इतिहास के झरोखों से : दूसरे विश्वयुद्ध की सबसे भीषण लड़ाई

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 10-04-2022
इतिहास के झरोखों से : दूसरे विश्वयुद्ध की सबसे भीषण लड़ाई
इतिहास के झरोखों से : दूसरे विश्वयुद्ध की सबसे भीषण लड़ाई

 

इतिहास के झरोखों से
 
हरजिंदर
 
आधे पोलैंड पर कब्जे के बाद सोवियत संघ संतुष्ट भी था और जर्मनी की तरफ से आश्वस्त भी. लेकिन हिटलर की सेनाएं इतने भर से संतुष्ट नहीं थीं. उनका इरादा अपने आप को पोलैंड के पश्चिमी हिस्से तक सीमित रखने का नहीं था. नाजी फौज तो पूरे सोवियत संघ पर ही कब्जे का सपना देख रही थी. जल्द ही हिटलर की फौज ने धावा बोला और पोलैंड को पार करते हुए वह यूक्रेन तक पहुंच गई. जून 1941 तक वह लाल सेना को लगातार हराते हुए यूक्रेन में घुस चुकी थी.

यूक्रेन की राजनीति उस समय तक काफी जटिल हो चुकी थी. ऑर्गेनाइजेशन ऑफ यूक्रेनियन नेशनलिस्ट जैसे संगठन सोवियत सेना और कम्युनिस्ट संगठन द्वारा बुरी तरह दबा दिए गए थे. इस संगठनों के जो थोड़े बहुत राष्ट्रवादी बचे थे वे भूमिगत होकर काम कर रहे थे.
 
ऐसे संगठनों और बहुत से लोगों ने शुरुआत में जर्मनी के हमले का स्वागत किसी मुक्तिदाता की तरह किया. खासकर गैलशिया में जहां इन संगठनों का मुख्य आधार था. जल्द ही स्वतंत्र यूक्रेन की घोषणा कर दी गई और उसका एक काम चलाउ प्रशासन बनाने की घोषणा भी हो गई.
 
यूक्रेन की कुछ सेनाएं भी इसी दौरान बनीं, जिनका मकसद यूक्रेन को रूस और सोवियत सेना से मुक्त कराना था. इनमें एक यूक्रेनियन लिबरेशन आर्मी भी थी जो नाजी सेना के साथ मिल कर लड़ाई लड़ रही थी.
 
लेकिन जर्मनी अपने द्वारा जीती गई जमीन पर किसी भी तरह की राजनीतिक गतिविधि की इजाजत नहीं देना चाहता था इसलिए ऐसे संगठनों के सभी नेता गिरफ्तार कर लिए गए.यूक्रेन के लोगों और खासकर राष्ट्रवादियों को यह समझने में देर नहीं लगी कि रूस के लोग उनके लिए जितने बुरे थे, जर्मनी के लोग उनके लिए उससे अच्छे नहीं हो सकते.
 
जर्मनी की सेना ने न तो वहां सामूहिक खेती की उस सोवियत व्यवस्था को खत्म करने का काम किया जिसके लिए यूक्रेनी आबादी बुरी तरह बेचैन थी. स्टालिन के जमाने में यहूदियों की प्रताड़ना का जो सिलसिला शुरू हुआ था हिटलर की फौज ने उसे योजनाबद्ध नरसंहार में बदल दिया. लाखों लोगों को बंधुआ मजदूरी के लिए जर्मनी भेजा जाने लगा.
 
यूक्रेन पर कब्जे का यह युद्ध काफी भीषण था. दूसरे विश्वयुद्ध की सबसे बड़ी खूंरेजी दरअसल यूक्रेन में ही हुई. हिटलर की सेना से 45 से 70 लाख सोवियत सैनिकों ने इस लड़ाई में टक्कर ली, जिनमें ज्यादातर यूक्रेनी ही थे.
 
अनुमान है कि इस जंग में 60 लाख से ज्यादा यूक्रेनी मारे गए। इनमें सैनिकों से कहीं ज्यादा आम लोग थे. पांच लाख के करीब तो यहूदी ही थे. एक दूसरा अनुमान बताता है कि इस युद्ध में 86 लाख सोवियत सैनिक मारे गए थे, जिनमें 14 लाख यूक्रेनी थे. लेकिन सैनिकों के अलावा अगर आम लोगों की बात की जाए तो मरने वालों में 40 से 44 फीसदी तक यूक्रेनी मूल के थे.
 
हालांकि ये तरह-तरह के अनुमान और दावे ही हैं, सही आंकड़े पाने का कोई प्रामाणिक स्रोत नहीं है.एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि दूसरे विश्वयुद्ध में जर्मनी के कुल जितने सैनिक मारे गए उसके 93 फीसदी यूक्रेन की लड़ाई में ही मारे गए थे.
 
जर्मनी को सबसे ज्यादा नुकसान कीव की लड़ाई में हुआ. इस जंग ने जर्मनी की सेना के लंबे समय तक दांत खट्टे किए. यह वही कीव है इस बार भी भारी लड़ाई चल रही है और रूसी सेना को लोहे के चने चबाने पड़ रहे हैं. 
 
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.