राधिका और अल्फिया की दोस्ती बनी धार्मिक एकता की पहचान, सात समंदर पार गूंजी भारतीय संस्कृति

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 06-09-2025
Radhika and Alfia's friendship became a symbol of religious unity, Indian culture resonated across the seven seas
Radhika and Alfia's friendship became a symbol of religious unity, Indian culture resonated across the seven seas

 

भक्ती चालक

हमपर लगातार ऐसी खबरों और घटनाओं की बौछार होती रहती है जो यह साबित करने की कोशिश करती हैं कि हिंदुओं और मुसलमानों का शांति से एक साथ रहना असंभव है. इसका नतीजा यह हुआ है कि त्योहारों के समय अक्सर लोगों के मन में आनंद और उल्लास के बजाय हिंदू-मुस्लिम तनाव और डर का माहौल बन गया है. 

हालत यह है कि गणेशोत्सव के दौरान धार्मिक सद्भाव बढ़ाने के नेक इरादे से एक सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर ने एक वीडियो बनाया था, लेकिन उस वीडियो में एक मुस्लिम मूर्तिकार से मूर्ति खरीदने को लेकर इतना विवाद हुआ कि उसे वह वीडियो डिलीट करना पड़ा.

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एक तरफ समाज में भले ही नफ़रत भरे विचार बढ़ रहे हों, लेकिन महाराष्ट्र के कई गांवों में त्योहारों, खासकर गणेशोत्सव से जुड़ी हिंदू-मुस्लिम सद्भाव की परंपराएं आज भी जीवित हैं. इन परंपराओं के उदाहरण 'आवाज़ द वायस' पर आपको जगह-जगह पढ़ने और देखने को मिलेंगे.

जब हम अपने समाज में या अपनों के साथ होते हैं, तो इस तरह शांति से साथ रहना थोड़ा आसान होता है, क्योंकि तब हमारे पास संसाधन आसानी से उपलब्ध होते हैं. लेकिन जब हम विदेश में रह रहे होते हैं, तो परिस्थितियां चुनौतीपूर्ण होती हैं. फिर भी, ऐसी परिस्थितियों में भी अपनी संस्कृति से मजबूती से जुड़े रहने के कई उदाहरण हमें देखने को मिलते हैं.

इन्हीं में से एक शानदार उदाहरण है अल्फिया शेख और राधिका यादव, दो महाराष्ट्रीयन लड़कियों का, जिन्होंने कनाडा में गणेशोत्सव मनाया. लेकिन उनके इस गणेशोत्सव की खासियत यह है कि उन्होंने अपने एक छोटे से काम से धार्मिक सद्भाव का एक बड़ा संदेश दिया है.

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मूल रूप से महाराष्ट्र के एक प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र, पुणे, की रहने वालीं अल्फिया और राधिका ने फूड टेक में एक साथ ग्रेजुएशन किया. फिर उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए कनाडा जाने का फैसला किया और इसमें वे सफल भी हुईं. लेकिन वहां पहुंचने पर दोनों सहेलियां अलग हो गईं.

अल्फिया को मॉन्ट्रियल की विश्व प्रसिद्ध मैकगिल यूनिवर्सिटी में दाखिला मिला, तो राधिका को वहां से लगभग साढ़े चार हजार किलोमीटर दूर, प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया में. 

इस तरह दोनों सहेलियां दूर हो गईं. लेकिन अपनी मास्टर्स की डिग्री पूरी करने और एक साल काम करने के बाद, वे फिर से एक साथ आ गईं और साथ रहने लगीं. दोनों इस समय वैंकूवर में नौकरी कर रही हैं.

एक साथ रहने पर इन पक्की सहेलियों ने अपने-अपने त्योहार मनाने का फैसला किया. अल्फिया मुस्लिम हैं और राधिका हिंदू. दोनों के त्योहार अलग-अलग हैं, लेकिन इन दोनों ने बड़े प्यार और संवेदनशीलता से न केवल त्योहार मनाए, बल्कि एक-दूसरे के त्योहारों में बढ़-चढ़कर हिस्सा भी लिया. इस साल एक साथ आने पर उन्होंने गणेशोत्सव मनाने का फैसला किया.

अपने छोटे से घर में गणेशोत्सव मनाने की खुशी जाहिर करते हुए अल्फिया और राधिका 'आवाज़ द वायस' को बताती हैं, “हम पिछले 3 सालों से कनाडा में रह रहे हैं. लेकिन मूल रूप से पुणे के होने की वजह से गणेशोत्सव हमारे दिल के बहुत करीब है. पहले हम दोनों अलग-अलग शहरों में रहते थे, लेकिन इस साल जब हम साथ रहने आए, तो हमने अपने घर बप्पा को लाने का फैसला किया."

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उन्होंने बाजार से मूर्ति खरीदने के बजाय, उसे अपने हाथों से बनाने का फैसला किया. कनाडा में अपने छोटे से घर में इन दोनों ने बैठकर मिट्टी गूंथी, मूर्ति को आकार दिया.

