पता है राष्ट्रपति उम्मीदवार बनने को जब वाजपेयी की काॅल आई तो कलाम साहब क्या कर रहे थे ?

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] • 2 Years ago
आपको पता है राष्ट्रपति उम्मीदवार  बनने को जब वाजपेयी की काॅल आई तो कलाम साहब क्या कर रहे थे
आपको पता है राष्ट्रपति उम्मीदवार बनने को जब वाजपेयी की काॅल आई तो कलाम साहब क्या कर रहे थे

 

आज के दौर में जनसेवकों का बहुत वड़ा वर्ग राजा की तरह बरताव करता है. इनके बीच डॉ.कलाम ने सादमी, मितव्ययिता और ईमानदारी की कई अनुकरणीय मिसालें पेश कीं. ये प्रेरणा भी हो सकती है और आईना भी. डॉ कलाम के बारे में बहुत सारी ऐसी बातें हमने पढ़ी हैं. बहुत सारे ऐसे लोग हैं जिन्होंने इन घटनाओं को अपने सामने घटते हुए देखा है. डॉ कलाम के प्रेस सेक्रेट्री रहे एस.एम. खान उनमें से एक हैं. उनसे खास बातचीत की डिप्टी एडिटर मंजीत ठाकुर ने. बातचीत के मुख्य अंशः

सवालः डॉ. कलाम को पूरा देश अपना आदर्श मानता है. आप उनकी किस बात से सबसे अधिक प्रेरित हुए?

एस.एम. खानःउनकी सादगी और उनकी ईमानदारी. जो भी वह सामने थे, वही अंदर से भी थे. ऐसा कोई पहलू उनका नहीं था, जिसे आप नहीं समझ सकें. राजनीतिज्ञों के बारे में ऐसा कहा जाता है कि वह ऊपर से कुछ और होते है और अंदर से कुछ और. या उनके दिमाग में कुछ और चल रहा होता है. ऐसी कोई बात उनके साथ नहीं थी. वह बेहद सरल, नम्र और पारदर्शी व्यक्ति थे. उनकी ईमानदारी उनके हर काम में झलकती थी. उनके काम करने में, उनकी दिनचर्या में, और उनके बड़े-बड़े फैसले लेने में.

वह एक ऐसे राष्ट्रपति साबित हुए, जो बहुत सक्रिय थे. उनके सक्रिय होने का मतलब यह था कि वह गैर-जरूरी तौर पर सरकार के लिए कोई समस्या खड़ी नहीं करते थे. लेकिन जहां बतौर राष्ट्रपति उनके फैसले लेने की बात आती थी तो वह हमेशा उसे संविधान की कसौटी पर कसते थे. वह इस मामले में सरकार या किसी और बात के असर में नहीं आते थे.

उनके कार्यकाल में दोनों ही सरकारें रहीं. 2002 से 2004 तक एनडीए और उसके बाद यूपीए. उन्होंने दोनों प्रधानमंत्रियों, वाजपेयी जी और मनमोहन सिंह जी के साथ काम किया था. लेकिन उन्होंने दोनों ही सरकारों के कार्यकाल में स्वतंत्र फैसले लिए. लेकिन तभी, जब राष्ट्रपति को फैसला लेने की जरूरत थी. यह नहीं कि वह सरकार के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप करते हों. उन्होंने ऐसा किसी सरकार के कार्यकाल में नहीं किया, एक दिन के लिए भी नहीं किया.

अगर कोई मामला उनतक आता था, जिसमे राष्ट्रपति को संवैधानिक दायरे में रहकर फैसला लेने की जरूरत होती थी तो उन्होंने वह फैसले बिना प्रधानमंत्री या कैबिनेट के असर में आए बिना स्वतंत्र रहकर लिए. उन पर उस वक्त की सियासी ओवरटोन का भी असर नहीं होता था. उनके कार्यकाल में यह बात रही जो लोग आज भी याद करते हैं. कई सारे लोग तो कहते है कि उनके लिए कलाम हमेशा राष्ट्रपति रहेंगे. राष्ट्रपति बहुत सारे आए हैं, आते रहेंगे लेकिन बहुत से लोग कहते हैं कि कलाम प्रेजिडेंट फॉरएवर हैं.

सवालः हमने पढ़ा है कि कलाम साहब राष्ट्रपति भवन आए तो सिर्फ दो सूटकेस के साथ आए थे.

