डॉ. सलीम राज

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 16-10-2025
Dr. Salim Raj: The reformer who made the Waqf Board a hub of social change
Dr. Salim Raj: The reformer who made the Waqf Board a hub of social change

 

त्तीसगढ़ की अल्पसंख्यक राजनीति और सामाजिक सुधारों के क्षेत्र में कुछ ही ऐसे चेहरे हैं जिन्होंने निर्णायक प्रभाव डाला है—डॉ. सलीम राज उन्हीं में से एक हैं. डॉ. राज फिलहाल छत्तीसगढ़ वक्फ बोर्ड के निर्विरोध अध्यक्ष हैं, जिसे कैबिनेट मंत्री स्तर का दर्जा प्राप्त है. उनकी भूमिका केवल एक राजनीतिक पदाधिकारी की नहीं, बल्कि एक ऐसे सुधारक नेता की है, जो धार्मिक संस्थानों को विवादों से निकालकर समाज और राष्ट्र के विकास में भागीदार बनाना चाहते हैं. आवाज द वाॅयस के द चेंज मेकर्स सीरिज के लिए रायपुर से हमारी सहयोगी मंदकिनी मिश्रा ने डॉ सलीम राज पर यह विस्तृत रिपोर्ट की है.

1992 में भाजपा में शामिल हुए डॉ. राज ने उस दौर में अल्पसंख्यक नेता के रूप में पार्टी के भीतर अपना स्थान बनाया, जब ऐसे चेहरे दुर्लभ थे. समय के साथ उन्होंने पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चे में जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर काम किया और 2016 से 2020 तक राज्य अध्यक्ष के रूप में सेवा दी. पार्टी और समुदाय के बीच संवाद का सेतु बनने वाले डॉ. राज आज वक्फ बोर्ड में प्रशासनिक दक्षता और सामाजिक प्रतिबद्धता का अनूठा संतुलन प्रस्तुत कर रहे हैं.

अपने कार्यकाल की शुरुआत में ही उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि उनकी प्राथमिकता पारदर्शिता और जवाबदेही होगी. उन्होंने राज्य की वक्फ संपत्तियों पर चल रहे अवैध कब्जों को हटाने का बड़ा अभियान शुरू किया, जिनकी संख्या उनके अनुसार लगभग 85 प्रतिशत थी. इन संपत्तियों को न केवल मुक्त कराया जा रहा है, बल्कि उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण के लिए उपयोग में लाया जा रहा है.

उन्होंने मुस्लिम समुदाय के गरीब तबके को ध्यान में रखते हुए निकाह फीस को ₹1,100 तक सीमित कर दिया, जिससे विवाह एक महंगा बोझ बनने के बजाय, गरिमा के साथ संपन्न होने वाला आयोजन बन सके. इस निर्णय ने न केवल मौलवियों के शुल्क पर नियंत्रण लगाया बल्कि गरीब परिवारों को राहत भी दी.

डॉ. राज ने धार्मिक स्थलों से उकसाऊ भाषणों पर नियंत्रण के लिए जुमे की नमाज़ के दौरान दिए जाने वाले उपदेशों को पूर्व-निर्धारित और अनुमोदित विषयों तक सीमित करने का निर्णय लिया. यह पहल धार्मिक स्वतंत्रता को सीमित करने के उद्देश्य से नहीं, बल्कि मस्जिदों को सामाजिक सद्भाव, नैतिकता और शिक्षा का मंच बनाने की सोच के तहत लाई गई थी. हालांकि इस फैसले को लेकर उन्हें देश और विदेश से धमकियाँ भी मिलीं, लेकिन उन्होंने अपने सुधारवादी एजेंडे से कदम पीछे नहीं हटाए.

एक और अहम कदम था हर मस्जिद पर स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा फहराने का आदेश. डॉ. राज का मानना है कि आस्था और राष्ट्रवाद परस्पर विरोधी नहीं बल्कि पूरक शक्तियाँ हैं, और धार्मिक संस्थानों को खुद को राष्ट्र की मुख्यधारा से अलग नहीं करना चाहिए. उन्होंने बार-बार कहा है कि मस्जिदों में सिर्फ इबादत ही नहीं, बल्कि शैक्षणिक गतिविधियाँ भी होनी चाहिएं.

उन्होंने वक्फ संपत्तियों का डिजिटल सर्वेक्षण और किरायों का युक्तिकरण शुरू किया है, जिससे बोर्ड की आय में वृद्धि हुई है और संपत्ति के दुरुपयोग पर रोक लगी है. निष्क्रिय संपत्तियों को पुनः सक्रिय कर उन्हें स्कूल, अस्पताल और प्रशिक्षण केंद्रों के रूप में उपयोग में लाया जा रहा है.

डॉ. राज के नेतृत्व में वक्फ बोर्ड सिर्फ धार्मिक निकाय नहीं, बल्कि एक सामाजिक संसाधन केंद्र के रूप में उभरा है. उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि वक्फ संपत्तियाँ केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित न रहकर गरीबी उन्मूलन, शिक्षा और रोजगार सृजन में भूमिका निभाएं. उनके प्रयासों से धार्मिक संस्थाओं की सामाजिक उपयोगिता पर एक नई सोच विकसित हुई है.

हालांकि, उनकी पहलों को लेकर विवाद और विरोध भी हुआ. कुछ मौलवियों ने निकाह शुल्क निर्धारण का विरोध किया, वहीं अतिक्रमण हटाने पर कुछ रसूखदार लोगों ने नाराज़गी जताई. लेकिन डॉ. राज इन विरोधों को सुधार की अनिवार्यता का प्रमाण मानते हैं और उनका मानना है कि जब तक धार्मिक संस्थाएं समाज और राष्ट्र के साथ तालमेल नहीं बिठातीं, तब तक वे प्रासंगिक नहीं रह सकतीं.

वक्फ अधिनियम में हाल ही में हुए संशोधनों को डॉ. राज ने "ऐतिहासिक" बताते हुए कहा कि इससे वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा और पारदर्शिता बढ़ेगी. उनका दृष्टिकोण स्पष्ट है—धार्मिक संस्थाएं समाज में सकारात्मक भूमिका निभाएं और देश के विकास में भागीदार बनें.

आज, डॉ. सलीम राज न केवल छत्तीसगढ़ में बल्कि देशभर में धर्म, राजनीति और प्रशासन के बीच सेतु बनाने वाले एक प्रभावशाली नेता के रूप में देखे जा रहे हैं. उनकी नीतियों और निर्णयों ने मुस्लिम समुदाय को सशक्तिकरण की दिशा में प्रेरित किया है, और धार्मिक संस्थाओं को नवाचार, समावेशन और उत्तरदायित्व की राह दिखाई है. उनके नेतृत्व में वक्फ बोर्ड एक मॉडल संस्थान के रूप में उभर रहा है, जो दिखाता है कि आस्था और सुधार साथ-साथ चल सकते हैं, और धार्मिक संपत्तियाँ राष्ट्र निर्माण में उपयोगी साबित हो सकती हैं.