उस पर रंग किया और बप्पा को साकार किया. गणपति की सजावट से लेकर पूजा की थाली और नैवेद्य (भोग) बनाने तक, सब कुछ दोनों ने बहुत बारीकी से किया.
गणेशोत्सव की तैयारियों के बारे में अल्फिया बताती हैं, "यहां कनाडा में सजावट का सारा सामान मिलना मुश्किल था. तो हमारे पास जो ओढ़नी और टिकली (बिंदी) थीं, उन्हीं से हमने सजावट की. भावनात्मक जुड़ाव के लिए हमने बप्पा की मूर्ति घर पर ही बनाने का फैसला किया था."

राधिका बताती हैं, “नैवेद्य बनाते समय मुझे अल्फिया से बहुत मदद मिली. हमने एक-दूसरे के साथ मिलकर सभी पकवान बनाए. एक ने मोदक बनाए तो दूसरी ने खाना. हम दो समय की आरती भी साथ में करते थे. इस पूरे माहौल में ऐसा लगा जैसे हम पुणे में ही गणेशोत्सव मना रहे हैं."

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अल्फिया को आरती और नैवेद्य जैसी रस्मों के बारे में गहरी जानकारी नहीं थी. इस साल राधिका के साथ घर पर गणेशोत्सव मनाते हुए उन्हें कई नई बातें पता चलीं. वह कहती हैं, “पुणे में रहते हुए मैं हर साल गणेशोत्सव में राधिका के घर दर्शन के लिए जाती थी. लेकिन उसके पीछे की पूरी तैयारी का अनुभव मुझे कभी नहीं मिला था. इस साल, मैं हर छोटी-बड़ी चीज़ में शामिल थी. मुझे सब कुछ अनुभव करने को मिला. इसलिए इस साल का गणेशोत्सव मेरे लिए बहुत खास था."

घर से दूर ये लड़कियां सात समंदर पार एक-दूसरे का सहारा बनकर रह रही हैं. इस साल घर में गणपति के आने से राधिका भावुक हो गईं. वह कहती हैं, “पुणे में रहते हुए अल्फिया और मैं हर साल अपने त्योहार एक साथ मनाते थे. वह दिवाली और गणेशोत्सव पर मेरे घर आती थी और मैं ईद पर उसके घर जाती थी. इस साल हम बप्पा को घर ले आए, तो मुझे बिल्कुल घर जैसा ही लगा. इसमें अल्फिया का बहुत बड़ा हाथ है."

वह आगे कहती हैं, “एक साथ रहते हुए हमें कभी यह महसूस ही नहीं हुआ कि वह मुस्लिम है. मैं हिंदू हूं.हम एक-दूसरे के सभी त्योहार मनाते हैं. दोनों त्योहारों के लिए हम बहुत उत्साहित रहते हैं.

इस बहाने हमें एक-दूसरे की संस्कृति का अनुभव करने का मौका मिलता है. घर से दूर हमें एक-दूसरे का ही सहारा है. हमारे बीच केवल एक ही रिश्ता है, और वह है दोस्ती का. इस बार हमने यहां रमज़ान ईद भी साथ मनाई थी. हमने मेहंदी लगाई, बिरयानी और शीर खुरमा बनाया. अपने दोस्तों को दावत दी थी."
अल्फिया के साथ अपनी गहरी दोस्ती की तारीफ करते हुए राधिका कहती हैं, "हमारी दोस्ती बहुत खास है. दोस्ती जाति-धर्म देखकर नहीं होती. इसलिए हमारा रिश्ता केवल प्यार और सम्मान पर टिका है."

राधिका की बात से सहमति जताते हुए अल्फिया कहती हैं, “शुरू से ही हमने एक-दूसरे में सिर्फ इंसान देखा. हमारे बीच भेदभाव कभी नहीं आया. धर्म और संस्कृति कभी भी हमारी दोस्ती के आड़े नहीं आए. हम एक-दूसरे के त्योहारों का सम्मान करते हैं. परंपराओं को जानते हैं. इससे बहुत सुंदर यादें बना रहे हैं. इसलिए, हमने अपनी सांस्कृतिक विविधता को केवल स्वीकार नहीं किया है, बल्कि हम उसे सेलिब्रेट भी कर रहे हैं."

घर से दूर रहकर भी अल्फिया और राधिका का यह छोटा सा कदम, सांस्कृतिक एकता और दोस्ती को एक नई पहचान दे रहा है. धर्म-जाति को भूलकर एक-दूसरे के त्योहारों का सम्मान करना, उन्हें अपनाना ही सच्ची भारतीयता है, ऐसा संदेश इन दूर देश में रहने वाली दो युवतियों ने सभी भारतीयों, विशेषकर महाराष्ट्र के लोगों को दिया है.