एस.एम. खानःबिल्कुल सही बात है. असल में, कलाम साहब राष्ट्रपति बने तो उस वक्त वह चेन्नै के अन्ना यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर एमिरेट्स थे. जब बतौर प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार का उनका कार्यकाल खत्म हुआ, तो उसका दर्जा कैबिनेट मंत्री के बराबर होता था. उस वक्त अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे. उससे पहले कलाम साहब रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार रहे थे, डीआरडीओ के निदेशक रहे थे. तो जब उनका कार्यकाल खत्म हुआ तो वह अन्ना यूनिवर्सिटी चले गए, जहां उनके लिए खास पद प्रोफेसर एमिरेटस बनाया गया.

जब उनके पास पीएम का फोन पहुंचा कि सभी राजनैतिक पार्टियों ने तय किया है कि आपको राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया जाए तो उस वक्त भी वह क्लास ले रहे थे. उनके पास फोन तो था नहीं, तो अन्ना यूनिवर्सिटी के वॉइस चांसलर के पास फोन पहुंचा कि प्रधानमंत्री बात करना चाहते हैं, तो उस वक्त भी वह क्लास में थे. उन्होंने जवाब दिया कि क्लास खत्म करके मैं बात करता हूं. और फिर वॉइस चांसलर के ऑफिस जाकर उन्होंने प्रधानमंत्री को फोन किया.

जहां तक दो सूटकेस का सवाल है, उस वक्त वह अन्ना यूनिवर्सिटी के गेस्ट हाउस में रहा करते थे. पहले वह दिल्ली में एशियाड विलेज में डीआरडीओ के गेस्ट हाउस में रहते थे.

वह खुद बताते थे कि पूरी जिंदगी में वह किसी मकान में नहीं रहे, न खरीदा. हमेशा गेस्ट हाउस में ही रहे. जब वह इसरो में थे तो तिरुवनंतपुरम के इसरो के गेस्ट हाउस में रहते थे, जब हैदराबाद में मिसाइल डेवलपमेंट लैब में गए तो वहां डीआरडीओ के गेस्ट हाउस में रहने लगे. दिल्ली में भी ऐसा ही किया. उनकी कोई निकट परिजन तो थे नहीं, तो उनके पास कोई सामान ही नहीं था. मैंने ऐसा कोई व्यक्ति देखा नहीं है जिसके पास अपना कोई सामान ही नहीं हो. कोई भौतिक वस्तु थी ही नहीं. उनके पास कोई मकान नहीं था. कोई दुकान नहीं थी, न प्लॉट था, टीवी-फ्रिज भी नहीं था. मतलब कोई घरेलू सामान नहीं था, क्योंकि उन्होंने कभी घर बसाया ही नहीं.

उनके पास सामान के नाम पर कुछ कपड़े थे. जो बेहद साधारण थे और राष्ट्रपति बनने के पहले तक कपड़े बहुत कम थे. राष्ट्रपति बनने के बाद तो बहुत सारे सूट उन्हें सिलवाने पड़े, औपचारिक और अलंकरण समारोहों के लिए. लेकिन उनके पास किताबें थीं.

जब वह राष्ट्रपति हुए, तो राष्ट्रपति भवन में तो सैन्य कार्यालय भी है जिसके पास टू टन, थ्री टन, फोर टन कहवाने वाला भारवाहक ट्रक हैं, तो अधिकारी उनके पास पहुंचे कि डीआरडीओ गेस्ट हाउस से सामान ले जाएं.

कलाम साहब से मिले तो कलाम साहब ने कहा कि सामान ही नहीं है, दो सूटकेस हैं वह तो कार में चले जाएंगे. हां, किताबें हैं इनको पैक करवा कर कार्टन में, एहतियात से लेते आना.

वह पांच साल तक रहे राष्ट्रपति भवन में, तो कार्यकाल खत्म होने के बाद, 25 जुलाई 2007 को, तो उनका एक कार्यक्रम इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर का था. तो 21 जुलाई का उनका कार्यक्रम वहां तय किया गया.

तो उसी कार्यक्रम में उन्होंने यह ऐलान किया कि मैं दो सूटकेस लेकर आया था और दो सूटकेस लेकर ही जा रहा हूं. मैंने उसमें कुछ जोड़ा नहीं है.

मेरी किताबें जरूर बढ़ गईं है पांच साल में, और अगर अनुमति दें तो मैं वह किताबें अपने साथ ले जाऊंगा.

एस एम खान

एस. एम. खान एपीजे अब्दुल कलाम के प्रेस सेक्रेट्री थे


सवालः पूरे राजनैतिक जीवन में, कलाम साहब ने सिर्फ दो छुट्टियां ली थीं. कौन सी छुट्टियां थी वह.

