिंदा दफन कर दिया करते थे, वहीं पैगंबर मुहम्मद साहब को जब बेटी होने की सूचना मिली तो उनका चेहरा गुलाब के फूल की तरह खिल उठा. वह अपनी बेटी फातिमा को दिलो जान से चाहते थे.

कहते थे, “फातिमा मेरे जिस्म का हिस्सा है, जिसने इसे गुस्सा दिलाया उसने मुझे गुस्सा दिलाया.” इस्लाम में जहां तीन बेटियों की परवरिश और उनका शादी विवाह कर देने पर जन्नत का वादा किया गया है, वहीं इनके जीने का अधिकार छीनने वालों के लिए कुरान में  (सूरह तकवीर आयत 8-9) में अल्लाह ताला फरमाते हैं, जिस दिन जिंदा दफन की गई लड़की से यह सवाल किया जाएगा, तुझे किस जुर्म में जिंदा दफन किया गया, तो लोगों को अपने इस सवाल का जवाब अपने रब को देना होगा.

बेटी को इस्लाम ने अनेक अधिकार दिए हैं. जैसे बेटियों की इच्छा जाने बिना शादी कर देने को जुर्म करार दिया गया है. बेटियों का विरासत में हिस्सा और विरासत में मिले माल की औरत अकेली मालिक होती है. ‘मेहर‘ का हक बेटियों को दिया गया है.

सूरह निसा आयत 24 में अल्लाह ताला फरमाते हैं, ‘फिर जो शादीशुदा जिंदगी का मजा तुम इनसे उठाओ इसके बदले इनके मेहर को फर्ज समझ कर अदा करो.’ इस्लाम में औरतों को मेहर का अधिकार देकर मर्दों को यह बताया गया है कि औरत कोई वस्तु नहीं.

इसे पाने के लिए उन्हें अपने माल की भी कुर्बानी देनी होगी.दूसरी ओर सूरह बकरा आयत 241 में अल्लाह ताला फरमाते हैं, इस तरह जब औरतों को तलाक दी गई हो इन्हें भी मुनासिब तौर पर कुछ ना कुछ देकर विदा किया जाए.

औरत के बारे में कुरान में एक अन्य जगह कहा गया है, अगर वह गर्भवती है, तो उस वक्त तक उन पर खर्च करते रहो जब तक बच्चे का जन्म ना हो जाए. सूरह तलाक आयत 6 में यह भी कहा गया, ‘फिर अगर वह तुम्हारे बच्चे को दूध पिलाए तो इसका खर्च भी दो.

सूरह बकरा आयत 240 में यह हुक्म है कि तुम में जो लोग वफात पाए और पीछे बीवियां छोड़ जाएं, उनको चाहिए कि अपनी बीवियों के हक में यह वसीयत करें कि एक साल तक इनका खर्च उठाएंगे. इन्हें घर से नहीं निकाला जाएगा. तलाकशुदा औरतों के लिए भी इस्लाम में कई बातें बताई गई हैं.

सूरह बकरा आयत 229 में कहा गया, ‘ऐसा करना तुम्हारे लिए ठीक नहीं जो कुछ तुम उन्हें दे चुके इसमें से कुछ वापिस दो यानी तलाकशुदा बीवियों को जो मेहर, कपड़े और माल इनके शौहर दे चुके हैं. उनमें से कई चीजें वापस लेने का अधिकार नहीं है.

इस्लाम विधवा और तलाकशुदा औरतों को अपनी जिंदगी अपनी मर्जी से गुजारने का हक देता है. सूरह निसा आयत 19 में कहा गया, ‘ए लोगों जो ईमान लाए हो तुम्हारे लिए यह हलाल नहीं कि तुम जबरदस्ती औरतों के वारिश बन बैठो यानी  पति की मृत्यु के बाद उन्हें अपनी शादी का पूरा हक दिया गया. वह जब चाहे जिस मुसलमान से चाहे अपना निकाह कर सकती है.  

बहन के रूप में

इस्लाम औरतों के अधिकारों  को बहुत महत्व देता है. जिस प्रकार तीन बेटियों की परवरिश पर जन्नत का वादा किया गया है. उसी प्रकार जिनकी मां की मृत्यु हो चुकी है, वैसी तीन बहनों के परवरिश पर भी जन्नत का वादा किया गया है.  

बीवी के रूप में

इस्लाम में औरतों को अनेक अधिकार दिए गए हैं. यहां तक कहा गया, ‘तुम में बेहतरीन वह है, जो अपनी बीवियों के लिए अच्छा हो.’ हमारे नबी पत्नियों का बहुत आदर किया करते थे. वह घर के कामों में हाथ बटाते थे. इस्लाम में औरतों को इतना बड़ा दर्जा है कि एक तलाकशुदा औरत की देखभाल की जिम्मेदारी भी शौहर पर है.

जो मां अपने बच्चे को दूध पिला रही है. उसका तलाक हो जाता है. उसके खाने और कपड़े की जिम्मेदारी भी उसके पति पर दी गई है. सूरह निसा आयत 19 में अल्लाह ताला फरमाते हैं, ‘इनके साथ तरीके से जिंदगी बसर करो.

अगर वह तुम्हें नापसंद हों तो हो सकता है कि एक चीज तुम्हें पसंद ना हो. हजरत मोहम्मद ने एक बार फरमाया, दुनिया की चीजों में मुझे सबसे ज्यादा महबूब औरत और खुशबू है. नमाज को अपनी आंखों की ठंडक बताया. आज 21 वीं सदी में पश्चिमी सभ्यता ने औरतों को जो कुछ दिया उन्हें मर्द बना दिया गया. मगर इस्लाम में औरत को औरत के मुकाम पर रखकर उसे सम्मान दिया. उन्नति के रास्ते बताए.

लेखिका दिल्ली के ओखला के एक स्कूल में टीचर हैं.