‘‘ मैं हैरान हूं. मेरे घरवाले आश्चर्यचकित हैं. हम लोगों ने ऐसा क्या किया है, जिसकी तारीफ में लगातार फोन आ रहे हैं. हमने यह पहली बार नहीं किया है. पहले भी ऐसा करते रहे हैं. मगर अब हमें तारीफ मिल रही है.’’
यह कहना है दिल्ली से सटे साइबर सिटी गुरुग्राम के सेक्टर 12 में रहने वाले अक्षय यादव का.
अक्षय यादव और उनके परिवार की इन दिनों तारीफ इसलिए हो रही है कि उन्होंने अपने घर और अपनी कुछ खाली पड़ी दुकानों के दरवाजे खोल दिए हैं, ताकि इलाके के मुसलमान यहां जुमे की नमाज पढ़ सकें. उल्लेखनीय है कि गुरुग्राम में फिलहाल खुले में जुमे की नमाज पढ़ने को लेकर विवाद चल रहा है. कुछ कट्टरपंथी संगठन न केवल इसका विरोध कर रहे हैं, बल्कि नमाज पढ़ने के दौरान खलल डालने का भी प्रयास करते रहते हैं.
अक्षय यादव की दुकान में नमाज अदा करते मुसलमान
कुछ बातें सेक्टर 12, गुरुग्राम की
अक्षय यादव और उनके परिवार के बारे में बताने से पहले आपका गुरुग्राम के सेक्टर 12 के इलाके को समझना जरूरी है. यह क्षेत्र गुरुग्राम रोडवेज बस अड्डे और बीएसएनएल टेलीफोन एक्सचेंज के करीब है. यहां ऑटो पार्ट्स और मोटर मैकेनिक की दुकानों की भरमार है. यहां कुछ गाड़ियों के डेंटिंग-पेंटिंग की भी दुकानें हैं.
यहां के ज्यादातर कारीगर बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान जैसे प्रदेशों के हैं और अधिकांश आबादी मुसलमान है. इनमें आपसी घनिष्ठता इतनी है कि हर खुशी-गम में इकट्ठे रहने की कोशिश करते हैं. यहां तक कि रोजे के दिनों में इफ्तार करना हो, अलविदा, तरावीह या ईद-बकरीद की नमाज पढ़नी हो या फिर जुमे की नमाज ही क्यों न हो, इनका प्रयास होता है कि सभी इकट्ठे मिलकर अदा करें.
सेक्टर 12 की अधिकांश दुकानें पुराने गुरुग्राम के कुछ खास लोगों की हैं. उनमें ही एक हैं अक्षय यादव. दुकानों के अलावा इनका एक गाड़ियों का सर्विस स्टेशन भी है, जिसे भी उन्होंने किराए पर दे रखा है. इन दिनों जुमे की नमाज सर्विस स्टेशन में ही हो रही है.
अक्षय यादव बेटे के साथ अपने घर में
कौन हैं अक्षय यादव?
सेक्टर 12 की कई संपत्तियों के मालिक अक्षय यादव ‘वाइल्ड लाइफ टूरिज्म’ का कारोबार करते हैं. वह कहते हैं, ‘‘मुझे पशु-पक्षियों से प्यार है, इसलिए इसे ही रोजी-रोजगार का जरिया बना लिया.’’ इनका ऑफिस शहर के पॉश इलाके डीएलएफ में है. मगर इनका ज्यादातर समय उत्तराखंड के जंगल-पहाड़ों में बीतता है. अक्षय यादव के पिता नरेंद्र सिंह नेवी में थे. 2011 में पिता के देहांत के बाद वह अपनी मां विमला देवी के साथ रहते हैं. अक्षय यादव की शादी हो चुकी है. दोनों मां-बेटे अपने व्यवहार की बदौलत सेक्टर 12 के प्रवासी लोगों में काफी चर्चित हैं.
किराए पर दुकान चलाने वाले कारीगरों का कहना है कि दोनों-मां बेटे हर समय उनकी मदद को खड़े रहते हैं. अक्षय कहते हैं, ‘‘मां का व्यवहार ही ऐसा है. ज्यादा सर्दी पड़ी तो कारीगरों के लिए चाय बनाकर भिजवा दिया. ज्यादा गर्मी पड़ती है तो शरबत. कभी कुछ खाने को भेज दिया.’’