एस.एम. खानःएक बार उनकी भांजी की शादी थी. उन्होंने अपनी बहन से वादा किया था कि वह भांजी की शादी में जरूर मौजूद रहेंगे. उन दिनों वह मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम में बहुत बिजी थे.  

उन दिनों आर. वेंकटरमण साहब रक्षा मंत्री थे. मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम के बारे में कलाम साहब की रक्षा मंत्री के साथ बैठक थी. असल में, मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम वित्तीय कमी से जूझ रहा था और रुका हुआ था और कलाम साहब रक्षा मंत्री से थोड़ी और रकम आवंटित करवाना चाहते थे. इत्तफाक यह हुआ कि रक्षा मंत्री ने वह बैठक शादी की तारीख के आसपास ही रख ली. कलाम साहब के लिए वह मीटिंग बेहद अहम थी. चूंकि रक्षा मंत्री ही डीआरडीओ के इंचार्ज होते हैं, तो वेंकटरमण साहब को कलाम साहब की छुट्टी के बारे मे पता चल गया. उन्हें पता लगा कि कलाम साहब को तो रामेश्वरम जाना था और वह यहां बैठे हैं. तो उन्होंने एक एयरक्राफ्ट में, जिसमें अफसर किसी काम से मदुरै जा रहे थे, उसमे कलाम साहब को भेजने का इंतजाम कर दिया.

तो वह छुट्टियां उनकी बहुत मशहूर हुई थीं.

सवालः बतौर राष्ट्रपति तो बहुत सारे उपहार मिलते हैं. कलाम साहब ने क्या किया उनका?

एस.एम. खानःबेशक राष्ट्रपति को बहुत सारे गिफ्ट मिलते हैं. उनमें से कई ऐसे होते हैं जो लोग निजी तौर पर राष्ट्रपति को देते है. कुछ गिफ्ट आधिकारिक स्मृति चिह्न जैसे होते हैं. कुछ विदेशों में मिलते हैं. मुझे याद है कि राष्ट्रपति बनने के बाद उनका सबसे पहला दौरा 12 अगस्त को गुजरात का था. वहा श्री नरेंद्र मोदी वहां के मुख्यमंत्री थे. वहां दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से दंगे हुए थे और 28 फरवरी को और 1-2 मार्च को बहुत गड़बड़ी हुई थी. उससे पहले जनवरी महीने में भयानक भूकंप भी आया था.

इस वजह से कलाम साहब ने कहा कि दिल्ली से बाहर अगर वह दौरा करेंगे तो पहला दौरा गुजरात का ही होगा, ताकि वह दोनों मामलों में सामान्य स्थितियां बहाल होने को देखें. तो कलाम साहब गुजरात पहुंचे.

वहां तो हालात ऐसे थे कि गिफ्ट वगैरह देने का कोई मसला था नहीं लेकिन उसके बाद 5 सितंबर को, उनका दूसरा दौरा भोपाल का था. जहां वह 1984 में यूनियन कार्बाइड के गैस रिसाव के प्रभावित लोगों से मिलने गए थे.

तो पांच सितंबर, शिक्षक दिवस के दिन मध्य प्रदेश सरकार ने कुछ उपहार देने का इंतजाम किया था. उनके सामने पहला ऐसा मौका था, तो उन्होंने तुरंत मुख्यमंत्री को मना कर दिया. पर ऐसा विदेशी दौरों पर होता है जब कोई मेजबान देश भारत देश को कोई गिफ्ट देना चाहे, तो वह डिप्लोमेसी का मामला होता है और वह तो लेनी होगी. पर अपने देश के भीतर इसकी कोई जरूरत नहीं थी. तो उन्होंने वहीं से एक सर्कुलर जारी करवाया, कि दौरों के दौरान कोई गिफ्ट न तो राष्ट्रपति को और न उनकी टीम को दी जाएगी. तो इस तरह टीम को भी उन्होंने गिफ्ट से मना कर दा, वरना पहले राष्ट्रपति की टीम को भी काफी गिफ्ट मिला करते थे. तो हमें भी कुछ नहीं मिला.

तो सरकारी मकसद के लिए उन्हें जो गिफ्ट मिले, तो उसे राष्ट्रपति भवन में जमा कर देते थे और निजी तौर पर उन्होंने कोई गिफ्ट नहीं रखे.

