शिक्षा और रोजगार से हज़ारों ज़िंदगियों में रौशनी बिखेरते तारिक आलम

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 28-10-2025
Kapali's Light: Syed Tariq Alam's Example of Education and Service
Kapali's Light: Syed Tariq Alam's Example of Education and Service

 

झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले के छोटे से कस्बे कपाली से निकली यह कहानी उम्मीद, हिम्मत और बदलाव की मिसाल है. लौहनगरी जमशेदपुर के करीब बसा यह इलाका आर्थिक और शैक्षिक चुनौतियों से जूझता रहा है, लेकिन इन्हीं मुश्किल हालातों में सय्यद तारिक आलम ने इंसानियत और शिक्षा की मशाल जलाकर अंधेरे में रौशनी फैलाई है. गरीब और ज़रूरतमंद बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देने से लेकर बेरोजगार युवाओं को हुनरमंद बनाकर रोज़गार से जोड़ने तक, उनकी ‘आलम वेलफेयर फाउंडेशन’ आज हज़ारों ज़िंदगियों में नई उम्मीद जगा रही है. पढ़िए आवाज द वॉयस के थे चेंज मेकर्स सीरीज के तहत झारखंड से हमारे सहयोगी जेब अख्तर की तौकीर आलम पर यह विस्तृत रिपोर्ट. 

 

झारखंड का कोल्हान क्षेत्र अपनी प्राकृतिक खूबसूरती और समृद्ध आदिवासी संस्कृति के लिए जाना जाता है. लेकिन इस चमक-दमक के पीछे एक कठिन सच्चाई छिपी है. सरायकेला-खरसावां जिला, जो इस क्षेत्र का हिस्सा है, आज भी विकास की दौड़ में पीछे है. आर्थिक तंगी, शिक्षा की कमी और रोज़गार की चुनौतियां यहां आम हैं. इसी जिले की सीमा पर बसा है कपाली, एक कस्बेनुमा छोटा शहर, जो लौहनगरी जमशेदपुर से महज़ 20 किलोमीटर की दूरी पर है. 

जमशेदपुर देशभर के मजदूर वर्ग के लिए एक बड़ा रोज़गार केंद्र है. यहां आने वाले अनेक श्रमिक कपाली में ही बस जाते हैं, क्योंकि यहां जीवन यापन अपेक्षाकृत सस्ता है. इनमें से कई लोगों को जमशेदपुर में काम तो मिल जाता है, लेकिन न तो वह काम स्थायी होता है, न ही उसमें सम्मानजनक आमदनी होती है. इसका असर उनके बच्चों की शिक्षा पर पड़ता है. नतीजतन, कपाली और आसपास के स्कूलों में ड्रॉपआउट की दर बहुत अधिक है.

इसी सामाजिक सच्चाई ने सय्यद तारिक आलम को झकझोर दिया. उन्होंने तय कर लिया कि हालात को बदलना होगा. और यही संकल्प आज हज़ारों ज़िंदगियों के लिए ‘उम्मीद की रौशनी’ बन चुका है. पिछले 13-14 वर्षों से तारिक आलम और उनके साथी- शउद आलम, शब्बीर हुसैन, आदिल मलिक और सरफराज अहम; गरीब और ज़रूरतमंद बच्चों तथा परिवारों की बेआवाज़ मदद कर रहे हैं. शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य और सामाजिक सहयोग जैसे सभी मोर्चों पर उनका काम न केवल सराहनीय है, बल्कि प्रेरणादायक भी है.

शिक्षा: सपनों को पंख

तारिक आलम का मानना है, “अगर समाज को बदलना है, तो शुरुआत बच्चों से होनी चाहिए.” इसी सोच से उन्होंने कपाली में Ash Shamsh Anglo Urdu Middle School की नींव रखी.तीन साल पहले शुरू हुआ यह स्कूल आज उन परिवारों के लिए उम्मीद की किरण है, जो बच्चों को पढ़ाना तो चाहते हैं लेकिन आर्थिक तंगी के कारण असमर्थ हैं. वर्तमान में यहां 56 बच्चों को पूरी तरह नि:शुल्क शिक्षा दी जा रही है. किताबें, ड्रेस और पढ़ाई का संपूर्ण वातावरण, सब कुछ तारिक और उनके साथियों की फाउंडेशन द्वारा उपलब्ध कराया जाता है.

स्कूल में एडमिशन की प्रक्रिया बेहद पारदर्शी है. तारिक और उनके साथी खुद घर-घर जाकर बच्चों की आर्थिक स्थिति का आकलन करते हैं और फिर तय करते हैं कि असली ज़रूरतमंद कौन है. क्योंकि फाउंडेशन के पास आमदनी का कोई बड़ा स्रोत नहीं है- जो कुछ होता है, वह अपनी जेब से या मित्रों के सहयोग से किया जाता है. कुछ खास लोग सालाना या मासिक आधार पर जितना संभव हो, मदद करते हैं. इसी से शिक्षकों का वेतन, बच्चों की किताबें, यूनिफॉर्म आदि का खर्च पूरा किया जाता है.

तारिक बताते हैं कि शुरुआत सिर्फ किराए के दो कमरों से हुई थी, आज स्कूल के पास चार कमरे हैं, और एक छोटा सा दफ्तर भी है.

