पाकिस्तानी मरीजों के हिंदुस्तानी फरिश्ते

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 03-05-2024
Indian angels of Pakistani patients
Indian angels of Pakistani patients

 

मलिक असगर हाशमी/नई दिल्ली

हृदय रोग पीड़ित एक पाकिस्तानी मरीज को नया जीवन देने के साथ ही एक बार फिर भारतीय डाॅक्टरों की देश-दुनिया में वाहवाही हो रही है. यहां तक कि पाकिस्तान में भी भारतीय डॉक्टरों की तारीफों के पुल बांधे जा रहा हैं. यह पहली घटना नहीं. भारत के पाकिस्तान के साथ चाहे जितने खराब रिश्ते रहे हों या भारत विरोधी पाकिस्तानियों ने देश पर जितना कहर बरपाए हांे भारतीय डाॅक्टरों ने पाकिस्तानी मरीजों के इलाज में कभी कोताही नहीं बरती है. बल्कि खुले दिल से उनका स्वागत किया है.

पुलवामा के आतंकवादी हमले के बाद भारत के पाकिस्तान से रिश्ते अपने बेहद खराब दौर से गुजर रहे हैं. बावजूद इसके पाकिस्तानी मरीज के प्रति भारत के डाॅक्टर बड़ा दिल दिखाते आ रहे हंै.पिछले महीने 25 अप्रैल की घटना इसका बेहतर उदाहरण है. पाकिस्तान के कराची की 19 साल की आयशा को चेन्नई के एमजीएम स्कॉलरशिप से हृदय प्रत्यारोपण सर्जरी के बाद नया जीवन मिला है. वह 2019 से गंभीर हृदय रोग से पीड़ित थी. पाकिस्तान में रोग ठीक नहीं हुआ तो भारत आना पड़ा.

स्थिति बेहद गंभीर थी. इलाज में 35 लाख रुपये अधिक खर्च हुए जिसे अस्पताल और चेन्नई के स्वास्थ्य ट्रस्ट ने वहन किए.इंस्टीट्यूट ऑफ हार्ट एंड लंग ट्रांसप्लांट के निदेशक डॉ. केआर बालाकृष्णन एवं संस्थान के सह-निदेशक डॉ. सुरेश राव ने मरीज को वित्तीय सहायता दिए जाने के बारे में बताया कि उसे तुरंट हृदय प्रत्यारोपण की जरूरत थी. विदेशी अंग नहीं मिला तो उन्हें दिल्ली के एक 69 साल के ब्रेन-डेड मरीज का दिल लगाना पड़़ा.

आयशा के इलाज के दौरान यह भी उजागर हुआ कि पाकिस्तान में गंभीर मरीजों के लिए उच्च दर्जे की मेडिकल सुविधाओं का घोर अभाव है. पाकिस्तान के वैज्ञानिक भी माने हैं कि उनके मुल्क में ट्रांसप्लांट की कोई खास सुविधा नहीं है.

पाकिस्तान गोलकीपर मंसूर अहमद का हार्ट इम्प्लांट

आयशा कोई इकलौती पाकिस्तानी मरीज नहीं है.  2018में पाकिस्तान के विश्व कप विजेता फील्ड हॉकी गोलकीपर मंसूर अहमद को भारत में इलाज मिल चुका है. उनकी मांग पर भारत में हार्ट इम्प्लांट की व्यवस्था की गई थी. आमिर अहमद को भारत में पेसमेकर और हार्ट में स्टेंट लगे थे.

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पाकिस्तानी छात्र को नया जीवन

पाकिस्तानी महिला जैब-उन-निसा के बेटे उमर का इलाज नई दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल के डॉक्टर नैमिष मेहता कर चुके हैं. उमर का सर गंगा राम में लिवर प्रत्यारोपण किया गया था.यही नहीं उमर के लिवर प्रत्यारोप से पहले भारतीय छात्रों ने रोगी के लिए रक्तदान कर यह जताने की कोशिश की थी कि भारतीयों में मानवता और करुणा कूट-कूट कर भरी हुई है.

बताते हैं कि उमर के ट्रांसप्लांट में भारतीय छात्रों ने आर्थिक मदद भी की थी. इससे जुड़ी एक दिलचस्प बात यह है कि उमर का ऑपरेशन पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस- 14अगस्त को किया गया था.

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लाहौर की सायम का लीवर प्रत्यारोपण

इसी तरह लाहौर के असलम की 18 वर्षीय बेटी सायमा को भी भारत में जीवनदान मिला है. उसका यहां लीवर प्रत्यारोपण हुआ. पिता का कहना है कि उसके पास इतने संसाधन नहीं थे कि बेटी का इलाज विदेश में कराते. छानबीन के बाद उन्हें पता चला कि उनकी बेटी सायमा का सर्वोत्तम इलाज भारत में संभव है. उसके बाद भारतीय विशेषज्ञों से संपर्क किया. उपचार के बाद ठीक होकर वह लौहार लौट गई.

