आजादी के 75 वर्ष पर झारखंड धनबाद के लोग बोले-थोड़ा है थोड़े की जरूरत है

Story by  शाहनवाज़ आलम | Published by  [email protected] | Date 18-08-2021
आजादी के 75 वर्ष पर झारखंड धनबाद के लोग
आजादी के 75 वर्ष पर झारखंड धनबाद के लोग

 

शाहनवाज आलम धनबाद ( झारखंड )
 
स्वतंत्रता के 75 वर्ष के जश्न में आज शामिल हो रहे हैं झारखंड राज्य की कोयला नगरी धनबाद के लोग. यहां के लोगों का मानना है कि आजादी के बाद देश ने अनेक तरक्की के सोपान तय किए हैं और बहुत कुछ करने की जरूरत है. यहां तक कि शिक्षा प्रणाली में भी तब्दीली आनी चाहिए और प्रशासनिक व्यवस्था में भी. धनबाद के लोगों को गर्व है कि वे एक ऐसे देश में जन्में हैं, जहां किसी भी तरह के भेद भाव की गुंजाइश नहीं है. यदि कोई ऐसा करने की कोशिश करता भी है तो उसे कानूनी और सामाजिक तौर पर विरोध और कार्रवाई का सामना करना पड़ता है. आप भी अपनी राय अपने चित्र के साथ हमें इस तरह हमारे ई-मेल [email protected] पर भेज सकते हैं.

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शमीम अख्‍तर, परीक्षा नियंत्रक, अहसान आलम मेमोरियल कॉलेज
 
बीते 75 वर्षों में देश एक तरक्‍की याफ्ता मुल्‍क में शामिल हुआ है. शिक्षा के क्षेत्र में नए मुकाम हासिल किए हैं. अब इस देश को किताबी तालीम के साथ हैंड्स ऑन स्किल की जरूरत है, ताकि युवाओं को डिग्री के साथ काम के अवसर मिलें. जिस तरह आईआईएम की स्‍थापना हुई और अब उसी तरह इंडियन इंस्‍टीट्यूट ऑफ स्किल्‍स एंड आंत्रप्रेन्‍योर की स्‍थापना होनी चाहिए, ताकि मैकाले के बाबूगिरी की शिक्षा से आगे बढ़कर देश में वोकेशनल शिक्षा को बल मिले.  
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मौलाना जमालुद्दीन, बड़ी मस्जिद
 
भारत हमेशा अमन पसंद मुल्‍क रहा है. 75 वर्षों में देश ने कई नए कीर्तिमान स्‍थापित किए है. युवाओं के बीच सांस्‍कृतिक पतन की नींव पड़ गई है. तहजीब और तमीज का दायरा सिमट रहा है. इसे अब बचाने के लिए गंगा-जमुनी तहजीब को बढ़ावा देने और भारतीय संस्‍कृति को म‍जबूत करने के नैतिक आंदोलन की जरूरत है. जिससे आने वाली पीढियां अपने सांस्‍कृतिक विरासत को समझ सकें.
jamil

मोहम्‍मद जमील , सूक्ष्‍म उद्यमी
 
देश में वीरगाथाओं की कमी नहीं है. दुनिया का सबसे नौजवान मुल्‍क है, लेकिन युवाओं के पास रोजगार की कमी है. विजन की कमी है. लाखों युवाओं की जिंदगी सिर्फ गुजर रही है. महारत्‍न जैसी कंपनियां हर जिले में सरकार स्‍थापित कर सकती है. युवाओं को रोजगार दे सकती है. जो लोग स्‍वरोजगार करना चाहते है, उन्‍हें लोन आसानी से मिल जाए. सरकार कहती कुछ है, लेकिन ग्राउंड पर बैंक वाले लोन ही नहीं देते है और शर्तों व कागजातों में उलझा कर हौंसला तोड़ देते हैं.
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नेहा फिरदौस , शिक्षिका, कार्मल स्‍कूल
 
 चहार दिवारी से निकलकर लड़कियां अब भारत की बेटियां यूनाइटेड नेशन तक पहुंच गई है। को-एजुकेशन में पढ़ाई कर रही है। सीबीएसई, आईसीएसई और स्‍टेट बोर्ड के टॉपर लड़कियां हो रही है। यह बदलाव ही तो है। यह एक दिन में नहीं हुआ है। कई वर्षों की मेहनत, समाज के प्रभुत्‍व लोगों की सोच और सरकार की पहल का नतीजा है, लेकिन अब लड़कियों के लिए एक सेफ माहौल की जरूरत है। जब वह बाहर निकले तो उसके मां-बाप को समय और स्‍थान की फिक्र नहीं हो।