इजिप्ट 2 : प्राचीन भाषा जो सदियों तक एक पहेली थी

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 23-01-2023
इजिप्ट 2 : प्राचीन भाषा जो सदियों तक एक पहेली थी
इजिप्ट 2 : प्राचीन भाषा जो सदियों तक एक पहेली थी

 

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दुनिया भर में इतिहास के बारे में बताने वाले जितने भी म्यूज़ियम या अजायबघर हैं उनमें अगर सबसे ज्यादा भीड़ जुटती है तो वह मिस्र के शिलापट्ट या टैबलेट और पत्थर पर उकेरी गई तस्वीरों के सामने.इनमें जो मुख्य तस्वीर होती है उसके पास ही कुछ आकृतियां बनी होती हैं.जैसे कोई पक्षी, हाथ, पैर, केकड़ा, तिकोना, चैकोरखाना वगैरह.

इस तरह की आकृतियां मिस्र की प्राचीन इमारतों वगैरह पर भी दिखती हैं. सदियों तक ये आकृतियां एक पहेली बनी रहीं और लोग यह जान नहीं सके कि ये यहां पर हैं किस लिए.इनकों बनाने के पीछे क्या मकसद है ? बाद में जब इस तरह की आकृतियां और भी जगह खासकर पेड़ों के तने से बनाए जाने वाले एक तरह के कागज पर भी मिलीं तो इनके बारे में राय बदलने लगी.

सदियों तक ये आकृतियां एक पहेली बनी रहीं,धीरे-धीरे समझ में आया

धीरे-धीरे यह समझ में आया कि ये सिर्फ आकृतियां भर नहीं हैं बल्कि एक भाषा है.एक लिपि है जो चित्रों के जरिये अपनी बात कहती है.भाषा शास्त्रियों ने इसे इजिप्शियन हाइरोग्लाइफ कहा.कार्बन डेटिंग के जरिये आज हम जानते हैं कि इस लिपी का इस्तेमाल तकरीबन साढ़ें पांच हजार साल या उससे भी काफी पहले शुरू हुआ.

egyptकार्बन डेटिंग के जरिये हम जानते हैं कि इस लिपी का इस्तेमाल तकरीबन साढ़ें पांच हजार साल पहले शुरू हुआ

लेकिन यह भाषा क्या कहती है इसे समझना काफी मुश्किल था.सदियों तक यह एक अनजान भाषा थी जो हमारे सामने थी, बहुत साफ और स्पष्ट रूप में लिखी हुई.लेकिन उसे कोई समझने वाला नहीं था.प्राचीन काल की किसी भाषा को न समझने का अर्थ होता है उस पूरे दौर को ही न समझ पाना.दुनिया के कई माहिरों ने इसमें समय खपाया लेकिन इसकी थाह नहीं पा सके.

इसको समझने की एक बड़ी कोशिश सबसे पहले नेपोलियन बोनापार्ट ने की.18वीं सदी के अंत में नेपोलियन ने जब मिस्र पर हमला किया तो उसके साथ एक ताकतवर फौज तो थी ही साथ ही कुछ वैज्ञानिक भी थे और कलाकारों का एक दल भी था.शायद यह अकेला ऐसा मामला है जब हमला करने वाली किसी फौज के साथ ढेर सारे कलाकार भी किसी देश में पहंुचे हो.

मिस्र पहुंचने के बाद इन कलाकारों को कहा गया कि उन्हे जहां भी इस तरह की लिपि मिले उसे हूबहू कागज पर उतार लें.कलाकार तुरंत ही काम में जुट गए और इस लिपि की प्रतिलिपियां तैयार हो गईं.इन सबको फ्रांस में ले जाकर वहां भाषा विज्ञान के माहिरों को सौंप दिया गया.

फ्रांस में भाषा विज्ञान के जितने भी बड़े नाम थे सब के सब इसे समझने में जुट गए.जल्द ही यह बात समझ आई कि जो चित्र बना है लिपि का मतलब वह चीज नहीं है.बल्कि वह चित्र एक उच्चारण की ओर इशारा करता है.

यानी अगर हाथ बना है तो इसका मतलब हाथ नहीं है बल्कि ‘द‘ है.आज की दुनिया में दो ही तरह की लिपियां हैं, एक वह जो बाएं से दाएं की ओर लिखी जाती है, जैसे अंग्रेजी, देवनागरी.दूसरी वे हैं जो दाएं से बाएं की ओर लिखी जाती हैं, जैसे अरबी फारसी वगैरह.जबकि मिस्र की यह लिपि इन दोनों ही तरह से तो लिखी ही जाती थी साथ ही ऊपर से नीचे की ओर भी लिखी जाती थी.इन माहिरों ने लगातार 20 साल से भी ज्यादा मेहनत की, तब जाकर कहीं 1820 में यह भाषा पूरी तरह समझी जा सकी.और आज प्राचीन मिस्र के बारे में हम जो जानते हैं वह भाषा के इन्हीं फ्रेंच माहिरों की वजह से मुमकिन हुआ.

आज जिस लिपी को हम इजिप्श्यिन हाइरोग्लाइफ के नाम से जानते हैं वह दुनिया की सबसे प्राचीन लिपि नहीं है.उससे पुरानी एक लिपि और है जो मिस्र के पड़ोस में ही मेसोपोटामियां मे विकसित हुई थी, जिसे सुमेरियन स्क्रिप्ट कहा जाता है.

languageआज जिस लिपि को हम इजिप्शियन हाइरोग्लाइफ के नाम से जानते हैं वह सबसे प्राचीन लिपि नहीं है

यह भी माना जाता है कि इजिप्शियन हाइरोग्लाइफ इसी लिपि से ही विकसित हुई.इजिप्शियन हाइरोग्लाइफ भले ही दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा न हो लेकिन निसंदेह यह सबसे दिलचस्प भाषा जरूर है. 

जारी……

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं @herhj)

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