नमाज पर विवाद को लेकर अपनी राय रखते हुए अक्षय यादव
रोजे का महत्व
अक्षय कहते हैं, ‘‘जुमे की नमाज के लिए जगह देने को लेकर तारीफ होने पर वह और उनके परिवार वाले इसलिए आश्चर्यचकित हैं कि इसमें कुछ नया नहीं है. इस तरह के काम वह पिछले कई वर्षों से करते आ रहे हैं. वह बताते हैं कि पांच वर्ष पहले एक दिन उनका सबसे पुराना दुकानदार तौफीक उनके पास आया. उनके पास आकर तौफीक कहने लगा कि उसे तरावीह पढ़ने के लिए जगह चाहिए. अक्षय को नहीं मालूम था कि तरावीह क्या होती है. इस बारे में पूछने पर तौफीक ने बताया कि रमजान के दिनों में रात की नमाज के बाद खास तरह की नमाज अदा की जाती है, जो देर तक चलती है.इसे सामूहिक तौर पर पढ़ना जरूरी है.
तौफीक की बात सुनकर अक्षय ने पूछा कि तरावीह पढ़ने वालों की संख्या कितनी होगी? तब तौफीक ने जवाब दिया 25-30 लोग. इस पर अक्षय ने उन्हें अपनी कोठी के लाॅन में तरावीह पढ़ने की इजाजत दे दी. मगर मुस्लिम कारीगरों ने घर के लाॅन में तरावीह पढ़ने की बजाए उनके एक खाली प्लॉट पर इसके लिए इजाजत ले ली.
आवाज द वाॅयस से बात करते हुए अक्षय यादव कहते हैं कि यह सिलसिला तब से ही चला आ रहा है. वह कहते हैं, "तरावीह खत्म होने पर दूर-दराज से मौलाना बुलाए जाते हैं. तकरीर होती है. दुआ पढ़ाई जाती है. मिठाइयां बांटते हैं. हम लोग भी इसमें शामिल होते हैं. वह बताते हैं कि उनकी मां रोजे के दिनों में रोजेदारों के खाने-पीने का विशेष इंतजाम करती हैं."
इन बातों का एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि गुरूग्राम में खुले में नमाज पढ़ने का विरोध करने वालों का नेतृत्व करने वाले अधिवक्ता कुलभूषण भारद्वाज का घर भी इस इलाके के करीब है. अक्षय और कुलभूषण एक दूसरे को बहुत करीब से जानते हैं.
जुमा की नमाज अदा करते नमाजी
मुस्लिम लड़की की शादी
अक्षय और उनकी मां विमला देवी के इलाके के प्रवासी मुसलमानों के बीच लोकप्रिय होने की कुछ और वजह भी हैं. उन्हें एक निर्धन मुस्लिम बच्ची रूबी की धूमधाम से शादी कराने के लिए भी जाना जाता है. अक्षय बताते हैं कि रूबी उनके घर में काम करती थी.उसके मां-बाप उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं. रूबी की शादी का समय आया तो सारा इंतजाम अक्षय के घर वालों ने किया. वह बताते हैं कि उनकी मां ने रूबी की शादी अपनी बेटी की तरह कराई. दहेज से लेकर खाने-पीने तक का सारा इंतजाम उनके घर वालों ने किया. यहां तक कि अक्षय के दोस्त-रिश्तेदार भी इस शादी में शरीक होने के लिए दूर-दूर से आए. अक्षय कहते हैं कि आज भी रूबी और उसके परिवार वालों के संपर्क में हैं.
आवाज द वाॅयस से बातचीत करते समय भावुक होकर अक्षय कहते हैं,
‘‘हिंदू-मुस्लिम दो आंखों के समान हैं. एक आंख में कचरा आ जाए तो दूसरे को भी दिक्कत होती है. देश ऐसे लोगों की बदौलत चल रहा है, जो सभी धर्मों को दो आंखों के समान मानते हैं.’’
— Karwan e Mohabbat (Caravan of Love) (@karwanemohabbat) November 19, 2021