ग्रैंड मुफ़्ती शेख अबूबकर अहमद: मानवता और शिक्षा के प्रतीक

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 18-07-2025
Grand Mufti of India Sheikh Abubakar Ahmed: A religious leader who became the voice of humanity
Grand Mufti of India Sheikh Abubakar Ahmed: A religious leader who became the voice of humanity

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली 

भारत के ग्रैंड मुफ़्ती शेख अबूबकर अहमद का नाम इन दिनों सुर्खियों में है. वजह है—उनकी सक्रिय भूमिका, जिसके चलते यमन में फांसी की सजा पाने वाली केरल की नर्स निमिषा प्रिया की ज़िंदगी बच पाई. 16 जुलाई को होने वाली फांसी टल गई और एक नया सवेरा दिखाई दिया. इस घटना ने सबका ध्यान इस बात की ओर खींचा कि आखिर कौन हैं शेख अबूबकर अहमद, जिनकी कोशिशों ने मौत की सजा को टाल दिया. आइए जानते हैं इस महान शख्सियत की जीवनगाथा, उनके विचार और उनके योगदान के बारे में विस्तार से.

शुरुआती जीवन और आध्यात्मिक शिक्षा

शेख अबूबकर अहमद का जन्म 22 मार्च 1931 को दक्षिण भारत के केरल राज्य के कोझिकोड जिले में हुआ. वे एक ऐसे दौर में पैदा हुए जब भारत स्वतंत्रता संग्राम की लहर में था.

उनका पालन-पोषण एक धार्मिक और आध्यात्मिक वातावरण में हुआ. बचपन से ही उनमें सेवा, सादगी और इंसानियत के लिए समर्पण की भावना थी. उन्होंने पारंपरिक इस्लामी शिक्षा प्राप्त करने के साथ-साथ आधुनिक विचारों को भी अपनाया.

सूफ़ी दर्शन और ‘खिदमत’ की राह

शेख अबूबकर का जीवन सूफ़ी परंपरा के उस मूल विचार पर आधारित है, जिसे ‘खिदमत’ कहा जाता है. इसका मतलब है इंसानियत की सेवा. उनका मानना है कि सच्ची इबादत केवल प्रार्थना में नहीं, बल्कि समाज की बेहतरी में निहित है.

यही वजह है कि उन्होंने अपना पूरा जीवन सेवा, शिक्षा और सांप्रदायिक सद्भाव को समर्पित कर दिया. वे भारत की विविधता को ताकत मानते हैं और हमेशा राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समरसता के पैरोकार रहे हैं.

शिक्षा में क्रांति की पहल

शेख अबूबकर अहमद की सबसे बड़ी उपलब्धियों में शिक्षा के क्षेत्र में किया गया अभूतपूर्व काम है. उन्होंने 1978 में जामिया मरकज़ की स्थापना की, जो इस्लामी शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा का संगम है. आज यह संस्थान न केवल भारत बल्कि दुनिया भर में जाना जाता है. इसके अलावा उन्होंने हजारों स्कूल और कॉलेज स्थापित किए। आंकड़े हैरान करने वाले हैं—

  • 12,232 प्राथमिक स्कूल

  • 11,010 माध्यमिक विद्यालय

  • 638 कॉलेज और स्नातक संस्थान

उनका उद्देश्य शिक्षा को हर वर्ग तक पहुंचाना था, खासकर उन बच्चों तक जिनके पास संसाधनों की कमी है. उन्होंने शिक्षा को केवल धार्मिक दायरे में नहीं रखा, बल्कि विज्ञान, तकनीक और रोजगारपरक विषयों को भी शामिल किया.

मानवता की सेवा—सिर्फ़ शब्दों में नहीं, कार्यों में भी

शेख अबूबकर की सेवा का दायरा शिक्षा तक ही सीमित नहीं रहा. उन्होंने 1960 के दशक में 25 अनाथों को गोद लेकर शुरुआत की थी. आज उनकी देखरेख में 18,745 अनाथ बच्चे पल-बढ़ रहे हैं। उन्होंने यह साबित कर दिया कि सेवा सिर्फ़ विचार नहीं, बल्कि कर्म से होती है.