सवालः 2005में जब परवेज मुशर्रफ आए तो सबने कलाम साहब को कहा कि वह कश्मीर पर बात करेंगे पर कलाम साहब ने मुशर्रफ को 30मिनट का लेक्चर दिया था. वह क्या वाकया था.

एस.एम. खानःमैं भी वहां पर मौजूद था. मैंने अपनी किताब द पीपल्स प्रेजिडेंटः एपीजे अब्दुल कलाम उसमें भी इस घटना का वर्णन किया है. उस मीटिंग में था कि मुशर्रफ साहब कश्मीर का मुद्दा उठाएंगे. तो कलाम साहब ने शुरू मे ही कह दिया, मुशर्रफ साहब, हमलोग कश्मीर या ऐसे किसी मुद्दे पर बात नहीं करेंगे. क्योंकि कश्मीर का मसला तो आधे घंटे मे सुलझेगा नहीं. और सरकार के स्तर पर जो बातचीत होती है वह चल ही रही है.

मेरी दिलचस्पी हिंदुस्तान और पाकिस्तान की गरीबी को दूर करने में है. दोनों देशों में एक ही समस्या है, गरीबी. जो लोग हमारे पीछे रह गए हैं उनको ऊपर उठाने की. तो मैने पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेशन तैयार किया है कि हमलोग मिलकर कैसे गरीबी से लड़ सकते हैं.

तो अगले आधे घंटे तक कलाम साहब ने उनको स्लाइड्स दिखाए कि गरीबी कैसे दूर की जा सकती है. उसके बाद मुशर्रफ ने कहा कि इंडिया इज लकी टू हैव अ साइंटिस्ट प्रेजिडेंट. मुशर्रफ जाते वक्त उस पीपीटी की कॉपी ले गए.

सवालः एक वाकया है कि केरल गए तो कलाम साहब के पहले मेहमान एक मोची और एक ढाबे वाले थे. वह क्या हुआ था.

एस.एम. खानःउनकी पूरी जिंदगी गेस्ट हाउस में गुजरी है. तो उन दिनों जब वह केरल में तिरुवनंतपुरम में पोस्टेड थे.

तो शुरू में वहां पर वह होटल में रहे थे. एक साल से ज्यादा अरसा गुजारा था. दफ्तर उनका थुंबा में था. तो वह तिरुवनंतपुरम से थुंबा जाया करते थे. उनके होटल के नीचे कोई मोची बैठा करते थे और कलाम साहब की अक्सर उनसे बातचीत होती थी. क्योंकि कलाम साहब अक्सर उस जमाने में चमड़े की चप्पलें पहना करते थे. चप्पलें उनके पास कम थीं और अक्सर टूट जाता करती थीं. तो उसे ठीक करवाने उस मोची के पास जाते थे. तो उससे उनकी बातचीत होती थी. तो जब कलाम साहब त्रिवेंद्रम राजभवन पहुंचे तो उस मोची को बुलवाया, जो अब काफी बूढ़े हो गए थे और काम तो नहीं करते थे.

साथ ही, कलाम साहब ने उस ढाबे वाले को भी बुलवाया, जिसके यहां वह खाना खाने जाते थे. असल में कलाम साहब को दक्षिण भारतीय खाना बहुत पसंद था.

इडली डोसा सांबर बड़ा...कर्ड राइस. तो यह खाने कलाम साहब ढाबे पर जाते थे. तो उनको भी इनवाइट किया था. वे लोग कलाम साहब से मिलकर बहुत खुश थे.

 

सवालः डीआरडीओ की दीवारों पर कांच के टुकड़े लगवाने से भी मना करवा दिया था कलाम साहब ने...

एस.एम. खानःउन्होंने कहा था कि इससे कोई आदमी जख्मी हो सकता है. इसलिए सुरक्षा का कोई ऐसा इंतजाम किया जाए कि जाने-अनजाने किसी को नुक्सान न पहुंचे. सुरक्षा प्रतिष्ठानों में दीवारों पर कांच के टुकड़े या तार में बिजली का करंट दौड़ाने के उपाय किए जाते रहे हैं. इन सब कामों से उन्होंने मना कर दिया था.

सवालः चिड़ियो से बहुत प्रेम था

एसएम खानः वाकई. उन्होंने बर्ड्स इन राष्ट्रपति भवन नाम से एक किताब भी बनवाई. जितने भी परिदें राष्ट्रपति भवन में थे, क्योंकि बहुत सारी नस्लें हैं. काफी सारा फॉरेस्ट एरिया है. मुगल गार्डन है, उन पर किताब बनवाई. वह खुद फोटोग्राफर के साथ घूमा करते थे. फोटो लेते हुए. राष्ट्रपति भवन में चिड़ियों की पहचान के लिए उन्होंने शायद मुंबई से एक पक्षी विशेषज्ञ को भी बुलवाया था. उन पक्षी विशेषज्ञ को बतौर मेहमान राष्ट्रपति भवन में ही ठहराया गया था और खुद भी उनके साथ जाया करते थे.