शुरुआत से ही उनका खास फोकस लड़कियों की तालीम पर रहा है. उनके प्रयास से बीते 5 वर्षों में 1000 से अधिक लड़कियों को नि:शुल्क कंप्यूटर शिक्षा दी जा चुकी है. यह पहल गरीब लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि है. तारिक का विश्वास है, “अगर लड़कियों को शिक्षा और तकनीक दोनों मिल जाएँ, तो वे पूरे परिवार की तक़दीर बदल सकती हैं.”इतना ही नहीं, स्कूल से पढ़कर निकले कम-से-कम पांच गरीब बच्चों को प्लस-टू स्कूलों में दाखिला दिलाया गया है, ताकि उनकी पढ़ाई 10वीं या 12वीं के बाद भी न रुके.

रोज़गार: हुनर से हकीकत तक

तारिक का मिशन सिर्फ शिक्षा तक सीमित नहीं है. उन्होंने रोज़गार को भी अपने अभियान का अहम हिस्सा बनाया है. विदेश में इंजीनियर के रूप में काम कर चुके तारिक ने लौटकर कपाली में एक तकनीकी ट्रेनिंग सेंटर की स्थापना की, जहां गरीब युवाओं को मुफ्त में तकनीकी प्रशिक्षण दिया जाता है. यहां से प्रशिक्षित होकर अब तक 3000 से अधिक नौजवान गल्फ देशों में नौकरी पा चुके हैं. इससे न केवल उनके परिवारों की आर्थिक स्थिति में सुधार आया है, बल्कि उनके बच्चों की पढ़ाई भी सुचारु रूप से जारी रह पाई है.

इस पहल की खासियत यह है कि गल्फ देशों में पहले से मौजूद तारिक के साथी जब नई भर्तियां निकालते हैं, तो कपाली के प्रशिक्षित युवाओं को प्राथमिकता देते हैं. इससे न केवल धोखाधड़ी से बचाव होता है, बल्कि सुरक्षित और स्थायी रोज़गार भी सुनिश्चित होता है. जो युवा भारत में ही रहना चाहते हैं, उनके लिए भी फाउंडेशन देश के विभिन्न हिस्सों में रोज़गार के अवसर खोजता है. अब तक 500 से अधिक युवाओं को देशभर में नौकरियां दिलाई जा चुकी हैं.

 

स्वास्थ्य और सामाजिक सहयोग

तारिक आलम और उनके साथी समाज की ज़रूरतों को व्यापक दृष्टिकोण से देखते हैं. उन्होंने Pradhan Mantri TB Mukt Bharat Abhiyan के तहत 10 सबर आदिवासी परिवारों को पूरे एक साल तक मुफ्त राशन मुहैया कराया. कोविड-19 के कठिन समय में उन्होंने आइसोलेशन सेंटर भी संचालित किया और वैक्सीनेशन ड्राइव को सफलता से अंजाम दिया. पिछले 7 वर्षों से वे नियमित रूप से रक्तदान शिविर आयोजित कर रहे हैं, जिससे अनगिनत ज़िंदगियां बचाई जा चुकी हैं. रमज़ान के दौरान हर साल 50 गरीब परिवारों के बीच रमज़ान किट वितरित की जाती है.

इन सभी पहलों से यह स्पष्ट होता है कि तारिक आलम की सोच सिर्फ शिक्षा और रोज़गार तक सीमित नहीं है, बल्कि इंसानियत की हर बुनियादी ज़रूरत को पूरा करना उनका उद्देश्य है.

फाउंडेशन की बुनियाद

2014 में तारिक आलम और उनके साथियों ने ‘आलम वेलफेयर फाउंडेशन’ की स्थापना की. हालांकि समाज सेवा का कार्य वे पहले से कर रहे थे, लेकिन फाउंडेशन बनने के बाद यह प्रयास अधिक संगठित और प्रभावशाली हो गया. आज इसी फाउंडेशन के बैनर तले स्कूल चलता है, तकनीकी प्रशिक्षण दिया जाता है और कई अन्य सामाजिक पहलकदमियां चलाई जाती हैं. फाउंडेशन का उद्देश्य है, “जहां ज़रूरत है, वहां मदद पहुँचे.”

 

संघर्ष और प्रेरणा

कपाली जैसे छोटे और सीमित संसाधनों वाले क्षेत्र में दूसरों के लिए कुछ कर पाना आसान नहीं था. तारिक बताते हैं कि शुरुआत में फंडिंग की कोई व्यवस्था नहीं थी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. धीरे-धीरे दोस्त और शुभचिंतक जुड़ते गए, और कारवां बढ़ता गया. आज तारिक आलम की पहचान सिर्फ कपाली या सरायकेला-खरसांवा में नहीं, बल्कि पूरे कोल्हान क्षेत्र में एक प्रेरणास्रोत के रूप में होती है.

 

छोटे इरादे नहीं, बड़े सपने चाहिए

सय्यद तारिक आलम की कहानी हमें यह सिखाती है कि समाज को बदलने के लिए बहुत बड़े संसाधनों की नहीं, बल्कि बड़े इरादों की ज़रूरत होती है. शिक्षा हो या रोज़गार, स्वास्थ्य हो या सामाजिक सहयोग, तारिक आलम ने साबित किया है कि अगर इंसान ठान ले, तो हज़ारों ज़िंदगियों में रौशनी फैलाई जा सकती है. कपाली की यह कहानी न सिर्फ झारखंड, बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा है.