इतिहास के झरोखों से : यूक्रेन को वापस मिले उसके कईं हिस्से

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 05-04-2022
इतिहास के झरोखों से : यूक्रेन को वापस मिले उसके कईं हिस्से
इतिहास के झरोखों से : यूक्रेन को वापस मिले उसके कईं हिस्से

 

इतिहास के झरोखों से

हरजिंदर

स्टालिन का युग यूक्रेन के लिए उसके इतिहास का सबसे कठिन समय था, शायद सबसे जटिल समय भी.भीषण अकाल से गुजरे यूक्रेन का औद्योगीकरण भी इसी दौर में हुआ और इसी दौर में सामूहिक खेती बड़े पैमाने पर शुरू हुई.1929 तक वहां सामूहिक खेती महज नौ फीसदी ही होती थी जो एक साल में बढ़कर दस गुना हो गई.


औद्योगीकरण और सामूहिक खेती का सबसे बड़ा और सीधा असर वहां के किसानों पर पड़ा.लाखों छोटे-छोटे किसान जो अभी तक जमीन के बहुत छोटे टुकड़े और अपनी मर्जी के मालिक हुआ करते थे वे नए लग रहे उद्योगों में मजदूरी को मजबूर हो गए.और जो इन उद्योगों में नहीं गए वे अपने ही खेतों में मजदूरी को बाध्य थे.

यही वह दौर था जब यूक्रेन का काफी तेजी से शहरीकरण शुरू हुआ.अचानक ही यूक्रेन की शहरी आबादी बढ़कर तीन गुना हो गई.स्टालिन के पहले तक यूक्रेन के कम्युनिस्ट आंदोलन में ऐसे कईं लोग न सिर्फ सक्रिय थे बल्कि कईं तरह से प्रभावी भी थे और वे व्यवस्थाओं का यूक्रेनीकरण करना चाहते थे.

राष्ट्रीयकरण की यह धारा मास्को को लगातार परेशान करती थी लेकिन इसे कुचलने की कोई बड़ी कोशिश पहले कभी नहीं हुई थी.लेकिन स्टालिन के दौर में यह काम भी शुरू हो गया.स्टालिन ने अपने सबसे विश्वासपात्र लाज़ार कागनोविच को यूक्रेनी कम्युनिस्ट पार्टी का प्रमुख बनाकर भेजा और वे उन लोगों को पहले तोड़ने और फिर पार्टी के भीतर दरकिनार करने में कामयाब रहे जो राष्ट्रवादी माने जाते थे.बाद में उनका पार्टी से पूरी तरह सफाया ही कर दिया गया.


इसके लिए कईं तरह की सख्ती और निर्दयता भी बरती गई.सोवियत प्रशासन की खुफिया संस्था चीका वहां सक्रिय हो गई.विरोधियों को पकड़-पकड़ कर श्रम शिविरों में भेजा जाने लगा.कुछ को साईबेरिया भी भेजा गया. यह दमन चक्र चर्च पर भी चला.1933 आते आते वहां यूक्रेनीकरण पूरी तरह खत्म हो गया और रूसीकरण की शुरुआत हो गई.

अभी यह रूसीकरण चल ही रहा था कि अचानक ही दूसरे विश्वयुद्ध ने दस्तक दे दी.यह दूसरा विश्वयुद्ध भी यूक्रेन के पड़ोस से ही शुरू हुआ.उस पोलैंड से जो उस समय तक यूक्रेन के एक हिस्से पर कब्जा जमाए बैठा था.

दूसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत हम एक सितंबर 1939 को तब से मानते हैं जब जर्मनी के एडोल्फ हिटलर की फौज ने पोलैंड पर हमला किया था.इस हमले के तुरंत बाद इंग्लैंड और फ्रांस ने जर्मनी के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया.जल्द ही सोवियत संघ भी पोलैंड के खिलाफ आक्रामकता दिखाने लगा.

हिटलर के इस हमले को एक और तरह से भी देखा जाता है.जिस दिन हिटलर ने पोलैंड पर हमला किया उससे महज आठ दिन पहले नाजी जर्मनी और सोवियत संघ के बीच एक समझौता हुआ था.

इस समझौते में एक बात तो यह थी कि दोनों एक दूसरे पर हमला नहीं करेंगे.लेकिन इस हमले की दूसरी महत्वपूर्ण बात यह थी कि दोनों अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने के लिए पोलैंड पर कब्जा करके उसे आपस में आधा-आधा बांट लेंगे.

हिटलर ने इस समझौते को अमली जामा पहनाने के लिए ही यह हमला बोला था.जल्द ही सोवियत सेनाओं ने भी पूर्वी पोलैंड पर कब्जा करना शुरू कर दिया.इसमें वह गैलीशिया भी था जहां बड़े पैमाने पर यूक्रेनी आबादी रहती थी और यहीं से यूक्रेन का राष्ट्रवादी आंदोलन भी चलता रहा था.

जाहिर है कि ये इलाके यूक्रेन में शामिल कर दिए गए.सदियों बाद इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि पूरा यूक्रेन एक साथ था.दिक्कत सिर्फ यह थी कि जब यह हुआ तो यूक्रेन खुद-मुख्तार नहीं था और उसकी बागडोर मास्को के हाथ थी.

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.