खुर्शीद अहमद ने बिहार की सांस्कृतिक आत्मा को पुनर्जीवित करने और पटना को साहित्यिक और कलात्मक गतिविधियों के एक जीवंत केंद्र में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. यहां प्रस्तुत है नौशाद अख्तर की खुर्शीद अहमद पर एक विस्तृत रिपोर्ट.
खुर्शीद बिहार की सांस्कृतिक आत्मा के पुनरुत्थानवादी हैं. उनके प्रयासों से, कव्वाली, कविता, साहित्य और सूफी संगीत जैसी पारंपरिक कलाओं को सार्वजनिक जीवन में फिर से प्रमुखता मिली है. उनके प्रयासों ने इन कालातीत अभिव्यक्तियों में नई ऊर्जा और समकालीन प्रासंगिकता का संचार किया है.
जब भी पटना में कोई बड़ा साहित्यिक समागम, मुशायरा (कविता संगोष्ठी) या सांस्कृतिक कार्यक्रम होता है, खुर्शीद का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है. पटना साहित्य महोत्सव (पीएलएफ) के संस्थापक और सचिव के रूप में—जो अब भारत के अग्रणी साहित्यिक मंचों में गिना जाता है—उन्होंने बिहार में एक सांस्कृतिक मील का पत्थर स्थापित किया है.
बिहार केवल राजनीतिक क्रांतियों, पुरातात्विक चमत्कारों या ऐतिहासिक आंदोलनों की भूमि नहीं है. यह सदियों पुरानी कविता, सूफीवाद, परिष्कृत शिष्टाचार (तहजीब) और साहित्यिक विरासत से समृद्ध धरती है.
इस क्षेत्र ने बुद्ध, कबीर, गुरु गोविंद सिंह और शेरशाह सूरी जैसी आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विभूतियाँ दी हैं. फिर भी, डिजिटल विकर्षणों के इस युग में, इस समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के अक्सर भुला दिए जाने का खतरा बना रहता है.
खुर्शीद अहमद ने इस विरासत को संरक्षित और संवर्धित करने का बीड़ा उठाया है. वे बिहार और झारखंड में सेवा प्रदान करने वाली एक प्रमुख इवेंट मैनेजमेंट और पीआर एजेंसी, एडवांटेज ग्रुप के प्रबंध निदेशक भी हैं. यह उनके संगठनात्मक कौशल को और निखारता है.
पेशेवर अनुशासन को कलात्मक संवेदनशीलता के साथ जोड़ते हुए, खुर्शीद अपने कार्यक्रमों को अत्यंत मार्मिक सांस्कृतिक अनुभवों में बदल देते हैं. उनके लिए, ये केवल प्रदर्शन नहीं हैं—ये भावनात्मक और आध्यात्मिक यात्राएँ हैं.
उनके दूरदर्शी कार्यों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता मिली है. दुबई के प्रतिष्ठित शेख राशिद ऑडिटोरियम में, उन्हें हाल ही में दुनिया के 14 शीर्ष कवियों के साथ प्रसिद्ध मुशायरा अंदाज़-ए-बयां और में सम्मानित किया गया.
यह पुरस्कार दुबई स्थित समाजसेवी शेख सुहैल मोहम्मद ज़रोनी ने प्रदान किया, जिन्होंने खुर्शीद के योगदान को केवल आयोजन प्रबंधन तक ही सीमित नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक आंदोलन बताया जो बिहार से शुरू होकर महाद्वीपों तक फैला.
यह सम्मान पटना में उनकी साहित्यिक पहलों की अपार सफलता से प्रेरित था. उल्लेखनीय रूप से, उन्होंने BookMyShow के माध्यम से भारत के पहले टिकट वाले मुशायरों में से एक का आयोजन किया—जो एक अभूतपूर्व कदम था.
इस कार्यक्रम में हज़ारों लोग शारीरिक रूप से उपस्थित थे, जबकि 3.5 करोड़ से ज़्यादा लोगों ने इसे ऑनलाइन देखा. उल्लेखनीय रूप से, खुर्शीद के उद्घाटन भाषण में उनके संदेश और व्यक्तित्व, दोनों का चुंबकीय आकर्षण झलकता था.
खुर्शीद अहमद का दृष्टिकोण पारंपरिक आयोजन योजना से कहीं आगे जाता है. उन्होंने कविता को जन संवाद के एक रूप के रूप में पुनर्परिभाषित किया है.