सवालः हमने सुना है कि संगीत का बहुत शौक था उनको. वीणा बजाया करते थे.

एस.एम. खानःवह कहते थे कि जब भी उनको समय मिलता है मैं वीणा बजाया करता हूं. वह साथ में रुद्र वीणा लेकर आए थे और अपने साथ लेकर भी गए. उसे ही बजाते थे.  

कर्नाटक संगीत से बहुत जुड़ाव था उनका और वह खाली वक्त में कर्नाटक संगीत, खासतौर पर एमएस सुब्बुलक्ष्मी को सुना करते थे.

और जब उनके कार्यकाल में सुब्बुलक्ष्मी का निधन हुआ तो वह श्रद्धांजलि देने विशेष तौर पर चेन्नै गए थे. संगीत उन्हें पसंद था.

सवालः कोई और दिलचस्प वाकया..

एस.एम. खानःकलाम साहब के बारे में तो हम घंटों बात कर सकते हैं. छात्रों के साथ उनका कनेक्ट कमाल का था. मुझे नहीं लगता कि किसी विश्वनेता का छात्रों के साथ ऐसा संबंध रहा होगा. तब उनकी उम्र 75साल की थी और किसी नौजवान के चेहरे पर 75साल के आदमी को देखते ही रौनक आ जाए, ऐसा कम होता है. वह बड़े दोस्ताना तरीके से और विनोदी तरीके से बात करते थे. एक बार श्रीहरिकोटा में एक छात्र ने उनसे पूछा था कि देश की आबादी इतनी बढ़ गई है तो हम लोग इससे कैसे निबटेंगे. तो सबसे पहले तो उन्होने कहा, कि लुक आइ हैव नॉट एडेड टू दिस प्रॉब्लम. और अब मैं तुम्हें इसके मेरिट और डिमेरिट पर जवाब दूंगा. ऐसे ही हरियाणा के पटौदी में एक कार्यक्रम था जहां एक बच्चे ने पूछ लिया कि बड़ा ही अजीब संयोग है कि देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री (वाजपेयी) दोनों कुंवारे हैं. तो उन्होंने इंग्लिश में जवाब दिया, आइ एम अ ब्रह्मचारी टू.

तो इस तरह भी कभी-कभी विनोदी तरीके से जवाब देते थे और लोगों को सहज बनाकर रखते थे.

सवालः कलाम साहब को कई भूमिकाओं में हम जानते हैं, पर उनकी कौन सी भूमिका पसंद उन्हें पसंद थी?

एस.एम. खानःउन्हों खुद इसका एक बार जवाब दिया थाः पढ़ाना. राष्ट्रपति से सेवानिवृत्त होने के बाद भी उन्होंने जगह-जगह जाकर पढ़ाना जारी रखा था. वह कम से कम बीस विश्वविद्यालयों से जुड़े हुए थे.

उनका निधन भी पढ़ाई के एक कार्यक्रम के दौरान ही हुआ था. वह आइआइएम शिलॉन्ग के छात्रों को पढ़ाने पहुंचे. उस रोज 27जुलाई, 2015और मेरी आखिरी मुलाकात उनसे 24जुलाई, 2015को हुई थी. मैं गया थोड़ी देर बाद बातचीत के बाद साम चार बजे वह टहलने निकल गए. वह रोज टहलते थे पर वक्त तय नहीं होता था. टहलने का वह अलग ही टाइम टेबल फॉलो करते थे. उस रोज वह गोहाटी पहुंचे और बिना रुके 3घंटे की पहाड़ी रास्ते की यात्रा करके शिलॉन्ग पहुंचे और राजभवन जाने की बजाए सीधे आइआइएम पहुंच गए. वह पोडियम पर पहुंचे और जैसे ही पोडियम पर गए और कहा फ्रेंड्स आइ विल स्पीक, ऑन हाउ टू मेक दिस प्लैनेट मोर लिवेबल.

उन्होने लेक्चर शुरू किया और वहीं पर उनका निधन हो गया और अपनी जिंदगी के आखिरी दिन बतौर टीचर ही उन्होंने अंतिम सांस ली.