मलिक असगर हाशमी /नई दिल्ली
यमन में सजा-ए-मौत के मैदान में निमिषा प्रिया आंखों पर पट्टी बांधे खड़ी है. चारों तरफ हजारों लोगों की भीड़ जमा है. जल्लाद चमचमाती तलवार हाथ में लिए उसके गले पर वार करने ही वाला है. तभी अचानक भीड़ में से एक आवाज उठती है—“निमिषा को छोड़ दो, हमने उसे माफ कर दिया.”
जैसे ही यह घोषणा सुनाई देती है, वहां मौजूद लोग खुशी से झूम उठते हैं. कुछ लोग पीड़ित परिवार को कंधों पर उठा लेते हैं. कोई उन पर पैसों की बारिश करता है और निमिषा प्रिया मौत के मुंह से निकलकर आजाद हो जाती है.
यह दृश्य सुनने में भले ही फिल्मी लगे, लेकिन अरब देशों में यह कोई अनोखी बात नहीं है. वहां शरिया कानून के तहत हत्या के मामलों में दोषी की जान बचाने का एकमात्र रास्ता है—पीड़ित परिवार की माफी या ब्लड मनी .
वरिष्ठ पत्रकार शाहीन नजर, जिन्होंने तीन दशकों तक अरब और खाड़ी देशों के प्रतिष्ठित अखबारों में काम किया है, बताते हैं, “अरब देशों के कानूनों में शरिया से इतर कोई रास्ता नहीं होता. जब किसी को हत्या के जुर्म में सजा-ए-मौत सुनाई जाती है, तो अंतिम समय में पीड़ित परिवार चाहे तो माफ कर सकता है. यही माफी दोषी की जान बचा सकती है.”
शाहीन नजर अपने अनुभव साझा करते हुए कहते हैं, “सऊदी अरब के जेद्दा में एक बड़ा मैदान है, जहां सजा-ए-मौत दी जाती है. वहां हजारों लोग इकट्ठा होते हैं. दोषी को घुटनों के बल बैठाया जाता है.
आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है. सिर आगे झुका दिया जाता है. जल्लाद चमचमाती तलवार लिए आदेश की प्रतीक्षा करता है. जैसे ही आदेश मिलता है, वह एक ही वार में सिर धड़ से अलग कर देता है. लेकिन कई बार ऐन समय पर पीड़ित परिवार माफी का ऐलान कर देता है.”
वे बताते हैं कि पीड़ित परिवार अक्सर यह कहता है कि वे चाहते थे कि दोषी भी अपने गुनाह का बोझ महसूस करे और मौत के भय को समझे. शाहीन नजर कहते हैं,
माफी देना इस्लाम में सबसे बड़ा सद्गुण है. पैगंबर मोहम्मद ने माफी देने वालों के लिए जन्नत का वादा किया है. इसलिए जब कोई परिवार दोषी को माफ करता है, तो वहां मौजूद लोग जश्न मनाते हैं. व्यापारी, साहुकार और यहां तक कि सरकार माफ करने वाले परिवार को ईनामों से नवाजते हैं.”
निमिषा प्रिया का मामला भी इसी प्रकार का है. यमन की अदालत ने उसे तलाल महदी की हत्या का दोषी ठहराया है. आरोप है कि उसने महदी को नशीला इंजेक्शन दिया, उसकी हत्या की और उसके शरीर के टुकड़े कर पानी की टंकी में डाल दिए. इस घटना ने यमन में खासी नाराजगी पैदा की है. विशेष रूप से पीड़ित का भाई अब्देल फत्ताह महदी सख्त रुख अपनाए हुए है.
हाल ही में अब्देल फत्ताह ने सोशल मीडिया पर बयान जारी कर भारतीय मीडिया की रिपोर्टों को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा, “हम न भारतीय और न यमनी धर्मगुरुओं से मिले हैं.
न ही हमारी ओर से किसी प्रतिनिधि से बात हुई है. हम अल्लाह के कानून का पालन करने के अधिकार पर अड़े हुए हैं.” उनका कहना है कि फांसी में देरी होने से उनके परिवार का प्रतिशोध का संकल्प और मजबूत हुआ है.