पीएलएफ के बैनर तले, उन्होंने "रूबरू" नामक एक इंटरैक्टिव कविता श्रृंखला शुरू की, जिसमें मनोज मुंतशिर, ए.एम. तुराज़, आलोक श्रीवास्तव, शबीना अदीब और आज़म शकरी जैसे प्रसिद्ध कवि शामिल थे.
ये सत्र कविता पाठ से आगे बढ़कर कविता, विचार और श्रोताओं के बीच गतिशील संवाद में बदल गए.
इस सांस्कृतिक पुनर्जागरण में खुर्शीद का समर्थन एक समर्पित टीम कर रही है, जिसमें डॉ. ए.ए. हई (अध्यक्ष), फरहत हसन (उपाध्यक्ष), फैजान अहमद (कार्यक्रम प्रमुख), फहीम अहमद, एजाज हुसैन, शिवजी चतुर्वेदी, राकेश रंजन, बी.के. चौधरी, चंद्रकांता खान, फरहा खान और अनूप शर्मा शामिल हैं. उनके अथक प्रयासों ने बिहार की रचनात्मक भावना को बनाए रखने और पोषित करने में मदद की है.
खुर्शीद के कार्यक्रम भव्यता और भावनात्मक गहराई का मिश्रण हैं. इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण 13 अगस्त को पटना के होटल रॉयल बिहार में आयोजित मुशायरा था.
जयपुर, हैदराबाद और झारखंड जैसे स्थानों से 600 से अधिक मेहमानों ने इसमें भाग लिया. कविता और संस्कृति का आठ घंटे का यह उत्सव इतना उल्लेखनीय था कि उपस्थित लोगों ने इसे "बिहार का जश्न-ए-रेख्ता" करार दिया.
खुर्शीद इस विश्वास पर चलते हैं कि "काम को ऐसे करना चाहिए जैसे वह पूजा हो." यह भावना उनके आयोजनों के हर विवरण में झलकती है—व्यवस्था से लेकर निमंत्रण तक, हर पहलू की योजना लगभग पवित्र परिशुद्धता के साथ बनाई जाती है.
हाल ही में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि 13 अप्रैल, 2025 को पटना के बांकीपुर क्लब में आयोजित सूफी संगीत संध्या थी, जो महान उस्ताद नुसरत फतेह अली खान को समर्पित थी.
इस कार्यक्रम में देहरादून के रहमत नुसरत ग्रुप ने भाग लिया, जो दुबई, यूके और अन्य जगहों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रस्तुति के लिए प्रसिद्ध है. सर्वजीत टम्टा, जिनकी आवाज़ को "देवी सरस्वती का आशीर्वाद" माना जाता है, के नेतृत्व में आयोजित इस शाम ने एक अत्यंत मार्मिक और आध्यात्मिक अनुभव प्रदान किया.
इस कार्यक्रम में गणमान्य लोगों ने भाग लिया. संगीत की भव्यता, श्रोताओं की परिष्कृतता और त्रुटिहीन प्रस्तुति, इन सभी ने बिहार की सांस्कृतिक जड़ों को मजबूत करने में योगदान दिया.
पीएलएफ के अध्यक्ष डॉ. सत्यजीत सिंह के अनुसार, "सूफी संगीत और कविता आत्मा को ऊपर उठाती है. यह वही सांस्कृतिक विरासत है जो पटना की धरती से लंबे समय से उभरी है. खुर्शीद अहमद जैसे उत्साही व्यक्तियों की बदौलत, पटना साहित्य महोत्सव ने अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना ली है."
अब तक, पीएलएफ ने 15 से ज़्यादा सफल आयोजनों की मेज़बानी की है, जो न केवल कविता पर, बल्कि बौद्धिक आदान-प्रदान, आलोचनात्मक चिंतन और सामुदायिक जुड़ाव पर भी केंद्रित रहे हैं. यह सांस्कृतिक समृद्धि और सार्वजनिक संवाद का एक केंद्र बन गया है.
खुर्शीद अहमद की यात्रा प्रेरणादायी है. वे इस बात का उदाहरण हैं कि कैसे उद्देश्य के साथ जुड़ा जुनून सामाजिक परिवर्तन के लिए एक शक्तिशाली शक्ति बन सकता है. उनकी दूरदर्शिता, संगठनात्मक कौशल और साहित्य के प्रति प्रेम ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर बिहार की छवि को नए सिरे से परिभाषित करने में मदद की है.
उनके कार्यों के माध्यम से, पटना न केवल एक ऐतिहासिक राजधानी के रूप में, बल्कि साहित्यिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण के एक दीपस्तंभ के रूप में भी उभर रहा है.