-फ़िरदौस ख़ान
आगरा में यमुना किनारे बने सफ़ेद संगमरमर के ताजमहल के बारे में तो सभी जानते हैं, लेकिन आज हम बात कर रहे हैं लड़की से बने ख़ूबसूरत ताजमहल की. इसे बनाया है राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले के गांव करनपुरा के सलीम ख़ान ने. वे तक़रीबन डेढ़ दशक से लकड़ी से ख़ूबसूरत चीज़ें बनाने का काम कर रहे हैं.
सलीम ख़ान बताते हैं कि बचपन में जब स्कूल की छुट्टियां होतीं, तो मेरे वालिद शहाबुद्दीन मुझे काम सिखाने और चाय-पानी की मदद के लिए अपने साथ दुकान पर ले जाया करते थे. मैं उन्हें चाय बनाकर पिलाता और काम में भी उनका हाथ बंटाता. उन्हीं दिनों मैंने बचे हुए लकड़ी के कचरे से एक झोंपड़ी बनाई थी, जिसे लोगों ने काफ़ी पसंद किया था.
उसे देखकर मेरे वालिद ने कहा कि ऐसी कला को बड़े शहरों के लोग और विदेशी पर्यटक काफ़ी ज़्यादा पसंद करते हैं. बस तभी से मैं कुछ नायाब कलाकृति बनाने के बारे में सोचने लगा. बारहवीं के बाद मुझे पढ़ाई छोड़नी पड़ी, क्योंकि घर के हालात अच्छे नहीं थे.
मैं अपने वालिद की दुकान पर काम करने लगा. दस साल यूं ही गुज़र गए. फिर एक दिन मेरे वालिद का इंतक़ाल हो गया. इसके ठीक पांच महीने के बाद बड़ी बहन अपने सात छोटे-छोटे बच्चों को छोड़कर इस दुनिया से चली गई. मैं ग़ुरबत और ग़म से उबर ही नहीं पा रहा था कि ऐसे में एक हादसा और हो गया. काम के दौरान मशीन में हाथ आने से मेरी दो अंगुलियां कट गईं. सालभर घर पर बैठा रहा. हालात बद से बदतर हो गए, लेकिन मैंने हार नहीं मानी.
मैं लकड़ी का ताजमहल बनाना चाहता था. इसके लिए ताजमहल को क़रीब से देखना ज़रूरी था. मैंने कुछ पैसे उधार लिए और अपने चचेरे भाई को लेकर आगरा ताजमहल देखने चला गया. फिर थोड़ा-थोड़ा करके ताजमहल बनाना शुरू किया और तक़रीबन 18 महीने तक ताजमहल का काम चलता रहा. आख़िरकार ताजमहल बनकर तैयार हो गया.
वे कहते हैं कि मुझे ये हुनर अपने बुज़ुर्गों से विरासात में मिला है. पिछले 70 सालों से हमारे बुज़ुर्ग ये काम करते आ रहे हैं. पहले मेरे दादाजी ये काम करते थे और बाद में उनसे मेरे वालिद ने ये हुनर सीख लिया. फिर मेरे वालिद ने मुझे सिखाया. वैसे हमारा पुश्तैनी काम मिट्टी के बर्तन बनाने का है जैसे मटका, हंडिया, परात, ओखली और घर में काम आने वाली अन्य चीज़ें. बाद में उन्होंने ये काम छोड़ दिया.
अपने सपनों का ज़िक्र करते हुए वे कहते हैं कि मैं चाहता हूं कि ताजमहल के अलावा और भी इस तरह की अनोखी कलाकृतियां बनाकर पूरे देश और विदेश में भेजूं. ताजमहल को पूरी दुनिया जानती है और ये दुनिया के सात अजूबों में शामिल है. ये मुहब्बत की निशानी है. अगर कोई अपनी पत्नी या प्रेमिका को अनमोल तोहफ़ा देना चाहता है, तो वह लकड़ी का ताजमहल दे सकता है.
वे अपने ताजमहल की ख़ासियत के बारे में कहते हैं कि इसके सभी हिस्से अलग हो जाते हैं, जिससे इसे कहीं ले जाने में कोई परेशानी नहीं होगी. इसके अंदर दो गुप्त तिजोरियां भी बनाई गई हैं, जिसे हर कोई नहीं खोल सकता. वे यह भी कहते हैं कि इसे बनाना कोई आसान काम नहीं था.
इसे बनाने के लिए ख़ास तरह के औज़ारों की ज़रूरत थी, वह भी मुझे ख़ुद ही बनाने पड़े. पहले मैंने काग़ज़ पर इसकी तस्वीर बनाई. फिर इसे लकड़ी से बनाना शुरू किया. इस पर तक़रीबन एक लाख सत्तर हज़ार रुपये की लागत आई. घर की माली हालत पहले ही बहुत ख़राब थी. सिर पर काफ़ी क़र्ज़ चढ़ गया, तो मुझे अपनी ज़मीन बेचनी पड़ी.
उन्हें मलाल है कि उनकी कलाकृतियों को उनके प्रशंसक नहीं मिल पाए, जो मिलने चाहिए थे. वे कहते हैं कि प्रदर्शनियों में स्टॉल लगाने के लिए मेरे पास पैसे नहीं हैं. घर चलाने के लिए वे बढ़ई का काम करते हैं. बस यही है उनकी ज़िन्दगी और सपनों की कहानी.
(लेखिका शायरा, कहानीकार व पत्रकार हैं)