यमन में शरिया कानून का सख्त पालन होता है. हालांकि, इसमें ब्लड मनी का प्रावधान भी है. पीड़ित परिवार चाहे तो धनराशि लेकर दोषी को माफ कर सकता है. यह फैसला पूरी तरह उनके हाथ में होता है. कई बार यह बातचीत काफी संवेदनशील होती है और इसमें सामाजिक तथा धार्मिक संगठनों की मध्यस्थता अहम भूमिका निभाती है.
शाहीन नजर कहते हैं,भारत के ग्रैंड मुफ्ती शेख अबू बकर अहमद और कई सामाजिक संगठन इस दिशा में सक्रिय हैं. 16 जुलाई को निमिषा की फांसी टलने से यह संकेत मिला है कि भारत सरकार और धार्मिक संगठनों के प्रयास जारी हैं. विदेश मंत्रालय अरब देशों—खासकर सऊदी अरब और यूएई में अपनी कूटनीतिक ताकत का उपयोग कर रहा है.
अब्देल फत्ताह महदी ने कहा है कि वे किसी बिचौलिए से बात नहीं करेंगे. लेकिन उन्होंने यह भी कहा है कि निमिषा के परिवार से सीधे बातचीत हो सकती है. शाहीन नजर कहते हैं,यह संकेत उम्मीद जगाता है. अरब देशों में अक्सर अंतिम समय में भावनात्मक अपीलों और ब्लड मनी के जरिए सजा-ए-मौत को टाला जाता है.
शाहीन नजर का मानना है कि “भले ही यमन में स्थायी सरकार नहीं है और वहां के किंग शरिया मामलों में दखल नहीं देते, लेकिन सामाजिक दबाव और कूटनीतिक प्रयासों से पीड़ित परिवार को प्रभावित किया जा सकता है.
उत्तरी यमन की जनजातीय संस्कृति बेहद सशक्त है. अगर इस बिरादरी का आक्रोश शांत नहीं होता, तो सरकार भी कुछ नहीं कर पाएगी. लेकिन चूंकि पहले एक बार फांसी टली है, इसका मतलब है कि बातचीत की गुंजाइश अभी बाकी है.”
निमिषा प्रिया की सबसे बड़ी ताकत उसके छोटे बच्चे हैं. अरब देशों में मानवीय आधार पर माफी देने की परंपरा गहरी है. यदि यह भावनात्मक पहलू पीड़ित परिवार तक सही तरीके से पहुंचाया जाता है, तो उनके रुख में बदलाव संभव है.
शाहीन नजर कहते हैं, “अरब में माफी देने के बाद दोषी को नायक की तरह नहीं, बल्कि पीड़ित परिवार को समाज का नायक माना जाता है. उन्हें अल्लाह की राह पर चलने वाला बताया जाता है. यह सम्मान उन्हें गर्व से भर देता है.”
हालांकि भारत और यमन के बीच औपचारिक राजनयिक संबंध कमजोर हैं, लेकिन भारत के अरब देशों के साथ मजबूत रिश्ते इस मामले में मददगार हो सकते हैं. यूएई और सऊदी अरब में भारत की अच्छी पकड़ है.
वहां के इस्लामिक और सामाजिक संगठनों की मदद से यमन के प्रभावशाली समुदायों पर दबाव डाला जा सकता है.निमिषा प्रिया का मामला भारत के लिए एक कूटनीतिक और मानवीय चुनौती है. यह केवल एक भारतीय नागरिक की जान का सवाल नहीं है, बल्कि यह भारत की विदेश नीति और उसकी मानवीय दृष्टि का भी परीक्षण है.
16 जुलाई को फांसी का टलना संकेत है कि कोशिशें अभी सफल हो सकती हैं. शरिया कानून में माफी का प्रावधान इस आशा को बनाए रखता है.संभव है कि ऐन वक्त पर, जब जल्लाद तलवार उठाए खड़ा होगा, पीड़ित परिवार अल्लाह की राह पर चलते हुए माफी का एलान कर दे. यह दृश्य भले ही आज कल्पना जैसा लगे, लेकिन अरब देशों में ऐसे चमत्कार अक्सर होते रहे हैं.