उनकी सामाजिक पहलों में शामिल हैं:

  • 72,500 पेयजल परियोजनाएं, जिनसे 6,028 गांवों को लाभ हुआ.

  • 16,937 परिवारों के लिए आवास, जिनकी परियोजनाओं के नाम 'इसकान', 'सदात भवन' और 'दारुल खैर' हैं.

  • 4,675 स्वास्थ्य केंद्र और पेन एंड पैलिएटिव केयर क्लीनिक.

  • 50,000 से अधिक स्वास्थ्यकर्मियों का प्रशिक्षण.

  • 9,920 शौचालयों का निर्माण.

  • हर साल 3 लाख जरूरतमंदों को कपड़े और 20,000 खाद्य पैकेट रोजाना वितरित किए जाते हैं.

रोज़गार सृजन के क्षेत्र में भी उनकी भूमिका उल्लेखनीय है. उन्होंने 1,35,000 लोगों को सीधे रोजगार दिया और 45,000 युवाओं को प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बनाया.

महिला सशक्तिकरण और युवा उत्थान

शेख अबूबकर अहमद की पहलों में महिलाओं को विशेष स्थान मिला है. उनकी संस्थाओं में काम करने वाली और पढ़ने वाली आधी से ज्यादा महिलाएं हैं. उन्होंने महिलाओं को शिक्षा और आर्थिक अवसर देकर सशक्त बनाया. इसके साथ ही युवाओं को कौशल विकास के जरिए रोजगार दिलाने पर भी उन्होंने जोर दिया.

आर्थिक विकास का मॉडल और खाड़ी देशों की भूमिका

1970 के दशक में खाड़ी देशों में रोजगार के अवसर बढ़े, तो केरल में रेमिटेंस की बड़ी आमद हुई. शेख अबूबकर ने इस पूंजी का सही उपयोग किया और समाजिक विकास का नया मॉडल तैयार किया. इससे न केवल शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार हुआ, बल्कि रोजगार और बुनियादी ढांचे में भी प्रगति हुई.

उनकी दूरदर्शिता का उदाहरण है मारकज़ नॉलेज सिटी, जो शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार और आवास का आधुनिक केंद्र है.

मदरसा सुधार और राष्ट्रीय एकता का संदेश

शेख अबूबकर अहमद ने मदरसा शिक्षा को आधुनिक बनाने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई. उन्होंने इस्लामी शिक्षा में विज्ञान, गणित और तकनीकी विषयों को शामिल किया. इससे मदरसे केवल धार्मिक संस्थान न रहकर राष्ट्र निर्माण के केंद्र बन गए.

वे हमेशा से राष्ट्रीय एकता और साम्प्रदायिक सौहार्द के पक्षधर रहे। उन्होंने कई शांति सम्मेलनों का आयोजन किया और विभिन्न धर्मों के नेताओं को एक मंच पर लाकर भाईचारे का संदेश दिया. उनका मानना है कि धर्म का उद्देश्य विभाजन नहीं, बल्कि समाज में सद्भाव और प्रेम स्थापित करना है.

मानवीय मूल्यों के पैरोकार

शेख अबूबकर अहमद का जीवन बताता है कि अगर इरादा नेक हो और लक्ष्य स्पष्ट, तो बदलाव लाना असंभव नहीं. उन्होंने करोड़ों लोगों के जीवन को छुआ, चाहे वह शिक्षा हो, स्वास्थ्य हो, या रोजगार. निमिषा प्रिया के मामले में उनकी भूमिका ने यह साबित कर दिया कि उनका प्रभाव केवल भारत तक सीमित नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी है.

ग्रैंड मुफ़्ती शेख अबूबकर अहमद सिर्फ़ एक धार्मिक नेता नहीं, बल्कि सेवा, शिक्षा और मानवता के सबसे बड़े प्रतीकों में से एक हैं। उन्होंने अपने जीवन से यह संदेश दिया कि "सच्ची इबादत इंसानियत की सेवा में है." उनकी पहलों ने न केवल केरल, बल्कि पूरे भारत को प्रभावित किया है.

उनकी यात्रा यह दिखाती है कि जब शिक्षा, सेवा और संवेदना एक साथ मिलती हैं, तो समाज में बदलाव की सबसे मजबूत नींव रखी जा सकती है.