असलम का कहना है कि उसके देश के धनवान अपने गंभीर रोगियों का इलाज भारत के बजाए यूरोप या अमेरिकी डॉक्टर से कराना पसंद करते हैं. वहां इलाज की लागत भारत से कई गुणा अधिक है.असलम ने यह भी बताया कि बेटी के इलाज के लिए वीजा मिलने  में  उसे ज्यादा देरी का सामना नहीं करना पड़ा. बताते हैं,सायमा के जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब असलम को ऑनलाइन मेडिकल ट्रैवल फैसिलिटेटर मिली.

सायमा से पहले पांच वर्षीय बासमा की प्रत्यारोपण सर्जरी

असलम से एक साल पहले पाकिस्तान की पांच वर्षीय बासमा को भी आपातकालीन प्रत्यारोपण सर्जरी के लिए भारत का वीजा दिया गया था. 3 साल की अफगानी बच्ची की जान बचाने को भारतीय और पाकिस्तानी डॉक्टरों ने मिलाया हाथ.यह घटना 14 अगस्त, 2018 की है.पाकिस्तानी डॉक्टर ने 3साल की हदिया नेसारी के लीवर प्रत्यारोपण के लिए दिल्ली के अपोलो अस्पताल से मदद ली थी.

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय और पाकिस्तानी डॉक्टर तब एक साथ आए जब एक तीन वर्षीय अफगान लड़की की जान बचाने की नौबत आई.बताते हैं कि रोगी हादिया नेसारी को लीवर की पुरानी समस्या के कारण लाहौर के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जिसके लिए तत्काल लीवर प्रत्यारोपण की आवश्यकता थी.

जैसे ही उसके लीवर की हालत खराब हुई, लाहौर में हादिया का इलाज कर रही बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. हुमा चीमा ने दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के डॉक्टरों से संपर्क किया.अपोलो हॉस्पिटल के ग्रुप मेडिकल डायरेक्टर और सीनियर कंसल्टेंट, पीडियाट्रिक गैस्ट्रोएंटरोलॉजी और हेपेटोलॉजी, डॉ. अनुपम सिब्बल ने बताया, लड़की को अज्ञात कारणों से क्रोनिक लिवर की बीमारी हो गई थी.

रिपोर्ट के आधार पर हमने पाया कि बच्चे को तुरंत लीवर प्रत्यारोपण की आवश्यकता है. दोनों पक्षों के डॉक्टरों के ऑनलाइन सहयोग से सर्जरी हुई. पाकिस्तानी डॉक्टर ने दरियादिली दिखाते हुए मरीज को अपोलो अस्पताल में रियायती दर पर इलाज कराने की पेशकश की.

डॉक्टर चीमा के अनुसार, हम भी इसमें पीछे नहीं रहे. लिवर ट्रांसप्लांट के लिए उसे भारत लाने का सुझाव दिया. इसके बाद अपोलो से भी पेशकश की गई. हादिया 5 जुलाई को दिल्ली आई और अपोलो अस्पताल के डॉक्टरों की टीम ने उसकी सर्जरी की.

अपोलो अस्पताल के डॉ. नीरव गोयल कहते हैं, मरीज की रक्त वाहिकाएं बहुत छोटी थीं, इसलिए हमें प्रत्यारोपण की योजना बनाते समय अत्यधिक सावधानी बरतनी पड़ी. ”

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पाकिस्तानी विधवा का भारतीय डॉक्टर ने किया मुफ्त में इलाज

यह खबर मार्च 29, 2022 की है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान के पंजाब क्षेत्र के मुल्तान की 61वर्षीय विधवा सुरैया बानू लगभग एक साल गंभीर रोग से पीड़ित थीं. पाकिस्तान में कई डॉक्टरों से इलाज कराने के बावजूद उनकी बिगड़ती हालत को देखकर बेटी इकरा घरा गई.

पाकिस्तान में सही इलाज नहीं मिलने के चलते इकरा ने भारतीय आयुर्वेदिक डॉक्टर से संपर्क किया. इसके बाद सूरत के आयुर्वेदिक डॉक्टर रजनीकांत पटेल उनकी मां के म्यूकोमाइकोसिस का लंबे समय तक इलाज किया. दिलचस्प बात यह है कि ऑनलाइन इलाज के बदले डाॅक्टर रजनीकांत ने कोई पैसे नहीं लिए. मुफ्त इलाज किया.

मुल्तान की 61 वर्षीय पाकिस्तानी विधवा सुरैया बानू को एक साल पहले खुद के गंभीर रोग का शिकार होने का पता चला.सूरत के डॉ. रजनीकांत पटेल का कहना है कि इलाज करने के लिए मैंने सोशल मीडिया को माध्यम बनाया.उनके मुताबिक, सुरैया बानू की बेटी मुझ तक इंस्टाग्राम के माध्यम से पहुंची थी.

रिपोर्ट पाकिस्तान से कोरियर से मंगाए गए. बाद में दवाएं भी कूरियर कंपनियों की मदद से भेजी गईं.डॉक्टर ने बताया, आमतौर पर म्यूकोर्मिकोसिस के इलाज में 25लाख रुपये तक का खर्च आता है. वह अब तक 400से अधिक म्यूको माइकोसिस रोगियों का सफलतापूर्वक इलाज कर कर चुके हैं.